प्यार जिससे भी आप करते है
जिसकी खातिर सदा संवरते हैं
ख़्वाब में सामने भी आये तो
कुछ भी कहने में आप डरते हैं
जितना ज्यादा हैं सोचते उनको
वैसे वैसे ही वो निखरते हैं
इस सियासत के दांव पेंचों में
कितने मासूम हैं जो मरते हैं
आशिकी का यही उसूल रहा,
करती नजरें है आप भरते हैं
आँख रोने को जरूरी तो नही
अश्क गजलों से भी तो झरते हैं
अनुराग सिंह "ऋषी"
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
अच्छा प्रयास है! भाई, बहर का जिक्र कर दिया करें! इस अभिव्यक्ति के लिए बधाई!
परम आदरणीय डॉ. साहब हौसला आफजाई के लिए ह्रदय से धन्यवाद स्नेहाशीष मिलता रहेगा ऐसी कामना करता हूँ
सादर नमन
बड़ा ही शानदार मक्ता है i ग़ज़ल के लिया बधाई i
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ह्रदय से आभार आपका स्नेह बनाये रखें
सादर
आदरणीया महिमा श्री जी बहुत बहुत धन्यवाद आपको
सादर
आदरणीय अनुराग भाई बधाई
आँख रोने को जरूरी तो नही
अश्क गजलों से भी तो झरते हैं .. बहुत ही बढिया
आँख रोने को जरूरी तो नही
अश्क गजलों से भी तो झरते हैं .. बहुत ही बढिया आदरणीय अनुराग जी बधाई आपको ..
आदरणीया कुन्ती मुखर्जी जी बहुत बहुत आभार आपका
सादर
आँख रोने को जरूरी तो नही
अश्क गजलों से भी तो झरते हैं..........वाह क्या बात है.
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