For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय प्रबंधन टीम एवं सभी प्रबुद्ध सदस्यों को मेरा नमस्कार , अभी कुछ दिनों से ही मैं ओ बी ओ से जुड़ा हूँ अभी ज्यादा नही समझ पाया हूँ ! ऐसे ही कुछ ना कुछ लिखता रहता हूँ जो हमारे समाज के पाक्षिक अखबार में प्रकाशित हो जाता है और ना होता है तो अपने बनाये ब्लॉग पर लिख देता हूँ !
ओ बी ओ सदस्य बनने बाद लगता है मेरे जैसे नौसिखीये को यहाँ बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त हो सकेगा !
आशा ही नहीं विश्वास है आप मेरी त्रुटियों को माफ करते हुए मेरा उचित मार्ग दर्शन करेंगे ।
मैं अपनी पहली रचना के रूप में एक कविता यहाँ लिख रहा हूँ !

धन्यवाद

  •      आपको भावुक कर दूं , 

                          ऐसा मेरा मकसद नही !
           आपसे बढ़ाई के दो बोल सुनु ,
                          ऐसी मेरी फितरत नही !
           कोशिश मात्र इतनी है ,
                         मन के भाव बतला सकूं !
           दिल में छिपा है क्या ,
                        आपको भी दिखला सकूं !!

  •      कलम की रफतार दिखला सकूं , 

                       एक क्षण ही सही,
           आपकी चिंताएं मिटा सकूं !
                        पढ़कर आप मुस्कुराएं ,
           तो पीठ अपनी थपथपा सकूं !!
                     दिल में छिपा है क्या , आपको भी दिखला सकूं !!

  •      मन की पीड़ा मिटा सकूं , 

                        कुछ राहत मन को दिला सकूं !
           चारों और खिंच गई ,
                        हर दीवार गिरा सकूं !
           सालों से जमती रही ,
                         मन की गर्त हटा सकूं !!
           दिल में छिपा है क्या , आपको भी दिखला सकूं !!

  •     चाहता हूँ ,मन को अपने,

                     मस्ती में लहरा सकूं !
           विदाई में तुम्हारे ,
                      हाथ मैं भी हिला सकूं !
          सीने में क्या छिपा है ,
                      बिना चीरे ही दिखला सकूं !
           दिल में छिपा है क्या , आपको भी दिखला सकूं !!

  •     चाहता हूँ ,

          जीवन में लगी तमाम शर्तो को,
                       एक ही पल में हटा सकूं !
          फिर से जीने के लिए,
                      नई बुनियाद बना सकूं !
          अनजाने में बन गई ,
                     हर दूरी मिटा सकूं !
          यादों में तुम्हारी खो, दो बोल गुनगुना सकूं !!
             कोशिश मात्र इतनी है ,
          दिल में छिपा है क्या , आपको भी दिखला सकूं !!

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 568

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijayashree on June 13, 2013 at 2:10pm

सुंदर चित्रण ........हार्दिक बधाई

Comment by वीनस केसरी on June 11, 2013 at 3:52pm

haardik shubhkaamnaayen 

Comment by Sumit Naithani on June 10, 2013 at 12:21pm

बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति .........बधाई

Comment by Pragya Srivastava on June 10, 2013 at 11:24am

बहुत खूब...........................बधाई

Comment by कल्पना रामानी on June 8, 2013 at 11:08pm

सुंदर भावपूर्ण कविता के लिए बधाई आपको...

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 8, 2013 at 9:42pm

सुन्दर रचना और सुंदर भाव मेरी बधाई हो स्वीकार!

Comment by Priyanka singh on June 8, 2013 at 5:27pm

सुन्दर......बधाई

Comment by ram shiromani pathak on June 8, 2013 at 2:26pm

 बहुत सुन्दर आदरणीय माथुर जी/////////बधाई!

Comment by vijay nikore on June 8, 2013 at 1:56pm

//अनजाने में बन गई ,
                     हर दूरी मिटा सकूं !
          यादों में तुम्हारी खो, दो बोल गुनगुना सकूं !!
             कोशिश मात्र इतनी है ,
          दिल में छिपा है क्या , आपको भी दिखला सकूं !!//

अति सुन्दर! बधाई।

सादर,

विजय निकोर

Comment by Abid ali mansoori on June 8, 2013 at 12:13pm
आदरणीय माथुर जी अच्छा ही नहीँ आपने बहुत अच्छा लिखा है,बधाई!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
9 minutes ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service