For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

है कहाँ पहचान तेरी सादगी को क्या हुआ- शिज्जु शकूर

2122/ 2122/ 2122/212

है कहाँ पहचान तेरी सादगी को क्या हुआ

शोखियों को क्या हुआ तेरी हँसी को क्या हुआ

 

मुब्तला खुदगर्ज़ियों में हो गये जज़्बात सब

क्या कहूँ अब आजकल की दोस्ती को क्या हुआ

 

रास्ते भी थम गये हैं मंज़िलें भी खो गईं

रुक गई इक मोड़ पर ये ज़िन्दगी को क्या हुआ

 

अपनी हस्ती को मिटाता जा रहा है बेखिरद

किसको फुरसत सोचने की आदमी को क्या हुआ

 

सुब्ह पहले सी नहीं मौसम भी पहले सा नहीं

हो गई बोझिल हवायें ताज़गी को क्या हुआ

 

नर्मियाँ पहले सी अब तेरी शुआओं में नहीं

ये बता ऐ चाँद तेरी रौशनी को क्या हुआ

 

टूटती ही जा रही है डोर अब उम्मीद की

ये नहीं मालूम मेरी पुख़्तगी को क्या हुआ

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 871

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 1, 2015 at 8:05pm

आदरणीय सौरभ सर सर्वप्रथम विलम्ब के लिये मुआफी चाहता हूँ। 

रचना पर आपकी उपस्थिति सदैव उत्साहवर्धन करती है। आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने रचना को सराहा एवं इस्लाह के लिये भी आपका तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 18, 2015 at 5:22pm

भाई शिज्जूजी, आपकी ग़ज़ल के अश’आर दिलखुश कर गये. दाद कुबूल कीजिये.

मतले में सादगी को खुशदिली क्यों न करें ?

है कहाँ पहचान तेरी खुशदिली  को क्या हुआ

शोखियों को क्या हुआ तेरी हँसी को क्या हुआ


शोखियों और हँसी की बेतकल्लुफ़ी के साथ सादगी मुझे फिट नहीं लगी. आप समझियेगा, मैं क्या कहना चाह रहा हूँ.


भाई, जाने क्यों आपकी ग़ज़ल पढ़ते हुए अनायास यह गीत होठों पर आ गया -
वक़्त इनसान पे ऐसा भी कभी आता है
राह में छोड़के साया भी चला जाता है
दिन भी निकलेगा कभी रात के आने पे न जा

ग़ज़ल के लिए शुक्रिया..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 17, 2015 at 7:01pm

आदरणीय वीनस जी रचना को समय देने के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 17, 2015 at 7:00pm

आदरणीय निर्मल नदीम जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 17, 2015 at 2:58pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी रचना की सराहना के लिये आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 17, 2015 at 2:57pm

आदरणीया माला झा जी रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 17, 2015 at 2:57pm

आदरणीया कांता रॉय जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 17, 2015 at 2:56pm

आदरणीय गिरिराज सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 17, 2015 at 2:56pm

आदरणीय श्री सुनील जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 17, 2015 at 2:39pm

आदरणीय विजय निकोर सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
13 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service