For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मरघट का जिन्न (कहानी)

दो मित्र थे, |शेरबहादुर और श्रवणकुमार | नाम के अनुसार शेरबहादुर बहुत वीर और निर्भीक थे ,अन्धविश्वास से अछूते ,बिना विश्लेषण किसी घटना पर यकीन नहीं करते |दुसरे शब्दों में पुरे जासूस थे |बाल की खाल निकालना और अपनी और दूसरों की फजीहत करना उनका शगल था |श्रवणकुमार नाम के अनुसार सुनने की विशेष योग्यता रखते थे |एक तरह से पत्रकार थे ,मजाल है गाँव की कोई कानाफूसी उनके कानों से गुजरे बिना आगे बढ़ जाए |तीन में तेरह जोड़ना उनकी आदत थी इसलिए नारदमुनि का उपनाम उन्हें मिला हुआ था |पक्के अन्धविश्वासी और डरपोक थे |भूत-प्रेतों में उनकों पूरा विश्वास था |

एक रोज़ तलाब के किनारे दोनों दोस्त बैठे थे |तालाब से कुछ दुरी पर गाँव का मरघट था |

“ पता है शेरा ! इस मरघट पे रात में भूत-चुड़ैल विचरते हैं |कल ही धीरुआ खेत में पानी लगाकर लौट रहा था | बताता है की सफ़ेद साड़ी वाली दो मेहरिया खड़ी बात कर रही थीं |इसकों देखीं ती इसी तरफ आने लगीं ,वो तो हनुमानजी का नाम लिया और सरपट दौड़ गया |घर आकर ही रुका |अभी तक ज्वर नहीं गया ,बडबडा रहा है ,ओझा कान में पीपल का बीड़ा डाले तो कबूला है |”
“ चल !ये सब वहम है |हम साइंस पढ़े हैं |ये सब नहीं मानते |मनोरंजन के लिए मनगढंत कहानियाँ ,तू भोला-भाला सबकी बातों में आ जाता है “-शेरबहादुर बोला |

"ऐसा है तो अपनी बात साबित कर "श्रवणकुमार ने चुनौती दी 

“ बता क्या करना है ?”शेरबहादुर जोश में आ गया |

“खूंटा गाड़ना है ,रात को ,मरघट के पुराने पीपल के नीचे और तू बिल्कुल अकेला जाएगा |”

“ मंजूर | पर क्या तू नहीं आएगा ?”

“ मैं यहाँ सिवान पर रामदीन लठैत के साथ रहूँगा |अगर कोई संकट आया तो पुकार लेना |”

“मंजूर !देखना मैं सही साबित होऊंगा |”उसने सीना फुलाते हुए कहा |

शर्त के मुताबिक अर्ध-रात्रि को वो तीनों सीवान पहुँचे |शेरबहादुर हथौड़ा और खूंटा लिए मरघट की तरफ बढ़ा |काली रात थी | आसमान में चमगादड़ रेंग रही थीं और उनके उड़ने से प्रेतों की आकृति प्रतीत होती थी |सियार हुआ-हुआ के गीत से शिकार का स्वागत कर रहे थे |एक ढीठ काला कुत्ता मरघट के पास कुछ खोद रहा था |

“पिशाच लाशें निकाल कर खा जाते है “उसे श्रवणकुमार की बात याद आई और हल्की सी थरथरी हुई |

“नहीं-नहीं ये सब वहम है “उसने खुद को समझाया और साँस सम्भालकर पीपल के नीचे आ गया |

“ठक-ठक-ठक-ठक” ये गड़ा खूंटा |उन्होंने माथे का पसीना पोंछा ,हथौड़ा एक तरफ फैंका और विजय-सुचना में टार्च को जलाया-बुझाया |हथौड़ा उठाकर चलने को हुए कि –‘अरे मेरी धोती ,छोड़-छोड़ ,कौन है ?” तभी हवा का तेज़ झोंका आया |पीपल की पत्तियां सरसराने लगी |उस पर रहने वाले कुछ परिंदे चीख उठे |पीछे मुड़कर देखने की हिम्मत उन्हें  नहीं हुई |थरथर कांपने लगे| टार्च हाथ से छुटकर गिर गई |

“अरे बचाओं रे !बचाओं रे ! चिल्लाते हुए धोती छोड़कर भागे |बिना धोती के रामदीन को भागता-चिल्लाता देख श्रवणकुमार रामदीन से बोला –“मरघट का कोई जिन्न दौड़ा आ रहा है ,भाग लो |”पूरा गाँव जिन्न की दहशत से जाग उठा |पर रात को किस में  था की जिन्न का सामना करे |

सुबह सारा गाँव लेकर श्रवणकुमार शेरबहादुर के घर पे इकट्ठे हो जाते हैं |

“कैसा था हो ?क्या बड़े-बड़े नाख़ून-दांत थे ?”श्रवणकुमार ने पूछा |

“हम नहीं देखें |उसने धोती पकड़ी और हम छोड़ कर भाग आए |”

“भईया मरघट पे तो एक सफ़ेद धोती पड़ी दिख रही थी |”तालब पर निपंटने गए तो देखा था एक ग्रामीण बोला 

शेरबहादुर और कुछ और लोग पीपल के नीचे पहुँचे| |कुत्ते धोती को फाड़कर ईधर-उधर टुकड़े लेकर भाग रहे थे |तभी सबकी नजर एक बड़े टुकड़े पर गई |उसका एक छोर खूंटे से दबा पड़ा था |टार्च भी वहीं पास में गिरी पड़ी थी |शेरबहादुर छाती उचककर बोले –“देखों श्रवण ,कहता था ना-भूत-प्रेत -जिन्न नहीं होते - - - “

सभी मुँह दबाकर हंसने लगे और शेरबहादुर अपनी मूंछों को मरोड़ने लगे  |  

सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )  

Views: 31021

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 30, 2014 at 4:43pm

अच्छी  प्रस्तुति  के लिए  बधाई  श्री  सोमेश  कुअमार  जी 

Comment by harivallabh sharma on November 28, 2014 at 11:58pm

प्राचीन कहानी में पात्र कथानक का सामंजस्य उत्तम लगा...उत्तम संवाद भी प्रभावी हैं..अच्छी कहानी हेतु बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 27, 2014 at 9:22pm

मुझे तो कहानी में बहुत मजा आया ....हार्दिक बधाई 

Comment by somesh kumar on November 27, 2014 at 8:41pm

शुक्रिया ,योगराज सर ,आपके मार्गदर्शन से अवश्य सुधार आएगा शायद थोड़ा वक्त लगे |हरि भाई शुक्रिया ,शुक्रिया जवाहरलाल भाई जी ,मैंने भी ये किस्सा अपने एक सहकर्मी के जरिए सुना था  बस इसे अपनी तरह से कहने की कोशिश की है |

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on November 27, 2014 at 7:00pm

आदरणीय सोमेश कुनार जी, हालाँकि यह कहानी पुरानी है फिर भी अच्छी प्रस्तुति के लिए आपको बधाई !

Comment by Hari Prakash Dubey on November 27, 2014 at 5:33pm

सोमेश कुमार जी,आंचलिक पात्रों का सजीव चित्रण ,सुन्दर ..हार्दिक बधाई


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 27, 2014 at 2:32pm

बढ़िया कहानी कही है भाई सोमेश कुमार जी, भाषा एवं शैली पर थोड़ा और ध्यान देने की आवशयकता है। बहरहाल, मेरी हार्दिक बधाई अवश्य स्वीकारें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service