For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-59

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 59 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह हज़रत अल्लामा इक़बाल  साहब की एक बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल से लिया गया है|

 
"चिराग-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ"

122 122 122 122

फऊलुन  फऊलुन फऊलुन फऊलुन

(बह्र: मुतकारिब मुसम्मन सालिम )
रदीफ़ :- चाहता हूँ
काफिया :- आ (हवा, खुला, उड़ा आदि )

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 मई दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 23 मई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 22 मई दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 13194

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

हा हा हा ..हाँ जी सर आ गई... आपको ग़ज़ल पंसद आई जानकर खुशी हुई..आपका बहुत बहुत आभार, सादर

कहाँ जन्ऩतों का पता चाहता हूँ

खुद़ा से तुझे माँगना चाहता हूँ                       अहा! मतला पढ़ते ही वाह! निकल गई..

सुना है सितारों से आगे जहाँ है

मिले साथ तेरा सदा चाहता हूँ                       लाजवाब!

                                                                       

नहीं कोई रहबर न हमराह कोई

कि तुझसा हसीं हमनवा चाहता हूँ                    वाह वाह! क्या कहने

सितमगर नहीं क्या, यहाँ पर कोई भी

सितम पे सितम का मज़ा चाहता हूँ                  दिल लुट गया इस शेर पे!  ''हासिल-ए-गज़ल''

मेरा दिल तेरा आशना है यकीनन,

कि तुझसे भी अब ये वफ़ा चाहता हूँ                   सुन्दर!

जला रात भर तेरी यादों में दिलवर

चिराग़- ए -सहर हूँ बुझा चाहता हूँ                    सुन्दर गिरह!

तमाशा- ए- उल्फ़त से मुझको बचालो

बहुत हो गया अब विदा चाहता हूँ                    क्या बात है!                      

नहीं कोई शिकवा शिकायत लब़ों पर

कि शामो सहर बस दुआ चाहता हूँ                    सुन्दर रवायती शेर!

जमाने का बेशक चलन ये नहीं है 

मैं खुद को खुदी में डुबा चाहता हूँ                        वाह! वाह! वाह!

आज के दौर के हिसाब की बेहतरीन गज़ल !बिना भारी भरकम शब्दों के प्रयोग किये, ऐसी सुन्दर गज़ल कहना अपने आप में बहुत बड़ा हुनर है,यही कारण है कि बशीर सर!और उनकी शायरी  इतनी मकबूल है!मुझे पर्सनली ऐसा लगता है की जहाँ तक हो सके भारी-भरकम शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए!!इस गज़ल पर आपको अभिनन्दन महिमा जी!

आ. जान गोरखपूरी जी आपकी ग़ज़ल पर शेर दर शेर विस्तृत प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ...आपके इस पर दिए गए विचार ने बहुत प्रोत्साहित किया है.....सादर


कहाँ जन्ऩतों का पता चाहता हूँ
खुद़ा से तुझे माँगना चाहता हूँ........... अद्भुत ! क्या मतला हुआ है !

सुना है सितारों से आगे जहाँ है
मिले साथ तेरा सदा चाहता हूँ.........  सानी को थोड़ा और समय देना था. वैसे यह शेर बहुत ही संभावनाशील है. यह तो मुझे नहीं कहना होगा.  

सितमगर नहीं क्या, यहाँ पर कोई भी
सितम पे सितम का मज़ा चाहता हूँ.......... ओह्होह ! का हो ! ग़ज़ब !!

मेरा दिल तेरा आशना है यकीनन,
कि तुझसे भी अब ये वफ़ा चाहता हूँ............. सही है.

जला रात भर तेरी यादों में दिलवर
चिराग़- ए -सहर हूँ बुझा चाहता हूँ.................. कम्म्माऽऽल !

तमाशा- ए- उल्फ़त से मुझको बचालो
बहुत हो गया अब विदा चाहता हूँ................. अपनी छुटकी ग़ज़ल के मर्म समझ गयी है. बधाई महिमा श्री..   

जमाने का बेशक चलन ये नहीं है
मैं खुद को खुदी में डुबा चाहता हूँ..................... ये डुबा ने डूबो दिया ..

लेकिन इस ग़ज़ल के होने पर महिमा श्री दिल से दाद कह रहा हूँ.
बहुत खूब ! बहुत खूब !
 ..

9 शेर में से 7 पर नम्बर .हमममम.......बाकि दो....खैर.... 

आदरणीय सौरभ सर , नमस्कार.. आपकी उपरोक्त अशआरों पर सराहना पाकर मन प्रसन्न हैं... बहुत खूब ...तीन बार मिलता तो  और अच्छा लगता . :)  ..जी ये ...डूबो ... ही ..मुझसे ऐसे वैसे मिस्टेक हो रहते हैं....गिड़ते -पड़ते  एक दिन सुधार लूंगी....

बहुत बहुत हार्दिक आभार , सादर 

//बाकि दो....खैर ..//

हे भगवान ! .. तूँ कॉमेण्ट चहबू कि विरुदावल्ली.. हा हा हा हा..............

इस ग़ज़ल के हो जाने पर पुनः बहुत-बहुत बधाई महिमा श्री..

यदि डुबा टंकण त्रुटि है तो डूबा में डू को आवश्यकतानुसार गिराना होगा. अब डूबा के डू को गिराना मान्य है कि नहीं यह सुधीजन बतायें..

हा हा हा.. विरुदावली...

जी डूबा में डू को गिराया है मैंने... .माने की 1 2 लिया है..सादर

यदि आप विरुदवलि चाहती हैं तो सुनिये --

आदरणीया महिमा श्रीजी, आपकी ग़ज़ल के सभी शेर ! वाह-वाह-वाह !! आदरणीया, क्या परवीन शाक़िर झांकेंगीं, उनको तो चाहिये कि वो अविलम्ब आपसे इस्लाह लेना शुरु कर दें ! आपकी ग़ज़ल का एक-एक शेर, आदरणीया, आजके दौर का बेल्जियन आईना बना आँखें चकाचौंध कर रहा है ! बस आप अपने ख़यालों को यों ही शब्द देते रहें, वर्तनी और इस विधान की विधा तो खुद आपकी समझ की चेरी बनीं, अपने आप को बदलती रहेंगीं. जो आप कह दें वही नियम, जो आप लिख दें वही विधा !
वाह वाह वाह !!

हा हा हा हा............. नीमन लागल ?

माने एही के कहल जाला "विरुदवलि"  !!!!

आहि रे करम :-)))))))

:-)))))))))))))))

एक से बढ़कर एक शे'र हुआ है आ.महिमा जी, बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल। पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। बहुत बहुत मुबारकबाद।

आ. दिनेश जी... ग़ज़ल आपको पसंद आई .जानकर खुशी हुई..कहना सार्थक रहा ...आपका हार्दिक आभार, सादर

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
1 hour ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी, बहुत धन्यवाद"
1 hour ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार। हौसला बढ़ाने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रियः"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय "
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी ठीक है  मशविरा सब ही दे रहे हैं पर/ मगर ध्यान रख तेरे काम का क्या है ।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी सादर अभिवादन स्वीकार करें। अच्छी ग़ज़ल हेतु बधाई।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय मिथिलेश जी सादर नमस्कार। बहुत बहुत आभार आपका।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर नमस्कार। बहुत बहुत शुक्रियः आपका"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी सादर अभिवादन स्वीकार करें। अच्छी ग़ज़ल हेतु बधाई आपको।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सम्माननीय ऋचा जी । बहुत बहुत आभार"
3 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service