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आशीर्वाद ( लघु कथा )

आशीर्वाद !!

 

वह कोई नब्बे के आस पास वृदधा रही होगी जो सामान सहित अपने ही घर के बाहर बैठी थी न जाने क्या अँड बंड बड़बड़ा रही थी । लोग सहनुभूति से देखते और और चल देते किसी ने हिम्मत भी की उससे जानने की तो वह ठीक ठीक नहीं बता पा रही थी । पता नहीं क्रोध की अधिकता थी या ममता और दुःख का मिश्रित भाव था जो शब्द न निकल रहे थे । बेटा कुछ दिनों से बाहर गया हुआ था और घर पर बहू अकेली थी , उस बेचारी बूढ़ी सास को उसकी बहू ने अपनी आफत समझ कर घर से बाहर कर कर दिया था । बूढ़ी सास बाहर बैठी बेटे का इंतजार कर रही थी कि बेटा आयेगा और वह उसकी व्यथा को समझेगा , बेटा आया माँ को बाहर समान सहित बैठे देखा लेकिन उसने एक नजर भी माँ पर न डाली चुपचाप अंदर चला गया । अंदर जाते ही पत्नी ने रो रो कर अपनी गाथा कह सुनाई । थोड़ी देर बाद बेटा बाहर आया , माँ ने सोचा शायद मुझे ले जाने आया है । परंतु यह क्या ? वह तो उसका समान ही उठा ले चला । माँ ने देखा बेटा घर मे न जा बाहर की ओर जा रहा है , बाहर आकार उसने एक रिक्शा रोका उसमे उनका समान रख दिया । माँ आवक सी उसे देखती रही कि वह क्या कर रहा  है । उसने रिक्शे वाले से कहा ये जहां कहे उन्हे वहाँ छोड़ देना और वह घर के अंदर चला गया । बेबस माँ के मुंह से केवल एक ही शब्द निकला – “जीते रहो बेटा , सुखी रहो । “

अप्रकाशित एवं मौलिक 

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 17, 2013 at 11:43pm

कहानी यथार्थ के करीब लगनी चाहिए, इस कथा को पढ़ने के बाद पता नहीं क्यों बनावटी जैसा महसूस हो रहा है, सादर । 

Comment by annapurna bajpai on October 17, 2013 at 11:33pm

आदरणीय सौरभ जी आपकी टिप्पणी मनोबल को दूना कर देती है आपका हार्दिक आभार । सादर । 

Comment by annapurna bajpai on October 17, 2013 at 11:31pm

आदरणीय शिजू जी आपका हार्दिक आभार । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 3:13am

कथ्य सीधे-सीधे अपने आप बढ़ता जाता है और अंत करीब-करीब प्रेडिक्टेड सा है.

आपकी लघुकथाओं की प्रतीक्षा रहेगी, आदरणीया.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 16, 2013 at 7:09pm

विश्वास ही नही होता कि कोई इतना निर्मम और अहसान फरामोश हो सकता है, जो माँ की ममता को न समझे वो इंसान कहलाने के लायक ही नही,  आदरणीया अन्नपूर्णा जी इस मर्मस्पर्शी रचना के लिये बधाई 

Comment by annapurna bajpai on October 16, 2013 at 6:54pm

आदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on October 16, 2013 at 6:53pm

आदरणीय आशुतोष जी अपने आसपास हो रही घटनाओं को देख कर ही लिखने की प्रेरणा मिलती है ये कथा एक टीवी चैनल पर देखि हुई न्यूज के आधार पर लिखी गई है । आपका हार्दिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on October 16, 2013 at 6:50pm

आदरणीय बृजेश जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on October 16, 2013 at 6:49pm

अदरणीय जितेंद्र जी आपका हार्दिक आभार यूं ही स्नेह बनाए रखें । सादर

Comment by annapurna bajpai on October 16, 2013 at 6:48pm

आदरणीय निकोर जी आपका हार्दिक आभार , आपका आशीर्वाद यूं ही टिप्पणी के रूप मे मिलता रहे । सादर । 

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