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मुझे क्यूं लगता है , तुम्हे खो दुंगा ,
तुम्हें पा लिया है ,
ये भी तो मात्र एक भ्रम है !
जाने क्यूं लगता है ,रो दुंगा ,
ये भी तो मात्र एक भ्रम है !
नदी के किनारों सा,
साथ चलते चलते ,
क्यूं समझता हूँ ,मिलन होगा !
अनवरत साथ बह पा रहा हूँ ,
ये भी तो मात्र एक भ्रम है !
जाने क्यूं समझता हूँ ,
तुम, ये, वो सब मेरा है !
शाशवत सच ये कहता है ,
जो भोग लिया वो सपना है ! ,
जो उकेर दिया भाव ,वो अपना है !
प्रकृति का मात्र यही एक क्रम है !
भी तो मात्र एक भ्रम है !
क्यूं यादों में खो जाते हैं ,
याद उन्हें कर जाते हैं ,
बगैर किसी के चाहे भी ,
ख्वाबों में बसा जाते हैं !
बिन उनके जी नही पायेंगे ,
प्यार का , ये कैसा क्रम है ,
जो सच ना होकर ,
मात्र मन का ही भ्रम है !
जीवन का हर छोटा पल ,
माँ की याद दिलाता है !
साया सा हरदम उसका,
निशछल अहसास कराता है !
प्यार भरी ममता के आगे ,
सब बौना रह जाता है,
यही मात्र एक ऐसा क्रम है ,
जो भ्रम नही , एक सच्चा क्रम है !

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
                        हँस रहा हूँ ,

Views: 363

Comment

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Comment by Shyam Narain Verma on June 19, 2013 at 10:36am
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ..................
Comment by Meena Pathak on June 17, 2013 at 6:07pm

बहुत सुन्दर रचना .. सादर 

Comment by राजेश 'मृदु' on June 17, 2013 at 1:33pm

अच्‍छी लगी आपकी ये रचना । एक दार्शनिक अंदाज में आपने सारी बातें कही है,सादर

Comment by Pragya Srivastava on June 17, 2013 at 10:38am

बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 16, 2013 at 7:07pm
आदरणीय..बहुत भावपूर्ण पंक्तियां, सुंदर रचना...हार्दिक शुभकामनाऐं
Comment by coontee mukerji on June 16, 2013 at 5:46pm

बहुत सुंदर / सादर / कुंती.

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