For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

यदि मैं यह कहूँ कि आज लघुकथा का युग चल रहा है, तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी I आज बहुत से नवोदित रचनाकार इस विधा पर क़लम आज़माई कर रहे हैं I ओबीओ परिवार भी बहुत गंभीरता से नवांकुरों को शिक्षित और प्रशिक्षित करने के पुनीत कार्य में जुटा हुआ है I लेकिन सफ़र अभी बहुत लंबा है और मंज़िल भी पास नहीं है I लेकिन मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस मंच से प्रशिक्षित बहुत से हस्ताक्षर लघुकथा विधा का परचम अगली एक चौथाई सदी तक बुलंद रखने में सफल होंगे I

इसी आलोक में मैं कुछ ऐसे बिंदुओं पर चर्चा करना चाहूँगा जो नवोदित लघुकथाकारों के ध्यान देने योग्य हैं I दरअसल मैं कुछ अहम् ख़ामियों की तरफ़ ध्यान आकर्षण करना चाहता हूँ जिनसे हर गंभीर लघुकथाकार को हर हाल में बचना चाहिए I

जल्दबाज़ी
कहा जाता है कि "जल्दबाज़ी काम शैतान का", एक लघुकथाकार को चाहिए कि वह किसी प्रकार की जल्दबाज़ी से बचे I रचना में क्या लिखा, क्यों लिखा और कैसे लिखा के बाद उसमें व्याकरण एवं वर्तनी की त्रुटियों को बेहद ध्यानपूर्वक जाँचा जाना चाहिए I याद रहे कि एक छोटी-सी भाषाई ग़लती भी रचना का प्रभाव कम कर देती है I इस मामले में किसी वरिष्ठ एवं विधा के जानकार से इस्लाह ले लेना बहुत सहायक सिद्ध हो सकता है I

ज़बरदस्ती:
बिना विषय-वस्तु को सोचे समझे लघुकथा लिख मारने की बीमारी से बहुत से रचनाकार ग्रस्त पाए जाते हैं I याद रखना चाहिए कि जब तक कथ्य को तथ्य का कुशन नहीं मिलता, कोई भी लघुकथा प्रभाव नहीं छोड़ सकती I अत: पूरे तथ्यों और स्थिति से वाकफियत के बाद ही कुछ लिखा जाना चाहिए I

देखादेखी,
किसी भी विधा में कुछ सार्थक रचनाकर्म करने हेतु उस विधा के प्रति अभिक्षमता का होना बहुत ज़रूरी है I सिर्फ़ किसी के देखा-देखी बिना समुचित अभ्यास और प्रशिक्षण के कुछ भी लिखने बैठ जाना ठीक नहीं होता I सिर्फ़ यह देखकर कि फलाँ विधा का "फ़ैशन" चल रहा है इसलिए उसपर क़लम आज़माई की जाए, एक ग़लत सोच होती है I अगर आप किसी विधा में स्वयं को असहज महसूस करते हैं तो वहाँ हाथ डालने से गुरेज़ किया जाना चाहिए I

अशुद्ध भाषा / लचर व्याकरण
भाषा अभिव्यक्ति का एक माध्यम है जिसके द्वारा एक रचनाकार अपनी भावनाएँ व्यक्त करता है. अत: इसके प्रति एक रचनाकार का हमेशा सचेत रहना बेहद आवश्यक है I ग़ैर हिंदी भाषियों के साथ यह समस्या अक्सर पेश आती देखी गई है I रचना में पुल्लिंग/स्त्रीलिंग की त्रुटियाँ एक संजीदा पाठक को रचना से दूर रखती हैंI बोलचाल की भाषा वर्णन की भाषा से सर्वदा भिन्न होती है, अत: वर्णन में भाषाई अशुद्धता क़तई बर्दाश्त नहीं की जा सकती I

अँग्रेज़ी शब्दों का अंधाधुंध असंयत प्रयोग:
लघुकथा में टीचर, मैंम, वेकेशन, स्टूडेंट सहित अनगिनत शब्दों का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है I वार्तालाप/संवाद में ऐसे शब्द मान्य हैं, किन्तु वर्णन में इनके स्थान पर हिंदी शब्दों का उपयोग ही होना चाहिए I

कमज़ोर विराम-चिह्नांकन (पंक्चुएशन)
नवोदित रचनाकार इस बिंदु को हमेशा नज़रअंदाज़ करते देखे गए हैं I विराम चिह्न का ग़लत उपयोग, वाक्यांत में अनावश्यक डॉट्स, ग़लत स्थान पर प्रश्नचिह्न (जिसे देखकर एक पाठक उलझ जाता है की यहाँ लेखक द्वारा कुछ बताया जा रहा है या कुछ पूछा जा रहा है). वार्तालाप को इनवरटेड कौमास के बग़ैर लिखने वालों की संख्या भी कम नहीं हैं I कुछ नवोदित संवाद/वार्तालाप को इनवर्टेड कॉमास में डालते तो हैं, लेकिन बाक़ी वर्णन को वार्तालापो के साथ इस तरह गड्डमड्ड कर दिया जाता है कि पढ़ने वाले को झुँझलाहट होने लगती हैI

कमज़ोर शीर्षक:
शीर्षक किसी भी रचना का प्रवेश द्वार होता है I बहुत से पाठक केवल शीर्षक से प्रभावित होकर ही रचना पर उपस्थित होते हैं I "मजबूरी", "ग़रीबी", "दहेज़", "लुटेरे" आदि चलताऊ शीर्षक गंभीर पाठक को रचना से दूर रखते हैं I इसलिए लघुकथाकार को चाहिए कि अपनी रचना को एक प्रभावशाली शीर्षक दे I शीर्षक ऐसा हो जो पूरी लघुकथा का आइना हो, अथवा लघुकथा ही ऐसी हो जी शीर्षक को सार्थक करती हुई हो I

हर जगह पोस्ट करने की भूख:
आजकल सोशल मीडिया पर लघुकथा विधा के बहुत से समूह मौजूद हैं, नवोदित रचनाकार शायद लाइक्स अथवा वाह-वाही के लालच में अपनी एक ही रचना को 5-7 समूहों में पोस्ट कर देते हैं I लघुकथा के जानकार इसको "वाहवाही की भूख" का नाम देते हैं I मेरा निज़ी मत भी यही है कि अपनी रचना केवल उसी जगह पोस्ट की जाए जहाँ उसपर सार्थक चर्चा की गुंजाइश हो.

रोज़ाना पोस्टिंग
बहुत से नवोदित "रचनाकार" बनने के स्थान पर "लिक्खाड़" बनने की ओर आमादा हैं I मेरे देखने में आया है कि कई नवोदित बिना सोचे विचारे हर रोज़ एक (कई बार एक से ज़्याद भी) तथाकथित लघुकथा लिख मारते हैं I प्राय: ऐसी रचनाएँ अधकचरी और अर्थहीन होती हैं I ऐसी प्रवृत्ति और रचनाएँ किसी रचनाकार की छवि ख़राब करने वाली तो होती ही हैं, यह लघुकथा विधा की छवि भी धूमिल करती हैंI

यदि आप लघुकथा विधा और अपने लेखन के प्रति गंभीर हैं, तो उपर्युक्त बातों से बचना होगा I तभी लघुकथा पूरी आन-बान और शान के साथ बाक़ी विधाओं के साथ बराबर के सम्मान की हक़दार बन पाएगी I

Views: 3472

Replies to This Discussion

बहुत धन्यवाद सर ,आपने हम सब पर गहन अध्ययन किया और एक एक कमी को खोज निकाला है । आपके इस आलेख से बहुत सी धुंध छट गई है सर।
हृदय से आभार सर

हार्दिक आभार आ० सीमा सिंह जी I कई छुटपुट सुझाव इस सम्बन्ध में आते रहे हैं, बस उन्हीं को एक जगह इकठ्ठा करने का प्रयास किया है .

आपके इस आलेख का आना हम सभी लिखने वालों के लिए एक जबरदस्त आईना प्रतीत हुआ है । हमें अपनी त्रुटियों के कारण होने वाली लेखन के प्रति सजगता और असजगता का आकलन करना है । हमारे रचनाधर्मी तौर - तरीकों में , जिसमें हम अक्सर भूल करते जाते है अनवरत ही बिना किसी संकोच के । सचेत करने के मद्देनजर ये पोस्ट आपका हमारे लिए एक रौशनी है खुद के लेखन धर्म को आँकने के लिये । आपके द्वारा सचेत करती हुई गलतियों से मेरा भी कहीं नाता है । कोशिश करूँगी मै स्वंय की गलतियों पर अंकुश लगाने की । इस पोस्ट के लिए शत - शत नमन सर जी आपको । सादर

ऐसी छोटी छोटी गलतियाँ रचना और रचनाकार की छवि को प्रभावित करने में सक्षम होती हैं आ० कांता जी I अब ओबीओ जैसे मंच का तो यह कर्तव्य बनता है न कि नवोदितों को सही राह दिखाए I बस उसी दिशा में ही यह एक प्रयास है, आपको अच्छा लगा तो यह जानकार मुझे भी ख़ुशी हुई I 

बातें हालाँकि ’लघुकथा’ विधा के सापेक्ष कही गयी है, परन्तु, ये सारे विन्दु हर विधा के लिए सच हैं. रचनाकर्म की ऐसी स्थिति कमोबेश हर विधा के साथ है.

सॉफ़्टवेयर डेवेलपमेण्ट टीम को प्रोजेक्ट समझाते हुए अक्सर कहा करते थे जिसका कुल मतलब यह हुआ करता था कि डॉक्युमेण्ट्स को बिना पूरी तरह आत्मसात किये की-बोर्ड पर मत कूद पड़ो. 

आदरणीय, आपने एक-एक विन्दु को खोल कर दिखाया और समझाया है. 

वैसे फ़ैशन के तहत किसी विधा के चयन करने में तथा नैसर्गिक प्रतिभा के तहत अभिव्यक्ति के लिए विधा-चयन में महती अन्तर हुआ करता है. इस तथ्य को रेखांकित किया जाना आवश्यक है.

बहुत ही आवश्यक आलेख के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय योगराजभाईजी.

आपके मुखर अनुमोदन हेतु ह्रदय तल से आभारी हूँ आ० सौरभ भाई जी I आपने सॉफ़्टवेयर डेवेलपमेण्ट टीम का उदाहरण दिया तो मुझे भी याद आया कि विद्वान् ज्योतिषी भी जातक को उपायों से ज्यादा "डूज और डोंट्स" बताया करते हैं I शायद यह आलेख लिखते हुए मेरे अन्दर का ज्योतिषी कहीं न कहीं अपना काम कर रहा था I :))))))))

आदरणीय योगराज जी का हार्दिक आभार जो उन्होंने इतनी अच्छी, लाभकारी और प्रेरणादायक जानकारी प्रदान की!हमारे जैसे नये लेखकों के लिये यह एक स्वस्थ मार्ग दर्शन का प्रयास है!मुझे इस कार्य की सराहना करते हुए अति हर्ष हो रहा है!काश इस तरह का प्रयास अन्य लोग जो इस विधा से जुडे हैं, भी करें तो, निश्चय ही लघुकथा का भविष्य उज्ज्वल हो सकता है!हार्दिक धन्यवाद!

आपकी सराहना का दिल से शुक्रिया आ० तेजवीर सिंह जी I

आपके इस आलेख ने मेरी आँखें खोल दी है ,लेखन विधा से परिचित होने में ये मील का पत्थर साबित होगा ।बहुत कुछ सीखने मिलेगा आपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ।

हार्दिक आभार आ० नीता कसार जी I

आदरणीय योगराज सर, किसी भी नवोदित रचनाकार को सचेत करते और मार्गदर्शन प्रदान करते इस आलेख के लिए आपका हार्दिक आभार.

इस आलेख को पढ़कर लगा कि जैसे मुझे ही मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए आलेख  लिखा गया है. क्योकिं ये सभ कमजोरियों मुझमे बराबर विद्यमान है.  इस आलेख को कई बार पढ़ा तब जाकर केवल एक कमजोरी दिखी जो मुझमें नहीं पाई जा रही है वह है -हर जगह पोस्ट करने की भूख...... बाक़ी बिन्दुवत स्वयं,  इन गलतियों और कमजोरियों को दोहराता  हुआ पाया जा रहा हूँ. स्वयं में सुधार के लिए मुझे प्रेरित करते इस आलेख हेतु शत शत नमन.

आलेख पसंद करने हेतु हार्दिक आभार भाई मिथिलेश जी I दरअसल सोशल मीडिया से जुड़े बहुत से उदीयमान रचनाकार अभी हाल ही में ओबीओ परिवार से जुडे हैं I हालाकि उनमे से बहुत कम ही ओबीओ के अनुशासित वातावरण में स्वयं को सहज अनुभव कर पा रहे हैं, यह आलेख विशेषकर उन्हीं साथियों को ध्यान में रखकर लिखा गया है I क्योंकि "हर जगह पोस्ट करने की भूख" नामक संक्रमण ओबीओ पर तो बहुत ही कम पाया जाता है I

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
23 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
16 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
18 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service