For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दादा जी के सुन खर्राटे
घुर घुर घुर घुर घुर्र रे
काऊ माऊ काऊ माऊ
उड़ी चिरैया फुर्र रे.

घर में है नन्हा –सा टॉमी
पूँछ हिला कर करे सलामी
आये कोई अनजाना तो
करता गुर गुर गुर्र रे.

तपत कुरू कहता है मिट्ठू
उसको मिर्च खिलाये बिट्टू
मन ललचाये,खुद भी खाये
करता सी - सी  सुर्र रे.

चुपके आया चूहा चीं चीं
ज्यों बिट्टू ने आँखें मीचीं
बिस्कुट लेकर बिल में भागा
खाता कुर कुर कुर्र रे.

मोटर लाये मोनू भैया
चले घूमने झुमरीतलैया
इठलाती बलखाती गाड़ी
चलती भुर भुर भुर्र रे...

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

Views: 1994

Replies to This Discussion

वाह वाह अरुण जी बच्चों को तो बाद में पहले तो मुझे ही मजा आ गया पढ़ के ये फुर्र फुर्र कुर्र कुर्र हुर्र हुर्र बहुत बहुत बधाई आपको इस बाल रचना हेतु |

आदरेया, आपका स्नेह सदैव प्राप्त होता रहा है, आपकी सुंदर सी प्रतिक्रिया ने निश्चय ही मेरा मनोबल बढ़ाया है. हृदय से आभार....

वाह! वाह !
बच्चों के लिए  मस्ती का खजाना खोल दिया आपने तो आदरणीय अरुण जी
बच्चे तो क्या ....मुझे भी मन ही मन गुनगुना कर मज़ा आ गया, फिर से बचपन लौट आया ..... जोर से गाने  को दिल कर रहा है जरा कोलेज से घर  पहुँच लूं .... नहीं तो ..हा हा हा 
बहुत बहुत बधाई

आदरेया डॉक्टर साहिबा, हृदय से आभार.

//फिर से बचपन लौट आया//

इन पंक्तियों ने लेखन को सार्थक कर दिया.

आदरणीय गोपाल दास नीरज जी को किशोरावस्था से पढ़ता और सुनता आया हूँ.प्रेम गीत मेरा मुख्य विषय रहा. उम्र के साथ रंग बदले और मेरे गीतों में जीवन -दर्शन दिखाई देने लगा. ओबीओ से जुड़ने के बाद छंदों पर कलम चली. बाल-साहित्य कभी नहीं लिख पाया था. ओबीओ में अभी-अभी सम्पन्न हुये महोत्सव में लिखने के बाद दिल ने कहा कि बाल-साहित्य लिखना चाहिये. आयोजन में प्रस्तुत गीत ,  मेरा प्रथम प्रयास रहा. द्वितीय प्रस्तुति भी सबने सराही. इसी से प्रेरित होकर "काऊ-माऊ' की रचना भी कर दी.

जुलाई-2012 में मैं श्रीमती जी (सपना) और छोटा पुत्र बिट्टू(अभिषेक) जबलपुर से सोमनाथ रेल द्वारा जा रहे थे. हमारे डिब्बे में दो बहुत ही छोटे-छोटे बच्चे थे. उनमें से जो कुछ बड़ा था वह अपने छोटे भाई को खिला (खेल) रहा था.शायद उनके क्षेत्र का कोई लोक गीत होगा .वहीं से "काऊ-माऊ" शब्द आ गया और यह गीत बन गया. छत्तीसगढ़ में भी यह शब्द प्रचलित है. बच्चे एक दूसरे का कान पकड़ कर काऊ-माऊ ,काऊ-माऊ खेलते हैं. बस यह एक शब्द ही गीत लिखवा गया.

क्या बात है सर जी बहुत ही सरस बाल रचना
कौन नही गुनगुनाना चाहेगा इसे
एक एक बिंब सुंदर है इस गीत का
चाहे वो दादा जी के खर्राटे हो या
मिर्ची की सी सी
बहुत बहुत बधाई हो सादर प्रणाम सहित अनुज

प्रिय संदीप जी, आप जैसे कुशल कवि से तारीफ सुन कर दिल बाग-  बाग हो गया. खर्राटे सुन कर चिड़िया उड़ी....फुर्र र्र र्र र्र र्र    

और मिर्च खा कर बिट्टू के मुख से निकला---सी-सी, सुर्र र्र र्र र्र

आभार................

अरुणजी

 

वाह ....घुर्र , गुर्र , सुर्र , कुर्र और भुर्र की प्रसंशा में मैं बस यही कहूँगी की ....................

हुर्र हुर्र हुर्र हुर्राह ..... क्या खूब लिखा है भैया

 

आदरेया विजयाश्री जी बहना, बहुत-बहुत आभार.

हुर्र हुर्र याद ही नहीं आया नहीं तो एक अंतरा और बन गया होता.

आदरणीय अरुणभाईजी, इस रचना ने बस मुग्ध कर दिया है. मैं आजकल भागादौडी में हूँ. रचना तो मैं पहले ही देख गया था किन्तु इत्मिनान से इसे पढ़ना-गाना चाहता था. हा हा हा..

मन में संग-संग जी रहे मस्त मुग्ध हुए बच्चे की सादर हार्दिक बधाई स्वीकार करें, आदरणीय, जो आपकी रचना पर एक सुर में हुर्र हुर्र हुर्रेऽऽऽऽऽ.. करता जा रहा है.. . 

आपका बाल-रचनाओं की पवित्र दुनिया में सहर्ष स्वागत है.

अंजाना आये कोई तो  = आये कोई अनजाना तो ..  ..  ऐसा संभव हो सकता है, आदरणीय ? आपका मंतव्य चाहूँगा. 

सादर

आदरणीय सौरभ भाई जी, नि:संदेह आप भागादौड़ी में हैं, मगर इधर तो सुपर फास्ट भागादौड़ी चल रही है. पर्याप्त समय नहीं दे पाने के कारण अपराध-बोध सा भी महसूस कर रहा हूँ. बड़ी मुश्किल से रचनायें लिख पा रहा हूँ.आयोजनों के अलावा अन्य कार्यक्रमों में अपने विचार व्यक्त भी नहीं कर पा रहा हूँ, हालाँकि खाना खाते-खाते में पढ़ तो रहा हूँ मगर" की-बोर्ड" पर लिख पाने  की गुंजाइश नहीं निकल पा रही है.पता नहीं यह क्रम कब तक चलेगा.

//रचना तो मैं पहले ही देख गया था किन्तु इत्मिनान से इसे पढ़ना-गाना चाहता था..//

इससे अधिक सौभाग्य और खुशी की बात मेरे लिये और क्या हो सकती है.

मैं स्वयं भी सभी रचनाओं को मन से महसूस करता हूँ, समयाभाववश प्रतिक्रियाओं को व्यक्त नहीं कर पा रहा हूँ.

आये कोई अनजाना तो................बिल्कुल सटीक बैठेगा आदरणीय. शत प्रतिशत सहमत हूँ.       सादर.

//पर्याप्त समय नहीं दे पाने के कारण अपराध-बोध सा भी महसूस कर रहा हूँ. बड़ी मुश्किल से रचनायें लिख पा रहा हूँ.आयोजनों के अलावा अन्य कार्यक्रमों में अपने विचार व्यक्त भी नहीं कर पा रहा हूँ, हालाँकि खाना खाते-खाते में पढ़ तो रहा हूँ मगर" की-बोर्ड" पर लिख पाने  की गुंजाइश नहीं निकल पा रही है.पता नहीं यह क्रम कब तक चलेगा.//

आपने मेरे दिल की कही है, आदरणीय अरुण भाईजी.  जो गती तोरी, ऊ गती मोरी.. ..  :-))))

वाह !!!!! घायल की गति घायल जाने, और न जाने कोय :-)))))

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
11 hours ago
Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदाब, आदरणीय,  ' नूर ' मैंने आपके निर्देश का संज्ञान ले लिया है! "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बहुत बहुत आभार आ. सौरभ सर ..आप से हमेशा दाद उन्हीं शेरोन को मिलती है जिन पर मुझे दाद की अपेक्षा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय नीलेश भाई,  आपकी इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद और कामयाब अश'आर पर…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. शिज्जू भाई "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,आपको धुआ स्वीकार नहीं हैं तो यह आपका मसअला है. मैंने धुआँ क़ाफ़िया  प्रयोग में…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल के फीचर किए जाने की हार्दिक बधाई।"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह, आदरणीय हरिओम जी, वाह।  आप कुण्डलिया छंद के निष्णात हैं। आपके सहभागिता के लिए हार्दिक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी,  आपकी छंद रचना और सहभागिता के लिए धन्यवाद।  योगी जन सब योग को,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"छंदों की प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय अशोक जी"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अजय गुप्ता जी सादर, प्रदत्त चित्र को छंद-छंद परिभाषित किया है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक  भाईजी  छंदों की प्रशंसा और प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद आभार…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service