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सरस्वती वंदना- गीत //डॉ प्राची

////

हंसवाहिनी  वाग्देवी  शारदे  उद्धार  कर
अर्चना स्वीकार कर माँ, ज्ञान का विस्तार कर  

स्वप्न की साकारता संस्पर्श कर लें उंगलियाँ
ज्ञान की अमृत प्रभा द्रुमदल की खोले पँखुड़ियाँ
नवल सार्थक कल्पना में हौंसलों की धार कर
अर्चना स्वीकार कर माँ, ज्ञान का विस्तार कर

लेखनी हो सत्य शाश्वत उद्-गठित हो व्याकरण
ताल सुर लय भाव प्रांजल रस पगा हो अलंकरण
छान्दसिक या मुक्त हो उद्गार का शुभ-सार कर
अर्चना स्वीकार कर माँ, ज्ञान का विस्तार कर

तीव्र-कम्पन ही सृजन है औ' प्रलय संहार है
उद्भव तरंगित भाव-ध्वनि संचयन संस्कार है
अमृता माँ वीणापाणि वाणी में सुरधार कर
अर्चना स्वीकार कर माँ, ज्ञान का विस्तार कर

परिष्कृत अभिरुचि प्रदात्री ज्ञानचक्षु प्रकाशिनी
वेद ज्ञान प्रदायिनी अज्ञान तिमिर विनाशिनी
प्रगति बौद्धिक हो सुफल, आध्यात्म को आधार कर
अर्चना स्वीकार कर माँ, ज्ञान का विस्तार कर

सौम्यरूपा दे कृपा कर, सद्गुणों की ग्राह्यता
कर सकें मंगल सृजन, दे ज्ञान की सद्पात्रता
ब्राह्मी निज गात्र को सद्बुद्धि दे, शृंगार कर
अर्चना स्वीकार कर माँ, ज्ञान का विस्तार कर

*********************************

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by D P Mathur on August 15, 2013 at 9:23am

आदरणीया डॉ प्राची जी सादर नमस्कार, लेखन की बारीकियां तो मैं नही समझता इसीलिए साहित्यिक टिप्पणी ना करते हुए मात्र इतना ही कह सकता हूँ कि कलम और ज्ञान की देवी माँ सरस्वती के वंदन रूपी इस सुन्दर गीत के लिए आपको अनेको शुभकामनाएं और बधाई 

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on August 14, 2013 at 5:43pm

आदरणीया प्राची दी,

निशब्द हूं इस रचना पर ! प्रशंसा के लिए प्रत्येक प्रशंसासूचक छोटा प्रतीत हो रहा है ! इस गीत का भाव-पक्ष जितना समृद्ध, उतना ही कलापक्ष भी ! अनगिनत बधाइयाँ स्वीकारें...!

एक और बात कि जैसा कि मै गिन पाया रहा हूं,  दो पंक्तियों में शायद गलती से एक-एक मात्रा कम-अधिक हो गई है ! पंक्तियाँ हैं...

ताल सुर लय भाव प्रांजल रस पगा हो अलंकरण ..... इसमे एक मात्रा अधिक हो गई है जिससे प्रवाह पर भी कुछ प्रभाव महसूस होता है !

 ब्राह्मी निज गात्र को सद्बुद्धि दे, शृंगार कर......  इसमे एक मात्रा कम हो गई है ! एक बार दृष्टिपात कर लें !

अंततः जाते-जाते पुनः रचना के लिए मेरी तरफ से अनंत बधाइयाँ और शुभकामनाएँ ...!

Comment by वेदिका on June 21, 2013 at 2:43pm

आपकी लेखनी सचमुच प्रणाम करने योग्य है। आपकी सरस्वती वंदना आपकी लेखनी ने और प्रिय सृष्टि के कंठ स्वर ने मिल के सचमुच ह्रदय को झंकृत कर दिया।  सृष्टि ने हर पद में समरस बनाये रखा, उसकी स्वर साधना को प्रणाम। 

स्नेहिल सृष्टि को अथाह स्नेह 

आपको साधूवाद  आपने यह अद्वितीय प्रार्थना  की रचना की   आदरणीया प्राची जी!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 21, 2013 at 2:18pm

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी 

इस वंदन को सराहने के लिए हार्दिक आभार.

सादर.

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 6, 2013 at 8:27am

आदरेया डॉ. प्राची जी सादर, माँ सरस्वती के चरणों में अभिलाषापूर्ण सुन्दर गीत रचा है. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 31, 2013 at 8:31pm

आदरणीया कुंती जी,

आपके विनम्र अनुमोदन ने हृदय को स्पर्श किया है... सादर आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 31, 2013 at 8:30pm

आदरणीय सौरभ जी,

रचना को आपके मार्गदर्शन के अनुसार साधने का प्रयास किया है. आवश्यक तर्कसम्मत सुझावों के लिए पुनः आभार.

सादर.

Comment by coontee mukerji on May 31, 2013 at 6:02pm

माँ सरस्वती के सौम्य एवं ज्ञान रूप का वर्णन करना सब के वश में नहीं . प्राची जी , आपकी लेखनी को मैं प्रणाम करती हूँ .सादर /कुंती.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 31, 2013 at 4:14pm

डॉ, प्राची,

जिस ऊँचाई, उत्साह और उदारता से आप सुझावों को स्वीकार करती हैं वह सुझावों की गरिमा भी बढ़ा देती हैं.

यह कहने में मुझे कत्तई संकोच नहीं है कि यदि इतने कम समय में आपकी लेखिनी की प्रखरता प्रयुक्त शब्द, अंतर्निहित भाव और सार्थक संप्रेषण के मामले में बहुगुणित हुई है तो आपका सतत अभ्यास ही कारण नहीं है बल्कि प्राप्त सुझावों को अंतर्मन की समझ की कसौटी पर रख कर तदनुरूप उन्हें व्यवहृत करना भी मुख्य कारण रहा है.

रचनाकर्मी अक्सर आत्ममुग्ध होते हैं किन्तु जो इस परिधि के बाहर प्रखर पारखी एवं आग्रही होते हैं वही रचनाकार रचनारत होने के दायित्व का निर्वहन कर पाते हैं. कतिपय रचनाकर्मियों द्वारा सुझावों के सापेक्ष अन्यथा की चिल्ल-पों मचाने का प्रमुख कारण यही है कि सुझावों को वे अपने रचनाकर्म पर अनावश्यक प्रहार सदृश लेते हैं, और बलात् ही हृदयंगम कर पाते हैं.

आदरणीया, सुधार के बाद की पंक्तियों पर आपके प्रश्नों का यथोचित उत्तर दूँगा, जो इस परिधि के बाहर है.

इस अत्यंत समृद्ध रचना के लिए पुनः सादर धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 31, 2013 at 3:58pm

आदरणीय सौरभ जी.

रचना कर्मिता की गुणवत्ता में उत्तरोत्तर वृद्धि के लिए प्रशंसक जहाँ आत्मविश्वास को बढ़ाते हैं, और लेखन को प्रोत्साहित करते हैं.. वहीं मंथे हुए आलोचकों का भी बहुत बहुत महत्त्व होता है.

जिन मापदंडों पर आप रचनाओं की गुणवत्ता को परखते हैं..और परिवर्तन सुझाते हैं उनके समक्ष हृदय नत होता है..

//ऐसी याचना में निरीहता नहीं झलकती बल्कि माँ के प्रति अदम्य विश्वास से जन्मी आश्वस्ति के साथ-साथ सामर्थ्य की ऊर्जस्विता बोलती है जो याचक को नम किन्तु सकर्मक की तरह प्रस्तुत करती है.//

मैं स्पष्टतः समझ पा रही हूँ आपके इंगित को आदरणीय.  मुख्य पंक्ति की भावदशा के अनुरूप ही पूरी रचना को ढालना सही राय है.

माँ शारदा के समक्ष सकर्मकता भाव को बनाए हुए स्नेहाधिकार से याचना करना सहायक पंक्तियों में झलकना चाहिये.

तदनुरूप परिवर्तन स्वीकार्य है आदरणीय.

सादर.

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