For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

याद आ गया फिर

मुझे मेरा बचपन ,

पिता  की उंगली थामे,

नन्हें कदमों से नापना,

दूरियाँ, चलते चलते ,

वो थक कर बैठ जाना ,

झुक कर फिर पिता का ,

मुझको गोदी उठाना ,

चलते चलते मेहनत का,

पाठ वो धीरे से समझाना ।

 

बच्चों पढ़ना है सुखदाई,

मिले इसी मे सभी भलाई,

पहले कुछ दिन कष्ट उठाना,

फिर सब दिन आनंद मनाना,

फिर आ गया याद, 

 उनका ये  गुनगुनाना ,

सिर पर वो उनका हाथ,

भर देता है मुझमे नई,

उमंग,तरंग और स्फूर्ति ।

 

एक हूक सी उठती है ,

आज उनको न अपने,

पास पाती हूँ ,

साया सा महसूस करती हूँ,

 इर्द गिर्द वो शायद ,

मेरे पिता का साया है ,

 किसी कष्ट मे  उनको

अपने पास ही पाया है ,

खुशियों मे उनको दूर ,

मुसकुराते पाया है ।

 

 

आज वो आँगन ,

एकदम खाली सा लगता है,

वो घर भी अब,

अजनबी सा लगता है ,

जिस के हर कोने मे ,

बसते थे मेरे पिता ...... अन्नपूर्णा बाजपेई

 

अप्रकाशित एवं मौलिक        

Views: 671

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by annapurna bajpai on July 25, 2013 at 5:09pm

आदरणीय गुरु जी एवं आदरणीय आशुतोष मिश्रा जी उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 25, 2013 at 6:38am

सचुमुच पिता का कोई बिकल्प नहीं है ..हर बच्चे की जिन्दगी में एक अहम् भूमिका होती है पिता की ..बहुत ही भाव प्रवणता के साथ उभारा है आपने अपने शब्दों के माध्यम से ..ढेर सारी बधाई के साथ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 24, 2013 at 11:28pm

भावपूर्ण रचना प्रयास पर अतिशय बधाइयाँ, आदरणीया.

शुभ-शुभ

Comment by annapurna bajpai on July 23, 2013 at 7:40pm

adarniya vinita ji apka hardik abhar .

Comment by annapurna bajpai on July 23, 2013 at 7:40pm

adarniy laxaman prasad ji apka bahut abhar .

Comment by Vinita Shukla on July 23, 2013 at 7:33pm

सुन्दर और प्रेरक भावों से सज्जित रचना. बधाई अन्नपूर्णा जी.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 23, 2013 at 7:33pm

पिता का साया जिस दिन उठ जाता है, परिवार अनाथ सा महसूस करता है, घर आँगन खाली खाली सा लगता है,

कुछ दिन स्वजन अनमने से रहते है | इस भावो को सुन्दर रचना के माध्यम से प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक 

बधाई स्वीकारे  अनुपमा बाजपई जी | सादर 

Comment by annapurna bajpai on July 23, 2013 at 6:00pm

aap sabhi adarniy mitron ko dhanyvad .

Comment by Shyam Narain Verma on July 23, 2013 at 11:29am
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ...
Comment by बृजेश नीरज on July 22, 2013 at 11:29pm

बहुत भावपूर्ण रचना। आपको इस सुन्दर प्रयास पर हार्दिक बधाई!
रचना को कुछ समय और दीजिए। एडीटिंग से यह और निखर आएगी।
सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service