For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जैसे टूटता  तटबंध 

और डूबने लगते बसेरे 

बन आती जान पर 

बह जाता, जतन से धरा सब कुछ 

कुछ ऐसा ही होता है 

जब गिरती आस्था की दीवार 

जब टूटती विश्वास की डोर

ज़ख़्मी हो जाता दिल 

छितरा जाते जिस्म के पुर्जे 

ख़त्म हो जाती उम्मीदें 

हमारी आस्था के स्तम्भ 

ओ बेदर्द निष्ठुर छलिया ! 

कभी सोचा तुमने 

कि अब  स्वप्न देखने से भी 

डरने लगा  इंसान 

और स्वप्न ही  तो हैं 

इंसान के ज़िंदा रहने की अलामत....

स्वप्न बिना कैसा जीवन?

(मौलिक अप्रकाशित )

Views: 636

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राजेश 'मृदु' on September 4, 2013 at 5:58pm

बहुत ही सुंदर गठन के साथ प्रस्‍तुत इस रचना के रचनाकार को सादर नमन

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 8:42am

हमारी आस्था के स्तम्भ 

ओ बेदर्द निष्ठुर छलिया ! 

कभी सोचा तुमने 

कि अब  स्वप्न देखने से भी 

डरने लगा  इंसान 

और स्वप्न ही  तो हैं 

इंसान के ज़िंदा रहने की अलामत....

स्वप्न बिना कैसा जीवन?.................... सच स्वप्न बिल जीवन कैसा
सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई

Comment by बृजेश नीरज on September 3, 2013 at 10:52pm

विश्वास पहला पायदान है आस्था के लिए। आस्था को जब चोट पहुंचती है तो एक बारगी बहुत कुछ छिन्न भिन्न हो जाता है। इस बिखराव को बटोरना बहुत कठिन होता है।
इस सुन्दर रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई!

Comment by रविकर on September 3, 2013 at 7:56pm

सच है आदरणीय-
स्वप्न बिना कैसा जीवन-
आस्था का छल -

Comment by विजय मिश्र on September 3, 2013 at 5:08pm
अनवर भाई ,सही में बगैर सपने की जिंदगी तो बेबसी और सुबक से बिला कुछ भी नहीं हो सकती .अच्छी रचना , बधाई .
Comment by annapurna bajpai on September 3, 2013 at 4:10pm

बह जाता से धरा सब कुछ.......................  इस पंक्ति को ऐसे लिखें ...... बह जाता धरा से सब कुछ । 

आदरणीय अनवर जी बाकी आपकी रचना सुंदर है , बधाई स्वीकारें । सादर । 

Comment by ram shiromani pathak on September 3, 2013 at 3:14pm

सुन्दर प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकार करें,  सादर

Comment by Shyam Narain Verma on September 3, 2013 at 12:48pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 3, 2013 at 9:08am

आ0 अनवर भाई जी,  सादर प्रणाम! अतिसुन्दर प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकार करें,  सादर,

Comment by aman kumar on September 3, 2013 at 9:02am

इंसान के ज़िंदा रहने की अलामत....

स्वप्न बिना कैसा जीवन

अति सुंदर 

सच दिल तक गयी है !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service