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" क्यों मारा उसको , अब तो कोई रिश्ता नहीं बचा था तुम्हारे बीच ?
" एक रिश्ता तो था ही , नफ़रत का | मेरी बहन को जिन्दा जलाने के बाद किसी और से शादी करने जा रहा था वो "|
" पर उसके लिए तो कोर्ट से मिली सजा उसने भुगत ली थी , फिर क्यों ?
" किसी और बहन का जलना .., वो वाक्य पूरा नहीं कर पाया !
.
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on August 3, 2015 at 2:40pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी , विलम्ब से उत्तर देने के लिए छमा चाहूंगा..

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 25, 2015 at 9:34pm

वाह वाह विनय जी

बहुत सुन्दर कथा  उतनी हे सुन्दर प्र्स्तुति  

Comment by विनय कुमार on July 24, 2015 at 12:09am

बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ प्राची सिंह जी , आप को लघुकथा पसंद आई , सादर धन्यवाद ..

Comment by विनय कुमार on July 24, 2015 at 12:08am

बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , आपका अनुमोदन मिलने से प्रसन्नता होती है , सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 23, 2015 at 11:06pm

सजा मिलने से अगर फितरत बदलती दिखती तो शायद हाथ न उठता..

अर्थप्रधान सुन्दर प्रस्तुति  

हार्दिक बधाई आ० विनय कुमार सिंह जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 23, 2015 at 4:46pm

संवादों में भाव-भविष्य का वर्णन इस लघुकथा को सार्थकता देता हुआ है, आदरणीय विनयजी.  हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by विनय कुमार on July 23, 2015 at 12:42pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी , आपका कथन सही है , सादर धन्यवाद आपका..

Comment by विनय कुमार on July 23, 2015 at 12:41pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय प्रतिभा पाण्डेय जी , आपको लघुकथा ने प्रभावित किया , सादर धन्यवाद आपका .

Comment by विनय कुमार on July 23, 2015 at 12:40pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , आपको लघुकथा ने प्रभावित किया , सादर धन्यवाद आपका.

Comment by maharshi tripathi on July 22, 2015 at 10:00pm

कभी - कभी ,बड़े -बड़े अपराध करने वाले नाबालिग निकल जाते हैं और उन्हें चन्द दिनों की सजा मिलती है ,जिसने सबकुछ खो दिया हो असल पीड़ा उसे ही पता होती है| बढ़िया लघुकथा आ.vinaya kumar singh जी |

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