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ग़ज़ल:वो भूलने का असर यादगार से कम था(भुवन निस्तेज )

कहाँ तूफान था वो तो बयार से कम था
वो भूलने का असर यादगार से कम था

खयाल आते ही मुरझाये फूल खिलते थे
गुमाँ-ए-वस्ल कहाँ इस बहार से कम था

छुपाके अश्क तबस्सुम उधार ले ली थी
कहाँ ये चेहरा मेरा इश्तेहार से कम था

वो याद मुझको किये रात दिन रहा ऐसे
मेरा रक़ीब कहाँ तेरे यार से कम था

खरीददार सा आँखों में रौब था सब के
वो घर कहाँ किसी चौक-ओ-बाज़ार से कम था

  मैं ग़मज़दा था, मै निस्तेज था औ' घायल भी
मैं मुन्तसिर था मगर अब की बार से कम था

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 655

Comments are closed for this blog post

Comment by भुवन निस्तेज on October 9, 2014 at 2:36pm

आदरणीय गिरिराज साहब देर साने केलिए क्षमा चाहता हूँ. साथ ही क्षमाप्रार्थी भी की मैं ग़ज़लों में अक्सर मात्राओं का उल्लेख नहीं कर पाता. इस रचना के लिए मैंने १२१२ ११२२ १२१२ २२ मात्राओं के अनुसार तक्तीअ की है...

Comment by भुवन निस्तेज on September 4, 2014 at 10:49pm

आदरणीय वीनस भाई आपका बेहद धन्यवाद, आपकी इस्सलाह पर गौर करूँगा....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 10, 2014 at 9:08am

कहाँ तूफान था वो तो बयार से कम था
वो भूलने का असर यादगार से कम था

खयाल आते ही मुरझाये फूल खिलते थे
गुमाँ-ए-वस्ल कहाँ इस बहार से कम था

छुपाके अश्क तबस्सुम उधार ले ली थी
कहाँ ये चेहरा मेरा इश्तेहार से कम था  ---- आदरणीय भुवन भाई , इन लाजवाब अश'आर के लिए आपको दिली बधाइयाँ |

आपने बहर का उल्लेख नहीं किया है , अंतिम दो शे र में या तो बहर की या रवानी की कमी लगा रही है | अगर सुधर जाए तो पूरी ग़ज़ल में मजा आ जाए |

 

Comment by वीनस केसरी on August 7, 2014 at 3:07am

भुवन साहब,
अच्छी ग़ज़ल हुई है, मुबारकबाद 
चंद मिसरे और रवां-दवां होते तो लुत्फ़ दोबाला हो जाता

Comment by भुवन निस्तेज on August 5, 2014 at 3:33pm

आदरणीय गुमनाम भाई, बहुत बहुत शुक्रिया,आपने इस रचना को सराहा,

पर समझ में नहीं आ रहा इस बार इतना सन्नाटा क्यों छाया है?

Comment by gumnaam pithoragarhi on August 1, 2014 at 3:54pm

छुपाके अश्क तबस्सुम उधार ले ली थी
कहाँ ये चेहरा मेरा इश्तेहार से कम था

waah sir ji khoob gazal hui hai,,,,,,,,,,,,,

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