For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्वप्न को समर्पित (लघुकथा)

लेखक उसके हर रूप पर मोहित था, इसलिये प्रतिदिन उसका पीछा कर उस पर एक पुस्तक लिख रहा था| आज वो पुस्तक पूरी करने जा रहा था, उसने पहला पन्ना खोला, जिस पर लिखा था, "आज मैनें उसे कछुए के रूप में देखा, वो अपने खोल में घुस कर सो रहा था"

फिर उसने अगला पन्ना खोला, उस पर लिखा था, "आज वो सियार के रूप में था, एक के पीछे एक सभी आँखें बंद कर चिल्ला रहे थे"

और तीसरे पन्ने पर लिखा था, "आज वो ईश्वर था और उसे नींद में लग रहा था कि उसने कल्कि अवतार कर सृजन कर दिया"

अगले पन्ने पर लिखा था, "आज वो एक भेड़ था, उसे रास्ते का ज्ञान नहीं था, उसने आँखें बंद कर रखीं थीं और उसे हांका जा रहा था"

उसके बाद के पन्ने पर लिखा था, "आज वो मीठे पेय की बोतल था, और उसके रक्त को पीने वाला वही था, जिसे वो स्वयं का सृजित अवतार समझता था, उसे भविष्य के स्वप्न में डुबो रखा था"

लेखक से आगे के पन्ने नहीं पढ़े गये, उसके प्रेम ने उसे और पन्ने पलटने से रोक लिया| उसने पहले पन्ने पर सबसे नीचे लिखा - 'अकर्मण्य', दूसरे पर लिखा - 'राजनीतिक नारेबाजी', तीसरे पर - 'चुनावी जीत', चौथे पर - 'शतरंज की मोहरें' और पांचवे पन्ने पर लिखा - 'महंगाई'|

फिर उसने किताब बंद की और उसका शीर्षक लिखा - 'मनुष्य'

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 587

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nita Kasar on February 7, 2016 at 8:12pm
मानव तेरे रूप अनेक इशारों ही इशारों में करारा व्यंग्य किया है कथा में बधाईयां आपको आद०चंद्रेश छतलानी जी ।
Comment by kanta roy on January 23, 2016 at 10:49am
मानव ही एकमात्र ऐसा जीव है जो अपने भौतिक स्वरूप को स्थायी रख कर ,वह विविध भेष को जीता है । इंसानियत को तौलते हुए , स्वंय की कामना पूर्ति हेतु , विविध रूपों को गढती , चिंतन को विस्तारित करती , इस कटाक्षपूर्ण लघुकथा के लिए बधाई आपको आदरणीय चंद्रेश जी । इस पोस्ट के फीचर पोस्ट होने की दुबारा बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on January 20, 2016 at 1:10pm

rचना को पसंद कर टिप्पणी द्वारा  मेरे उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय फूल सिंह जी|

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on January 20, 2016 at 1:08pm

rचना को पसंद कर टिप्पणी द्वारा  मेरे उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी भाई जी|

Comment by PHOOL SINGH on January 18, 2016 at 2:39pm

अति सुंदर रचना आपको बहुत  बहुत बधाई स्वीकार हो


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 18, 2016 at 7:56am

आदरणीय चन्द्रेश भाई , संकेतों मे कही आपकी लघुकथा बहुत सुन्दर लगी , हार्दिक बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service