दादीसा के भजनों जैसी मीठी दुनिया
पहले जैसी कहाँ रही अब अच्छी दुनिया
प्यार मुहब्बत , भाईचारे ,मानवता की
नहीं समझती बातें सीधी सादी ,दुनिया
दिन सी उजली रातें भी हो जाये यारों
अँधियारे में रहे भला क्यूं आधी दुनिया
घर से ऑफिस ऑफिस से घर फिर कुछ ग़ज़लें
सिमट गई है इतने में ही मेरी दुनिया
नटखट बच्चे घर की खटपट मेरी बाँहें
कितनी छोटी सी है यारों उसकी दुनिया
शहरों में है झूठे दर्पण दरके रिश्ते
गाँवों में है झील सरीखी सच्ची दुनिया
धर्म दीन की गाँठें बाँधी सरल दिलों में
अपने जाले में आखिर ख़ुद उलझी दुनिया
मैंने सच्ची कुछ बातें फिर दुहराई तो
मुझको कहती है दीवाना पगली दुनिया
जाने कब 'खुरशीद' निखारोगे तुम आकर
देहातों की घोर अँधेरी काली दुनिया
Comment
आदरणीय विजयशंकर सर ,हार्दिक आभार |सादर
आदरणीय गिरिराज सर , आ. राहुल साहब ग़ज़ल पर प्यार बरसाने के लिए हृदय तल से आभारी हूं |
नटखट बच्चे घर की खटपट मेरी बाँहें
कितनी छोटी सी है यारों उसकी दुनिया
राहुल भाई यहाँ उसकी ,बच्चों के लिए नहीं अपितु सहधर्मिणी (जीवनसंगिनी ) के लिए आया है ,जिसकी दुनिया बहुत छोटी हैं लेकिन उसका ह्रदय विशालतम है ,मेरा सविनय अनुरोध है पुनः शेर को गुनगुनाने की कृपा करें |सादर
शहरों में है झूठे दर्पण दरके रिश्ते
गाँवों में है झील सरीखी सच्ची दुनिया
धर्म दीन की गाँठें बाँधी सरल दिलों में
अपने जाले में आखिर ख़ुद उलझी दुनिया
जाने कब 'खुरशीद' निखारोगे तुम आकर ---
देहातों की घोर अँधेरी काली दुनिया
बहुत खूब अश आर हुये हैं आदरणीय खुर्शीद भाई , लाजवाब गज़ल के लिये बधाइयाँ
स्वीकार करें ।
आदरणीय मिथिलेश जी , गुमनाम सर ,ग़ज़ल पर प्यार बरसाने का आभार |आपका यही प्यार मेरे अशहार को माँजता है ,सँवारता है |सादर
आदरणीय हरिप्रकाश सर , आ. सोमेश भाई , आदरणीय श्याम नारायण जी , तहेदिल से आप सभी का शुक्रगुज़ार हूं |स्नेह बनाये रखियेगा |सादर आभार |
इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आपको |
दादीसा के भजनों जैसी मीठी दुनिया
पहले जैसी कहाँ रही अब अच्छी दुनिया .............. बेहतरीन मतला
घर से ऑफिस ऑफिस से घर फिर कुछ ग़ज़लें
सिमट गई है इतने में ही मेरी दुनिया ...... क्या अशआर हुआ है लगा जैसे मैं कहना चाह रहा था लफ्ज़ आपने दे दिए.
नटखट बच्चे घर की खटपट मेरी बाँहें
कितनी छोटी सी है यारों उसकी दुनिया ..... बेहतरीन ... उस छोटी सी मासूम दुनिया के साथ का पूरा अवसर ही नहीं मिलता ... हाय रे ये भाग दौड़ का जीवन ...
शहरों में है झूठे दर्पण दरके रिश्ते
गाँवों में है झील सरीखी सच्ची दुनिया ......... उम्दा अशआर
धर्म दीन की गाँठें बाँधी सरल दिलों में
अपने जाले में आखिर ख़ुद उलझी दुनिया .... क्या खूब कहा है आपने ... बिलकुल सच्ची बात ... अब झेलो वाले हालात
जाने कब 'खुरशीद' निखारोगे तुम आकर
देहातों की घोर अँधेरी काली दुनिया .......... मक्ता भी कमाल हुआ है.
आदरणीय खुर्शीद सर आप बस कमाल कर रहे है ... लग रहा है खजाने के द्वार खोल दिए है ...एक से एक कीमती रत्न बाहर आ रहे है. आपकी गज़लें पढ़कर बस झूम जाता हूँ .. हमेशा शब्द कम पडने लगते है .... बस इस ग़ज़ल पर दिल से दाद कुबूल फरमाएं ....
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