For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो दिन कितने प्यारे थे

वो दिन कितने प्यारे थे
गाँव गाँव और
शहर शहर में 
प्रेम पगे गलियारे थे ......
स्वार्थ नहीं
इक अपनापन था
परहित में
जीवन-यापन था
अमन चैन के
रंग में रंगे 
आलोकिक भुनसारे थे ..........
कोई बुराई
नहीं करता था 
अविश्वास
सदा मरता था 
दोस्त दोस्त से
आस लगाये 
राग द्वेष अंधियारे थे ............
इक होती थी
सबकी राय
कोई अपनी
नहीं चलाय
संग में
जब तब 
होती मस्ती
मौसम सब ही न्यारे थे .......................
बड़ा बड़प्पन
खडा दिखाए
छोटों को भी
गले लगाय
होली की जलती
पावक में 
सबकी नज़र उतारे थे ............................
गम बाटें
खुशियाँ भी बाटें
स्वागत और
विदा भी बाटें 
बहती थी जो
झर झर आँखें 
आँसू मीठे खारे थे ........................
दहशत न
वहशत की बातें
रंग भरी
होती थी रातें
हलकी फुलकी
नोंक झोंक में
सपने खूब सँवारे थे .....................
मर्यादा का
पाठ था मिलता
ज्ञान का सुन्दर
पुष्प था खिलता
कहीं नहीं था
तेरा मेरा
अपने और हमारे थे ...................
खेंच तान की
न थी सियासत
ख़ुशी ख़ुशी 
रहती थी रियासत 
मात पिता के
आँख के तारे 
हम सब राजदुलारे थे ..................

संदीप पटेल "दीप"

Views: 512

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 9, 2013 at 3:50pm

aadarneey Ashok Kumar Raktale sir ji saadar prnaam

aapki is pratikriya ke liye bahut bahut dhanyvaad aur saadar aabhar

sneh yun hi anuj par banaye rakhiye

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 8, 2013 at 8:02pm

मर्यादा का
पाठ था मिलता
ज्ञान का सुन्दर
पुष्प था खिलता
कहीं नहीं था
तेरा मेरा
अपने और हमारे थे ................... आहा! काश के फिर वो वक्त लौट आये.

बहुत सुन्दर गीत की प्रस्तुति आदरणीय संदीप जी बधाई स्वीकारें.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 7, 2013 at 7:04pm

बंधुवर अनंत भाई , आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी , आदरणीय विजय सर जी सादर प्रणाम
मेरी इस रचना को सरहने हेतु आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद सहित सादर आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by Shyam Narain Verma on January 7, 2013 at 2:39pm

BAHOT      KHOOB..............................

Comment by vijay nikore on January 6, 2013 at 2:33pm

समाज क्या था और अब कैसा है ... यह अच्छा बताया है।

विजय निकोर

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 6, 2013 at 1:44pm

मित्रवर आपकी सोंच को नमन, समय के साथ-२ कितना कुछ बदल गया है और बदल रहा है, रचना को पढ़कर ऐसा लगा की बहुत कुछ खो दिया है हमने, बहुत कुछ पीछे छुट गया है, रिश्ते-नाते, अपनापन, विश्वास, प्रेम सब कुछ रेत की भांति हांथों से फिसल गया है. हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
9 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service