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नाम लिख मेरा हथेली पर, हुई गुमनाम तू (ग़ज़ल)

बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २१२

 

जो मुझे अच्छा लगे करने दे बस वो काम तू

ज़िन्दगी सुन, ज़िन्दगी भर रख मुझे गुमनाम तू

 

जीन मेरे खोजते थे सिर्फ़ तेरे जीन को

सुन हज़ारों वर्ष की भटकन का है विश्राम तू

 

तुझसे पहले कुछ नहीं था कुछ न होगा तेरे बाद

सृष्टि का आगाज़ तू है और है अंजाम तू

 

डूबता मैं रोज़ तुझमें रोज़ पाता कुछ नया

मैं ख़यालों का शराबी और मेरा जाम तू

 

क्या करूँ, कैसे उतारूँ, जान तेरा कर्ज़ मैं

नाम लिख मेरा हथेली पर, हुई गुमनाम तू

 ------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 714

Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 6, 2016 at 7:59pm

आदरणीय समर साहब आप बिल्कुल सही कह रहे हैं, यहाँ ज़ाम बिल्कुल दुरुस्त होगा। तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ इस्लाह के लिए।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 6, 2016 at 7:58pm

शुक्रिया सतविंदर जी

Comment by Samar kabeer on January 6, 2016 at 11:28am
"मैं ख़्यालों का शराबी और है ख़य्याम तू"इस शैर के भाव से प्रतीत होता है कि "ख़य्याम"को आप साक़ी समझ रहे हैं,जबकि वो मात्र एक शायर है,मैं ख्यालों का शराबी और मेरा जाम तू"
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 6, 2016 at 11:22am
बहुत ख़ूब!
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 5, 2016 at 6:05pm

शुक्रिया आदरणीय गुमनाम साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 5, 2016 at 6:05pm

आदरणीय पंकज जी, बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 5, 2016 at 6:04pm

आदरणीय समर साहब, देर से जवाब देने के लिए क्षमा चाहता हूँ। यहाँ खैय्याम ‘उमर खैय्याम’ साहब के लिए प्रयुक्त किया गया है। ग़ज़ल पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by gumnaam pithoragarhi on January 4, 2016 at 7:26pm

अच्छा है .....................

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 3, 2016 at 9:03am
आदरणीय धर्मेन्द्र जी बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है, बधाई।
Comment by Samar kabeer on January 2, 2016 at 2:02pm
जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी आदाब,बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाये |
"ख़य्याम"को आपने किस अर्थ में लिया है ?

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