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आदरणीय सुशील सर, आपने आ० नयना जी के स्थान पर आदरणीय नारायण जी लिख दिया है. सादर
आदरणीया नयना जी क्षमा करें गलती से प्रतिक्रिया में आपका नाम 'नारायन' टंकित हो गया है। कृपया उसे 'नयना' पढ़ें।
त्रुटि की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए आदरणीय मिथिलेश जी आपका शुक्रिया।
रचना मौलिक एंव अप्रकाशित है.
धन्यवाद रश्मि जी
तरक्की के लिए इतने निम्न स्तर तक जाने वाला इंसान कभी माफ़ी के लायक नहीं होना चाहिए। बहुत ही चुभने वाली कथानक को आपने लघुकथा के लिए चुना है। पत्नी को जीत का मोहरा बनाने में जरा पंच का प्रभाव तेज हो सकता था। कथ्य ने अपना काम किया है पूरा। आपकी कथा पढ़ते हुए आपकी मुश्कान भी याद आ रही नही जब आप आज मुझसे मिलने पर पहली नज़र में मुस्काई थी। आभार आपको नयना जी मेरा दिन बनाने के लिए। :)))))
आभार आपका कांता जी.कथा सराहने के लिये.लघुकथा सिखने की प्रक्रिया अभी शैशव अवस्था मे है.आपजैसे लोगो के बीच रहकर ,आपसे सिखकर आपकी उम्मिदो पर पर खरा उतरने का प्रयास रहेगा.कल दिन तो मेरा भी बन गया कांता जी.
आदरणिय मंच अपनी रचना के नीचे भुलवश मौलिक एंव अप्रकाशित लिखना रह गया है। कृपया रचना के नीचे इसे लिख दिया जाय तो कृ्तज्ञता होगी. क्षमा के साथ
वाह ! बहुत बढ़िया लघुकथा ! बधाई आदरणीय नैना जी
अपने स्वार्थ के लिए स्त्री को दांव पर केवल महाभारत काल में ही नहीं लगाया जाता था ,वो मानसिकता आज भी जारी है चमक दमक के पीछे , बहुत अच्छी कथा बुनी है आपने बधाई आपको आदरणीया नयना जी
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