For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"खुदा का कहर तो खुदा का ही है पर ये सब तो हमने किया। टूटे हुए आशियाने, स्याह काले रंगों में बदलती हरियाली और उपजाऊ जमीन को बंजर करती बारूदी तबाही। आखिर दहशतगर्दी को ख़त्म करने के लिए क्या यही एक रास्ता था?" अपनी 'कमांडरशिप' में किये 'आपरेशन' के बाद इलाके को एक नज़र देखते हुए वो सोच रहा था।
इस वीरान धरती को देख, इस खेल में खुद की हिस्सेदारी के लिए, बतौर इनाम लगे तमगे भी अब उसे चुबने लगे थे। मन का बोझ जब खुद का भार सहने में नाकाम हो गया तो अश्को के रस्ते बह निकला। फलक की और देखता हुआ वो कह उठा। "ऐ मेरे मौला मुझे मुआफ़ करना, तेरी इस विरासत को तबाह करने का ख़तावार मैं ही हूँ।"
"नहीं मेरे अजीज! तूने तो अपने हिस्से का फ़र्ज़ अदा किया है।" फलक भी उसके अश्को को पोंछता हुआ बोल उठा। "शैतानी बुराई का ख़त्म करने के लिए अक्सर बहुत कुछ कुर्बान करना ही पड़ता है। और रही बात कुदरत की, तो इसका जवाब तो तेरे कदमो तले कुदरत ने खुद ही दे दिया है।"
उसने गीली आखों से नीचे देखा। बंजर तबाह जमीन पर एक ठूंठ से निकला हुआ नया कोमल पत्ता फिर से नए जीवन की घोषणा कर रहा था।

"मौलिक और अप्रकाशित"

'वीरेंदर वीर मेहता'

Views: 422

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 4, 2015 at 10:28pm

प्रकृति की मूल अवधारणा को शब्दों में स्थापित करती इस लघुकथा के लिए बधाई भाईजी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 25, 2015 at 3:00am

बहुत सुंदर लघुकथा ,आदरणीय वीरेंदर जी

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 14, 2015 at 11:22pm

''बहुत कुछ खोना पड़ता है कभी कभी बुराई के खात्मे में'' बहुत सुन्दर लघुकथा हुयी है आ० वीरेन्द्र जी हार्दिक बधाई!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 14, 2015 at 9:33am

बहुत सुंदर लघुकथा ,आदरणीय मेहता जी. सच बुराई को ख़त्म करने के लिए बहुत कुछ दाव पर लगता है. बधाई स्वीकारें

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on June 13, 2015 at 10:31pm
प्रोत्साहन के लिये आपका हार्दिक आभार आद: डा: गोपाल नारायण जी। भविष्य में भी आपके स्नेह की आकांशा लिये आपका अनुज।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 13, 2015 at 8:32pm

वीरेंद्र जी

अच्छी सोच और अच्छी कथा .

Comment by विनय कुमार on June 13, 2015 at 5:31pm

बेहद शानदार अभ्व्यक्ति । बहुत कुछ खोना पड़ता है कभी कभी बुराई के खात्मे में । आप की रचनाएँ पढ़ने में एक अलग ही सुकून मिलता है । बहुत बहुत बधाई इस रचना लिए आदरणीय Veer Mehta जी ..

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on June 13, 2015 at 4:13pm

उत्साह बढाने के  लिए  तहे दिल से आभार आदरणीय डॉ विजय शंकर जी ..

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 13, 2015 at 3:49pm

प्रेरक , बधाई, आदरणीय वीरेंद्र जी. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service