For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- स्कूल की घंटी

ग़ज़ल
ज़मीर इसका कभी का मर गया है
न जाने कौन है किसपर गया है |

दीवारें घर के भीतर बन गयीं हैं
सियासतदाँ सियासत कर गया है |

तरक्की का नया नारा न दो अब
खिलौनों से मेरा मन भर गया है |

कोई स्कूल की घंटी बजा दे
ये बच्चा बंदिशों से डर गया है |

बहुत है क्रूर अपसंस्कृति का रावण
हमारे मन की सीता हर गया है |

शहर से आयी है बेटे की चिट्ठी
कलेजा माँ का फिर से तर गया है |

Views: 451

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on November 29, 2010 at 3:59pm
शेष जी और बागी जी स्नेह का आभार | aaap सब की kasauti पर khara utroon yahee प्रयास rahega |

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 17, 2010 at 9:17pm
अरुण भाई दिल निकाल कर आपने ग़ज़ल बना दिया है , बेहद खुबसूरत |
मकता मे आपने तो कमाल कर दिया है , बहुत खूब , बधाई |
Comment by Abhinav Arun on November 15, 2010 at 2:18pm
अहा आशीष जी सही कहा आपने दरअसल कमी ग़ज़लों की नहीं इस नेट और डायरी के बीच के सामंजस्य का है | मैंने दोनों ग़ज़लों के शीर्षक अलग अलग देखकर समझा ki इसे पोस्ट नही किया है |आपने ध्यान दिलाया और मेरी ग़ज़ल को याद रखा ये बड़ी बात है अब मेरी उम्र हो रही है और याददाश्त कमज़ोर | आप आगे भी अवश्य ध्यान दिलाते रहिएगा आग्रह है |अब डायरी और नोट पैड में निशान लगाते जाऊंगा ताकि पुनरावृति न हो | पुनः धन्यवाद |
Comment by Abhinav Arun on November 15, 2010 at 2:14pm
babban ji ,Rector Kathuria ji ,विवेक जी naveen ji , आशीष जी ,और ताहिर जी ग़ज़ल की तारीफ़ का शुक्रिया !
Comment by आशीष यादव on November 15, 2010 at 7:42am
I m very very sorry ki galti se navin ji naam likh diya tha, likhna tha arun ji ka. maine delete kar diya hai.
Comment by baban pandey on November 14, 2010 at 10:39am
बहुत खूब पाण्डेय भाई ...
Comment by Rector Kathuria on November 14, 2010 at 9:38am
पण्डे जी बहुत ही अच्छी रचना
आप की यह रचना बहुत से कटु सत्यों की याद दिलाती है..
और वो भी बहुत ही सादगी से
बहुत ही अर्थपूर्ण रचना...बधाई हो...!
Comment by विवेक मिश्र on November 13, 2010 at 11:36pm
sahi kaha aashish ji.. maine bhi abhinav ji ki ye ghazal pahle padhi thi. par padhne ke baad, ek baar fir se taazgi aa gayi.
Comment by Abhinav Arun on November 13, 2010 at 3:00pm
राणा जी तरही की कमी सभी महसूस कर रहे हैं आप कब ला रहे हैं? ये गज़ल आपने सराही धन्यवाद ,हौसला मिलता है जब आप जैसे मंजे हुए शायर तारीफ़ करते हैं |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 13, 2010 at 2:01pm
अभिनव भाई बहुत सुन्दर ग़ज़ल

कोई स्कूल की घंटी बजा दे
ये बच्चा बंदिशों से डर गया है |

बहुत है क्रूर अपसंस्कृति का रावण
हमारे मन की सीता हर गया है |
बेमिसाल ख्यालों के लिए बधाइयाँ|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रेरणादायी छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
21 hours ago
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय सुशील सरना जी, हार्दिक आभार आपका। सादर"
yesterday

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार…See More
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना कि कुछ तो परदा नशीन रखना।कदम अना के हजार कुचले,न आस रखते हैं आसमां…See More
Wednesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service