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!!! फकीरी में विरासत है !!!

जगो जालिम बढ़ो देखो
मिलन की र्इद आयी है,
दिवा से शाम तक सजदा
रात में तीर कसता है।


भुलाकर प्रेम की बातें
बढ़ाता द्वेष भावों को,
खुदा की शान को गाये
संभाले दीन की राहें।


मगर आयत भुला कर तू
सदा हैरान करता है,
करम है कत्ल अपनों का
बना तू पीर फिरता है।


गुनाहों को छिपाता है
खुदा को ताख में रखता,
चलाता तीर औ खंजर
नमाजी बन करे धोखा।


करे है घाव नश्तर से
छुरा बस पीठ में भोंके,
कहे अपना वतन-मजहब
मगर कातिल तु अपनो का।


नहीं आवाज होती है
खुदा की मार में साथी!
तुझे कब इल्म मौला का
फकीरी में विरासत है।

के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 15, 2013 at 11:49pm

करे है घाव नश्तर से
छुरा बस पीठ में भोंके,
कहे अपना वतन-मजहब
मगर कातिल तु अपनो का।.....वास्तविकता लिए हुयी पंक्तियाँ

बहुत सुंदर भाव , बधाई आदरणीय केवल जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 15, 2013 at 8:19pm

वाह !!! केवल भाई ,बहुत बढ़िया भाव , बहुत अच्छी रचना के लिये बधाई !!

करे है घाव नश्तर से
छुरा बस पीठ में भोंके,
कहे अपना वतन-मजहब
मगर कातिल तु अपनो का। ---------  क्या बात है , वाह !!!

Comment by annapurna bajpai on September 15, 2013 at 6:55pm

करे है घाव नश्तर से
छुरा बस पीठ में भोंके,
कहे अपना वतन-मजहब
मगर कातिल तु अपनो का। ......


नहीं आवाज होती है
खुदा की मार में साथी!
तुझे कब इल्म मौला का
फकीरी में विरासत है।.............. अत्यंत सुंदर पंक्तियाँ , बहुत बधाई आ0 केवल भाई जी ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 15, 2013 at 5:00pm

तमाम रहस्यों को उजागर करती शसक्त रचना ..हार्दिक बधाई के साथ 

Comment by Abhinav Arun on September 15, 2013 at 12:59pm

सावधान और सचेत करती इस जागृत रचना के लिए साधुवाद और बधाई श्री सत्यम जी

कृपया ध्यान दे...

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