गुल्लक - (लघुकथा ) –
"क्या कमला,तूने तो परेशान करके रख दिया!आज तीन दिन बाद शक्ल दिखाई है"!
"मैम साब, मैं क्या करूं,आप ही बताओ,मेरा बेटा अस्पताल में भर्ती है,मुझे दो हज़ार रुपये चाहिये"!
"कमला,तू पहले ही दो महीने की पगार एड्वांस ले चुकी है"!
" एक एक पैसा चुका दूंगी ,मैम साब"!
"कमला, इस बार तो तू मुझे माफ़ कर दे, मेरे पास नहीं है इतने पैसे"!
सुनीता की सात साल की बेटी मिनी यह वार्तालाप सुनकर अपने कमरे में से बाहर निकली,
"कमला काकी, यह लो सत्रह सौ पचास रुपये, इनसे आप बबलू का इलाज़ करा लो"!
"मिनी ,तुम्हारे पास इतने पैसे कहॉ से आये"!
"मम्मी, मैंने अपनी गुल्लक तोड दी"!
"पर मिनी, वह पैसे तो तुम अपनी गुडिया की शादी के दहेज़ के लिये इकट्ठा कर रही थी"!
"मम्मी, बबलू का इलाज़ ज़्यादा ज़रूरी है, मेरी गुडिया की शादी तो बिना दहेज़ के भी हो सकती है”!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार अदरणीय गिरिराज भंडारी जी!
आदरनीय तेज़वीर भाई , आपकी संदेश परक लघुकथा के लिये दिली बधाई ।
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी!आप सरीखे गुणी और पारखी सख्सियत की हौसला अफ़ज़ाई मेरे जैसे मामूली लघुकथाकार के लिये बहुत मायने रखती है!कृपा बनाये रखें!
हार्दिक आभार आदरणीय मुकेश श्रीवास्तव जी!
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी!यह सब आप जैसे गुणी लोगों की सोहबत का असर है!पुनः आभार!
niceee
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