"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २६ में प्रयुक्त काफियों का संकलन श्री तिलक राज कपूर जी के द्वारा किया गया है, उम्मीद है कि सदस्यों को ग़ज़ल विधा को और भी नजदीक से समझने का मौका मिलेगा ....
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आजमाया  | 
(श्री शरीफ अहमद कादरी हसरत जी)  | 
मेरी उल्फत पे तुमको यकीं आएगा  | 
अपने हसरत को तुम आजमाया करो  | 
(श्री संदीप कुमार पटेल जी)  | 
बेबफा थे मगर वो ये कहते रहे  | 
यूँ मुहब्बत को न आजमाया करो  | 
सब्र मजहब रहम प्यार औ यार सब  | 
हो बुरा वक़्त तब आजमाया करो  | 
(सुश्री राजेश कुमारी जी)  | 
वक़्त आने पे तुम पूछकर देखना  | 
दोस्तों को कभी आजमाया करो  | 
आया  | 
(डॉ सूर्या बाली सूरज जी)  | 
आजकल शहर का हाल अच्छा नहीं,  | 
शाम ढलते ही घर तुम भी आया करो  | 
(योगराज प्रभाकर)  | 
आरज़ू हो अगर रौशनी की तुम्हें  | 
अपने हुजरे से बाहर तो आया करो  | 
(श्री अरविन्द कुमार जी)  | 
साँस रुक जाती है, यक-ब-यक देखकर,  | 
तुम दबे पाँव ख्वाबों में आया करो  | 
(श्री अविनाश बागडे जी)  | 
सीटियाँ हर समय ना बजाया करो,  | 
बेवजह खिड़कियों पे न आया करो  | 
(श्री अशफाक अली गुलशन खैराबादी जी)  | 
खुद-ब-खुद मेरी किसमत संवर जाएगी l  | 
तुम जो हर रोज़ "गुलशन" में आया करो  | 
जीते जी चैन तुमसे मिला कब हमें l  | 
अब लहद पर हमारी न आया करो  | 
(श्री उमाशंकर मिश्रा जी)  | 
प्रेम पावन हो जैसे कि राधा किशन  | 
बाँसुरी बन के होठों पे आया करो  | 
(श्री तिलक राज कपूर जी)  | 
सुब्ह बेशक हमें भूल जाया करो  | 
सॉंझ ढलने पे घर लौट आया करो  | 
(श्री मोहम्मद नायाब जी)  | 
मेरी तन्हाई का तुम सहारा बनो l  | 
कुछ नही तो ख्यालों में आया करो  | 
(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)  | 
संगमरमर हसीं तुम कली नाजुकी।  | 
ख्वाब में ही सही पास आया करो  | 
(श्री विवेक मिश्र जी)  | 
रौशनी कम चरागों की हो जाएगी  | 
तुम न महफ़िल में बे पर्दा आया करो  | 
(श्री शरीफ अहमद कादरी हसरत जी)  | 
इस तरह मिलने में कुछ खसारा नहीं  | 
तुम मेरे ख़ाब में रोज़ आया करो  | 
(श्री संदीप द्विवेदी वाहिद काशीवासी जी)  | 
इस जहाँ में हैं मज़लूम लाखों कभी,  | 
बिन कहे काम उनके भी आया करो  | 
(श्री सूबे सिंह सुजन जी)  | 
आज जंगल में मिसने गया फूलों से,  | 
फूल बोले कि तुम रोज आया करो  | 
चाँद पर आदमी ने कदम रख दिये,  | 
चाँदनी चुपके-चुपके से आया करो  | 
(सुश्री सीमा अग्रवाल जी)  | 
वक्त है कीमती यूँ न जाया करो  | 
ख्वाब की ज़द से बाहर भी आया करो  | 
उगाया  | 
(सुश्री सिया सचदेव जी)  | 
अपनी ताक़त को यूं आज़माया करो  | 
फूल बंजर ज़मीं में उगाया करो  | 
उठाया  | 
(अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर' जी)  | 
साँस अटकी पड़ी दिल धड़कने लगा  | 
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
सिर्फ हमसे कहो कौन पीछे पड़ा  | 
उँगलियां यूं न सब पर उठाया करो  | 
(डॉ सूर्या बाली सूरज जी)  | 
सब नहीं एक से इस ज़माने में हैं,  | 
“उँगलियाँ यूं न सब पर उठाया करो  | 
(योगराज प्रभाकर)  | 
इस नगर के बशर सच के आदी नहीं  | 
उंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
जोश ये होश को लूट ले जायगा  | 
उंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
ये शहर है नया खायोगे खौंसड़े*  | 
उंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
(श्री अरविन्द कुमार जी)  | 
जब है माना कि हम ही गुनहगार हैं.  | 
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
ये सुना है कि मंजिल कठिन है मगर,  | 
कुछ सफ़र का मज़ा भी उठाया करो  | 
(श्री अरविन्द चौधरी जी)  | 
झाँक लो,चाक अपना गिरेबां ज़रा  | 
उंगलिया यूँ न सब पर उठाया करो  | 
(श्री अरुण कुमार निगम जी)  | 
अंगुलीमार जाने है किस भेष में  | 
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
गलतियाँ देखना तो बुरी बात है  | 
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
दूध के हो धुले क्या , जरा सोच लो  | 
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
(श्री अलबेला खत्री जी)  | 
काट देगा छुरी से कोई दिलजला  | 
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
(श्री अविनाश बागडे जी)  | 
ख़त्म हो जाये ना ये बहस आज भी ,  | 
कोई मुद्दा तो तुम भी उठाया करो  | 
चार होती है अपनी तरफ बारहा,  | 
उंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
थोडा समझा के लोगों को समझो जरा,  | 
उंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
है ये उंगली दिखाना बुरी बात तो ,  | 
उंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
(श्री अशफाक अली गुलशन खैराबादी जी)  | 
पहले अपने गरीबां में खुद झांक लो l  | 
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
(श्री आलोक सीतापुरी जी)  | 
आजमाया न हो आजमा लीजिए  | 
उँगलियां यूं न सब पर उठाया करो  | 
कायदे से उठे फायदे से उठे  | 
उँगलियाँ यूं न सब पर उठाया करो  | 
कौन कैसा है पहले ये पहचान लो  | 
उँगलियां यूं न सब पर उठाया करो  | 
(श्री उमाशंकर मिश्रा जी)  | 
ये जुबाँ कट गई खुद के दाँतों तले  | 
ऊँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
सब पे तोहमत लगाना गलत है सनम  | 
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
(श्री तिलक राज कपूर जी)  | 
एक जब हो उधर तो इधर तीन हैं  | 
"उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
ऑंख देखे को सच मानकर इस तरह,  | 
"उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
ख़ामियॉ, खूबियॉं सोच की बात है़  | 
"उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
(श्री दिलबाग विर्क जी)  | 
खुद खड़े हैं कहाँ , तुम इसे देख लो  | 
उँगलियाँ यूं न सब पर उठाया करो  | 
(श्री मजाज़ सुल्तानपुरी जी)  | 
छोड़ कर शरपसंदी का बेजा अमल l  | 
परचमें अम्न तुम भी उठाया करो  | 
पहले अपनी कमी पर नज़र डाल लो l  | 
उंगलियाँ यूँ न सब पे उठाया करो  | 
(श्री मोहम्मद नायाब जी)  | 
पहले "नायाब" खुद सोंच लो गौर से l  | 
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
सिर्फ अपने लिए तुम जिए क्या जिए l  | 
बार गैरों का भी कुछ उठाया करो  | 
(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)  | 
दाग दामन में अपने लगा हो अगर।  | 
उंगलियां यूं न सब पर उठाया करो  | 
बस तुम्हारी अदा से है घायल शहर।  | 
उंगलियां यूं न सब पर उठाया करो  | 
हम रोगी हुये इसके दोषी हैं हम।  | 
उंगलियां यूं न सब पर उठाया करो  | 
(श्री विवेक मिश्र जी)  | 
ख़ामियां दूर कर लो "विवेक" अपनी तुम  | 
उंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
तुमने भी ज़िन्दगी में करीं गलतियाँ l  | 
उंगलियाँ यूँ न सब पे उठाया करो  | 
रंग सच्चा दिखाता है खुद आईना  | 
उंगलियाँ यूँ न सब पे उठाया करो  | 
(श्री वीनस केसरी जी)  | 
'वक्त पर छोड़ दो तुम सभी फैसले',  | 
'उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
(श्री शफाअत खैराबादी जी)  | 
अपने दामन के दागों को खुद देख लो  | 
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
(श्री शरीफ अहमद कादरी हसरत जी)  | 
कोन जाने हकीकत खुदा के सिवा  | 
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
हम मिलेंगे खुदा पे भरोसा रखो  | 
हाथ अपने दुआ में उठाया करो  | 
(श्री संदीप कुमार पटेल जी)  | 
आँख से सांच को आप देखे बिना  | 
उंगलिया यूँ न सब पर उठाया करो  | 
ये जरुरी नहीं बेबफा सब मिलें  | 
उंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
(श्री संदीप द्विवेदी वाहिद काशीवासी जी)  | 
आदतें अपनी पहले सुधारो बशर,  | 
उंगलियां यूँ न सब पर उठाया करो  | 
भूल तुमने नहीं क्या कभी की कोई,  | 
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
सच है क्या झूट क्या है पता तो चले,  | 
उंगलियां यूँ न सब पर उठाया करो  | 
(श्री सुरिंदर रत्ती जी)  | 
पाक दामन नहीं साफ दिल भी नहीं  | 
उंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
रंग महफ़िल में जम के जमाया करो  | 
लुत्फ़ हर लम्हे का सब उठाया करो  | 
(श्री सूबे सिंह सुजन जी)  | 
ऊंगलियाँ चार खुद पर उठेंगी "सुजान"  | 
ऊंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
(सुश्री राजेश कुमारी जी)  | 
क्या पता दुश्मनों में मिले यार भी  | 
उंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
(सुश्री सिया सचदेव जी)  | 
आइना तुमने देखा नहीं आज तक  | 
उंगुलियां यूं न सब पर उठाया करो  | 
सर की टोपी ज़मीं पर गिरे एकदम  | 
इतना ऊँचा ना सर को उठाया करो  | 
(सुश्री सीमा अग्रवाल जी)  | 
कट न जाएँ कहीं ,तुम ज़रा देखना  | 
उंगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो  | 
उड़ाया  | 
(अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर' जी)  | 
अपनी अम्मी को घर ना बुलाया करो  | 
जेब से माल चाहे उड़ाया करो  | 
हाय 'अम्बर' तेरा रोज आँखें मले  | 
मिर्च का पाउडर ना उड़ाया करो  | 
(योगराज प्रभाकर)  | 
आयेगा वो मज़ा भूल ना पायोगे  | 
रम की शीशी में ठर्रा उड़ाया करो  | 
(श्री विवेक मिश्र जी)  | 
अपनी यादों को रोको खुदा के लिए  | 
इससे नींदें न मेरी उड़ाया करो  | 
ये हवाएं बहुत तेज़ हो जाएँगी  | 
दौड़ कर न दुपट्टा उड़ाया करो  | 
(श्री सुरिंदर रत्ती जी)  | 
बहरे ग़म ना सुनें अब किसी बात को  | 
कश ख़ुशी का ले उनको उड़ाया करो  | 
(सुश्री राजेश कुमारी जी)  | 
दोस्ती पे भरोसा करो मत करो  | 
यूँ हवा में न बातें उड़ाया करो  | 
कटाया  | 
(सुश्री सिया सचदेव जी)  | 
हम बुजुर्गों से सुन कर भी समझे नहीं  | 
दीन ए हक़ के लिए सर कटाया करो  | 
कमाया  | 
(श्री तिलक राज कपूर जी)  | 
इस जहां के लिये तो बहुत कर चुके  | 
उस जहां के लिये भी कमाया करो  | 
(श्री दिलबाग विर्क जी)  | 
दौलतें विर्क पानी भरेंगी सभी  | 
प्यार की पाक दौलत कमाया करो  | 
(श्री वीनस केसरी जी)  | 
जानो 'वीनस जी' ग़ज़लों की बारीकियां  | 
'खर्च करने से पहले कमाया करो  | 
(सुश्री राजेश कुमारी जी)  | 
जिंदगी दूसरों की विरासत नहीं  | 
शोहरत मेहनत से कमाया करो  | 
(सुश्री सिया सचदेव जी)  | 
धूप शोहरत की दो दिन में ढल जायेगी  | 
तुम मोहब्बत भी थोड़ी कमाया करो  | 
कसमसाया  | 
(अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर' जी)  | 
भीनी खुशबू उड़े दिल पे काबू नहीं  | 
भींच लूं आह भर कसमसाया करो  | 
कहाया  | 
(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)  | 
खा गये मुर्गियां भेंड़ औ बकरियां।  | 
बाघ कुत्ता न खुद को कहाया करो  | 
खटखटाया  | 
(श्री अविनाश बागडे जी)  | 
चीख नारी की तुमने सुनी हो अगर,  | 
बंद दरवाजा तुम खटखटाया करो  | 
खाया  | 
(योगराज प्रभाकर)  | 
पान की पीक मारी जो जापान में  | 
तो पुलिस के लफेड़े भी खाया करो  | 
(श्री अशफाक अली गुलशन खैराबादी जी)  | 
जानता हूँ की सच बोलते हो सदा l  | 
झूठी कसमे मगर तुम न खाया करो  | 
(श्री मजाज़ सुल्तानपुरी जी)  | 
तेरी हर बात का है भरोसा मुझे l  | 
बेसबब अपनी क़समें न खाया करो  | 
(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)  | 
कर्ज लो तो समय पर चुकाया करो।  | 
एक रोटी भले कम ही खाया करो  | 
मछलियां जाल में न फंसाया करो।  | 
ऐ मछेरे तरस कुछ तो खाया करो  | 
खिलखिलाया  | 
(श्री मजाज़ सुल्तानपुरी जी)  | 
ज़ख्म पर ज़ख्म अपनों के खाते रहो l  | 
लोग हँसते हैं तुम खिलखिलाया करो  | 
(श्री सूबे सिंह सुजन जी)  | 
फूल की जिंदगी एक दिन की बहुत,  | 
सोच कर इतना,तुम खिलखिलाया करो  | 
खिलाया  | 
(अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर' जी)  | 
पाँच गहने दिला दूं करो बस रहम  | 
तोंद को देखकर ही खिलाया करो  | 
(डॉ सूर्या बाली सूरज जी)  | 
दिल से नफ़रत के काँटे हटाकर ज़रा,  | 
गुल मुहब्बत के “सूरज” खिलाया करो  | 
(श्री मजाज़ सुल्तानपुरी जी)  | 
क्या ख़बर मुझसे वादा वफ़ा हो न हो l  | 
ऐसी क़समें न मुझको खिलाया करो  | 
(सुश्री राजेश कुमारी जी)  | 
पेट भर जाए उन का दया भाव से  | 
इस तरह प्यार से तुम खिलाया करो  | 
गंवाया  | 
(श्री संदीप कुमार पटेल जी)  | 
हार के दिल मिली जीत के जश्न में  | 
होश अपने नहीं तुम गंवाया करो  | 
(श्री संदीप द्विवेदी वाहिद काशीवासी जी)  | 
दोस्ती मत कभी आज़माया करो;  | 
दोस्तों को न यूँ ही गंवाया करो  | 
गडगडाया  | 
(श्री सूबे सिंह सुजन जी)  | 
खेत तुमसे बहुत प्यार करने लगे  | 
बादलो खाली मत गडगडाया करो  | 
गढ़ाया  | 
(श्री सुरिंदर रत्ती जी)  | 
चीज़ मिलती है बाज़ार में हर जगह  | 
मुफ्त पर आँख तुम ना गढ़ाया करो  | 
गाया  | 
(योगराज प्रभाकर)  | 
रात आषाढ़ की फूस की झोपडी  | 
राग दीपक यहाँ तो न गाया करो  | 
(श्री मजाज़ सुल्तानपुरी जी)  | 
लोग दहशतपसंदी में मशगूल हैं l  | 
तुम मगर अम्न के गीत गाया करो  | 
(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)  | 
बात मेरी सुनो और अपनी कहो।  | 
सिर्फ अपना ही दुक्खड़ा न गाया करो  | 
(श्री संदीप द्विवेदी वाहिद काशीवासी जी)  | 
दो नया फ़लसफ़ा एक दुनिया को अब,  | 
ज़ख़्म खा कर भी तुम गीत गाया करो  | 
(सुश्री सीमा अग्रवाल जी)  | 
गीत मेरे हैं पहचान मेरी सनम  | 
दूसरों से सुनो खुद भी गाया करो  | 
गिराया  | 
(श्री आलोक सीतापुरी जी)  | 
ये हैं अनमोल मोती बहुत काम के  | 
आँसुओं को न ऐसे गिराया करो  | 
(श्री उमाशंकर मिश्रा जी)  | 
रंगे खूँ से न हिना सजाया करो  | 
यूँ न बर्कएतजल्ली गिराया करो  | 
(श्री विवेक मिश्र जी)  | 
दूर से ही न तुम मुस्कुराया करो  | 
ज़ुल्म की बिजलियाँ न गिराया करो  | 
राज़ खुल जायेगा फिर ग़में इश्क का  | 
यूँ न आँखों से मोती गिराया करो  | 
(श्री संदीप द्विवेदी वाहिद काशीवासी जी)  | 
ख़ाक हो जाएंगे एक ही पल में हम,  | 
बिजलियाँ इस तरह मत गिराया करो  | 
(श्री सुरिंदर रत्ती जी)  | 
ज़िन्दगी बेवफ़ा भी गुज़र जायेगी  | 
हौसला तुम न "रत्ती" गिराया करो  | 
(सुश्री राजेश कुमारी जी)  | 
हसरतों को न दिल में दबाया करो  | 
असलियत पे न पर्दा गिराया करो  | 
गुदगुदाया  | 
(अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर' जी)  | 
कान कर दो मेरे आप चाहे गरम  | 
पेट में ना मेरे गुदगुदाया करो  | 
(श्री अरुण कुमार निगम जी)  | 
काम ऐसे करो , उँगलियाँ न उठे  | 
उँगलियों से सदा गुदगुदाया करो  | 
(श्री आलोक सीतापुरी जी)  | 
दूर हो जांयगी दिल की बेचैनिया  | 
गीत 'आलोक' के गुनगुनाया करो  | 
(श्री दिलबाग विर्क जी)  | 
देखना नफरतें जीत सकती नहीं  | 
गीत बस प्यार के गुनगुनाया करो  | 
(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)  | 
ये गजल मेरी अर्पण है तुमको प्रिये।  | 
फूल से होंठ से गुनगुनाया करो  | 
घटाया  | 
(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)  | 
चांद जैसा न खुद को बताया करो।  | 
हीर मणि की न कीमत घटाया करो  | 
चढ़ाया  | 
(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)  | 
खाक छानेगी फाइल पड़ी मेज पर।  | 
फाइलों पे वजन कुछ चढ़ाया करो  | 
(श्री अविनाश बागडे जी)  | 
लड़खड़ाते कदम और बहकती जुबां,  | 
क्या जरुरी है इतनी चढ़ाया करो  | 
चराया  | 
(योगराज प्रभाकर)  | 
दक्षिणी हो चला चौखटा ये मेरा  | 
इडली डोसा न डेली चराया करो  | 
चलाया  | 
(अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर' जी)  | 
सामने सच कहों जिस्म छलनी भले  | 
तीर छिप के न कोई चलाया करो  | 
(श्री अरुण कुमार निगम जी)  | 
कीमती है जुबां , सोच कर खोलिए  | 
बेवजह ही जुबां ना चलाया करो  | 
(श्री अविनाश बागडे जी)  | 
झांक लो पहले अपने गिरेहबान में,  | 
फिर यूँ औरों पे पत्थर चलाया करो  | 
(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)  | 
कातिलाना नजर कत्ल कर जायेगी।  | 
ये नजर तुम न सब पर चलाया करो  | 
(श्री विवेक मिश्र जी)  | 
देश की आबरू पे जो ख़तरा दिखे l  | 
छोड़ कर हल गनों को चलाया करो  | 
(श्री संदीप कुमार पटेल जी)  | 
आप नेता बनेंगे मुझे है यकीं  | 
तीर शब्दों के यूँ ही चलाया करो  | 
(श्री सुरिंदर रत्ती जी)  | 
वो शजर क्या खिलेंगे बहारों में अब  | 
उन पे आरा न साहिब चलाया करो  | 
चुराया  | 
(श्री अरविन्द चौधरी जी)  | 
नक्श अपना न फीका रखेंगे कभी  | 
धनक से रंग थोड़े चुराया करो  | 
(श्री अविनाश बागडे जी)  | 
तनावों में भी मुस्कुराया करो,  | 
वक़्त अपने लिये भी चुराया करो  | 
छिपाया  | 
(श्री उमाशंकर मिश्रा जी)  | 
चाँद ने चाँदनी डाल दी चाँद पर  | 
चाँद घूँघट में यूँ न छिपाया करो  | 
छुड़ाया  | 
(श्री अविनाश बागडे जी)  | 
उम्र - भर के लिये था दिया हाँथ में,  | 
हाँथ ऐसे न जानम छुड़ाया करो  | 
छुपाया  | 
(श्री अरविन्द कुमार जी)  | 
सब को झूठे तराने सुनाओ मगर,  | 
आइनों से न सच को छुपाया करो  | 
(श्री तिलक राज कपूर जी)  | 
ज़र्द पत्तों में तब्दील हो जाऍंगे  | 
गुल किताबों में ये मत छुपाया करो  | 
(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)  | 
चांद के हुश्न को लूट लाये हो तुम।  | 
माल लूटा हुआ है छुपाया करो  | 
(श्री विवेक मिश्र जी)  | 
रो पड़े न कहीं माँ शहीदों की भी l  | 
इसलिए आंसुओ को छुपाया करो  | 
(श्री शफाअत खैराबादी जी)  | 
जो भी कहना है कह दो झिझक किस लिए  | 
राज़े दिल तुम न हमसे छुपाया करो  | 
जगमगाया  | 
(श्री आलोक सीतापुरी जी)  | 
खून-ए-दिल से करो रोशनी दोस्तों  | 
रूह से रूह को जगमगाया करो  | 
हर किसी को है पैगाम 'आलोक' का  | 
दीप से दीप को जगमगाया करो  | 
जगाया  | 
(अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर' जी)  | 
रात है वस्ल की दिल हुए हैं जवां  | 
सोये अरमां कभी तो जगाया करो  | 
जताया  | 
(अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर' जी)  | 
बात दिल से न कोई लगाया करो  | 
राज सबसे न कोई जताया करो  | 
(श्री अरुण कुमार निगम जी)  | 
अश्क़ हमने हैं पहचाने, घड़ियाल के  | 
झूठी संवेदना मत जताया करो  | 
(श्री शरीफ अहमद कादरी हसरत जी)  | 
दर्द दिल में छुपाने से क्या फाएदा  | 
हे अगर इश्क तो फिर जताया करो  | 
(श्री संदीप कुमार पटेल जी)  | 
मुल्क को बाँटिये मत प्रदेशों में यूँ  | 
हैं सभी मेरे अपने जताया करो  | 
जलाया  | 
(श्री शफाअत खैराबादी जी)  | 
मिल के गैरों से मुझको न रुसवा करो  | 
इस तरह दिल न मेरा जलाया करो  | 
(श्री संदीप कुमार पटेल जी)  | 
जख्म चाहे मिले हों तुम्हे इश्क में  | 
आग नफ़रत भरी मत जलाया करो  | 
हो सके तो मुहब्बत लुटा दीप बन  | 
आज नफरत भरी मत जलाया करो  | 
(श्री संदीप द्विवेदी वाहिद काशीवासी जी)  | 
गर्म है राख़ अब तक कुरेदो नहीं,  | 
बुझती चिंगारियां मत जलाया करो  | 
(श्री सूबे सिंह सुजन जी)  | 
रोशनी अब चरागों से होती नहीं,  | 
दोस्तो अब लहू को जलाया करो  | 
(सुश्री सिया सचदेव जी)  | 
दूरियां सब दिलों की मिटाया करो  | 
तुम चराग़ ए मोहब्बत जलाया करो  | 
रोशनी जिनसे सबको मिले है सिया  | 
दीप ऐसे जहां में जलाया करो  | 
जाया  | 
(अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर' जी)  | 
जिन्दगी है मिली चार दिन की हमें  | 
वक्त पहचान लो यूं न जाया करो  | 
(योगराज प्रभाकर)  | 
भागती मंजिलें हाथ ना आएँगीं  | 
हांफकर इस तरह थम न जाया करो  | 
(श्री अरुण कुमार निगम जी)  | 
हैं फरिश्ते नहीं , ये तो इंसान हैं  | 
गलतियाँ गर करें , भूल जाया करो  | 
(श्री अलबेला खत्री जी)  | 
ज़िन्दगी को जहाँ पर सुकूं मिल सके  | 
आप ऐसी जगह रोज़ जाया करो  | 
(श्री अशफाक अली गुलशन खैराबादी जी)  | 
चाहतों का तो है बस तक़ाज़ा यही l  | 
जब मनाया करूं मान जाया करो  | 
(श्री आलोक सीतापुरी जी)  | 
जब बुलाता है कोई तो आया करो  | 
बिन बुलाए कहीं भी न जाया करो  | 
(श्री तिलक राज कपूर जी)  | 
तल्खियों से न हासिल कभी कुछ हुआ  | 
है ये बेहतर इन्हें भूल जाया करो  | 
(श्री मजाज़ सुल्तानपुरी जी)  | 
जब क़लम हाथ में तुम उठाया करो l  | 
गर्दिशों का सफ़र भूल जाया करो  | 
मान सम्मान हो जिस जगह पर तेरा l  | 
ऐसी महफ़िल में तुम आया जाया करो  | 
मेरी बातें तुम्हारी भलाई की हैं l  | 
मेरी हर बात को मान जाया करो  | 
रूठना है तो रूठो मगर सोच लो l  | 
मै मनाऊँ तो तुम मान जाया करो  | 
(श्री मोहम्मद नायाब जी)  | 
जब न पाओ किनार कोई आस का l  | 
मेरी आँखों में तुम डूब जाया करो  | 
(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)  | 
सात सुर में सजी इक मधुर रागिनी।  | 
कान में तुम मेरे घोल जाया करो  | 
सेहत अच्छी रहे थोड़ी कसरत करें।  | 
प्रात ही सेर करने को जाया करो  | 
(श्री विवेक मिश्र जी)  | 
आ न जाये कहीं पास मौजे बला  | 
देखने मौजे दरिया न जाया करो  | 
बागबां की भी नीयत बदल जाएगी  | 
तुम अकेले न गुलशन में जाया करो  | 
(श्री संदीप कुमार पटेल जी)  | 
तोड़ दे दिल अगर बेबफा संग-दिल  | 
दिल्लगी तुम समझ भूल जाया करो  | 
नोट लेकर मुहर मत लगाया करो  | 
कीमती वोट को यूँ न जाया करो  | 
पत्थरों पे न आंसू बहाया करो  | 
कीमती हैं बहुत यूँ न जाया करो  | 
हुक्मरानी ये फरमान सुन लो सभी  | 
वोट देकर हमें भूल जाया करो  | 
(श्री सुरिंदर रत्ती जी)  | 
मंजिलें हैं वहीँ पास आती नहीं  | 
कुछ कदम आप नज़दीक जाया करो  | 
(श्री सूबे सिंह सुजन जी)  | 
चाँद को देख कर मुस्कुराया करो  | 
चाँदनी रात में आया जाया करो  | 
सारे आकाश के नीचे सोया करो,  | 
रास्ता घर का जब भूल जाया करो  | 
(सुश्री सिया सचदेव जी)  | 
धड़कने रक्स करती रहे देर तक  | 
इस तरह दिल में तुम आया जाया करो  | 
(सुश्री सीमा अग्रवाल जी)  | 
तल्खियो की वजह मत भुलाना कभी  | 
तल्खियों के असर भूल जाया करो  | 
झुकाया  | 
(श्री अशफाक अली गुलशन खैराबादी जी)  | 
जिसने ब्क्शी है ये कीमती जिंदगी l  | 
उसके दर पर ही सर को झुकाया करो  | 
(श्री मजाज़ सुल्तानपुरी जी)  | 
जिसने कुन कह के तख्लीक आलम किया l  | 
सामने उसके सर को झुकाया करो  | 
(श्री मोहम्मद नायाब जी)  | 
एक ही दर से रिश्ता रखो उम्र भर l  | 
सबके आगे न सर को झुकाया करो  | 
(सुश्री सीमा अग्रवाल जी)  | 
जिनके चेहरों पे सिलवट तजुर्बें की है  | 
उनके आगे सदा सर झुकाया करो  | 
डराया  | 
(डॉ सूर्या बाली सूरज जी)  | 
आंधियों और तूफान में हूँ पला,  | 
ऐ हवाओं न मुझको डराया करो  | 
(श्री अशफाक अली गुलशन खैराबादी जी)  | 
दिल है नाज़ुक कभी बैठ सकता है ये l  | 
भूल कर भी न इसको डराया करो  | 
डुबाया  | 
(श्री अरुण कुमार निगम जी)  | 
उँगलियों पर न सबको नचाया करो  | 
टेढ़ी उँगली न घी में डुबाया करो  | 
ढाया  | 
(श्री तिलक राज कपूर जी)  | 
आह मज़्लूम की न मिटा दे तुम्हें  | 
जु़ल्म कमज़ोर पर तुम न ढाया करो  | 
(श्री मजाज़ सुल्तानपुरी जी)  | 
ऐ "मजाज़" उससे जाकर ये कह दे कोई l  | 
तुम न मज़लूम पर ज़ुल्म ढाया करो  | 
जिसकी बुनियाद ख्वाहिश पे हो मुनहसर l  | 
ऐसे महलों को बेख़ौफ़ ढाया करो  | 
तिराया  | 
(श्री तिलक राज कपूर जी)  | 
फ़ल्सफ़ा जि़न्दगी का समझ आएगा  | 
कश्तियॉं कागज़ों की तिराया करो  | 
तिलमिलाया  | 
(श्री सूबे सिंह सुजन जी)  | 
आग सा आचरण मत करो दोस्तो,  | 
छोटी बातों पे मत तिलमिलाया करो  | 
थरथराया  | 
(श्री सूबे सिंह सुजन जी)  | 
आजकल रेल पल-पल में आने लगी,  | 
अब न पुल तुम बहुत थरथराया करो  | 
दबाया  | 
(श्री अरुण कुमार निगम जी)  | 
जान ले न कहीं ये अदा मदभरी  | 
उँगली दाँतो तले न दबाया करो  | 
(श्री अलबेला खत्री जी)  | 
गीत को गीत की तरह गाया करो  | 
चुटकुलों के तले मत दबाया करो  | 
दैर का घंट भी तुम बजाओ मगर  | 
पाँव पहले पिता के दबाया करो  | 
(श्री आलोक सीतापुरी जी)  | 
मुफलिसों को न नाहक सताया करो  | 
हसरतों को न इनकी दबाया करो  | 
(श्री तिलक राज कपूर जी)  | 
कातिलाना सी लगती है ऐसी अदा  | 
दॉंत में अंगुलियाँ मत दबाया करो  | 
दिखाया  | 
(श्री अरविन्द चौधरी जी)  | 
ऐब अपने न अक्सर छुपाया करो,  | 
ज़ख्म दिल के दुजे को दिखाया करो  | 
(श्री उमाशंकर मिश्रा जी)  | 
आज लग कर गले हम चलो झूम लें  | 
ख्वाब में ही न जन्नत दिखाया करो  | 
(श्री मजाज़ सुल्तानपुरी जी)  | 
हक़ परस्ती अगर तेरा शेवा है तो l  | 
आईना आईनों को दिखाया करो  | 
(श्री मोहम्मद नायाब जी)  | 
यूँ न चेहरे से परदा हटाया करो l  | 
सबको जलवा न अपना दिखाया करो  | 
(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)  | 
रूठी बीबी कहे कैसे सौहर हो तुम।  | 
ले चलो हमको पिक्चर दिखाया करो  | 
(श्री वीनस केसरी जी)  | 
सीख लो मुझसे तुम, इश्क की हर अदा,  | 
और मुझको ही तेवर दिखाया करो  | 
(श्री संदीप कुमार पटेल जी)  | 
वो बुरा मान बैठें न तुमसे कहीं  | 
आइना यूँ उसे मत दिखाया करो  | 
(श्री संदीप द्विवेदी वाहिद काशीवासी जी)  | 
एक मासूम बच्चे की इक भूल पर,  | 
लाल आँखें न उसको दिखाया करो  | 
ये अदाएं बनावट की भाती नहीं,  | 
ये अदाएं न हमको दिखाया करो  | 
(श्री सुरिंदर रत्ती जी)  | 
खा चुके हैं कई ठोकरें अब तलक  | 
मौत का डर हमें ना दिखाया करो  | 
(सुश्री सीमा अग्रवाल जी)  | 
आइना मत बनो सबके चेहरों का तुम  | 
खुद का चेहरा भी सबको दिखाया करो  | 
नचाया  | 
(श्री अरविन्द चौधरी जी)  | 
रक्स हमसे कराती रही ज़िंदगी  | 
पर कभी ज़ीस्त को भी नचाया करो  | 
नहाया  | 
(योगराज प्रभाकर)  | 
रूप की धूप की रौशनी आरज़ी  | 
रूह की चांदनी में नहाया करो  | 
सच कहा, देश का जल न ज़ाया करो  | 
साल में इक दफा तो नहाया करो  | 
(श्री अशफाक अली गुलशन खैराबादी जी)  | 
सब्ज़ वादी में गुलशन की आया करो l  | 
रोज़ शबनम में तुम भी नहाया करो  | 
निभाया  | 
(अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर' जी)  | 
आज 'अम्बर' जमीं मिल रहे हैं जहाँ  | 
चल बसें हम वहीं यूं निभाया करो  | 
(श्री अरविन्द कुमार जी)  | 
जो भी रिश्ता रखो, लाज़मी है यही.  | 
इक सलीके से उसको निभाया करो  | 
(श्री अरुण कुमार निगम जी)  | 
झूठे वादों से यूँ न लुभाया करो  | 
वादा कर ही लिया तो निभाया करो  | 
(श्री अलबेला खत्री जी)  | 
प्यार करना न करना अलग बात है  | 
पर करो तो इसे तुम निभाया करो  | 
(श्री आलोक सीतापुरी जी)  | 
कम से कम ख्वाब में आ ही जाया करो  | 
बावफा बन के वादा निभाया करो  | 
(श्री तिलक राज कपूर जी)  | 
ठोस हों ठीक है, पर सरल है सहज  | 
पात्र जैसा मिले वो निभाया करो  | 
(श्री शरीफ अहमद कादरी हसरत जी)  | 
यूँ न मुझको सनम तुम सताया करो  | 
मुझसे वादा करो तो निभाया करो  | 
नुमाया  | 
(श्री संदीप द्विवेदी वाहिद काशीवासी जी)  | 
पाक है और है बस तुम्हारे लिए,  | 
मेरे अहसास को मत नुमाया करो  | 
(सुश्री सीमा अग्रवाल जी)  | 
बात होठों पे कुछ है निहां दिल में कुछ  | 
ये गलत बात है सच नुमाया करो  | 
पकाया  | 
(अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर' जी)  | 
जब भी आयें खुशी से मेरी सासजी  | 
उनकी खातिर हूँ मुर्गा पकाया करो  | 
(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)  | 
फूल फल अन्न दिया है खुदा ने हमें।  | 
शाक आहार भोजन पकाया करो  | 
पटाया  | 
(योगराज प्रभाकर)  | 
घर बसाने की हो गर ज़रा आरजू  | 
नाजनीं का वो डॉगी पटाया करो  | 
पढाया-लिखाया  | 
(श्री अविनाश बागडे जी)  | 
काम आयेंगी तुमको यही बाद में,  | 
बेटियों को पढाया-लिखाया करो  | 
पराया  | 
(श्री मजाज़ सुल्तानपुरी जी)  | 
जानते हो की दुनियाए फ़ानी है ये l  | 
भूल कर भी न अपना पराया करो  | 
(श्री विवेक मिश्र जी)  | 
सब अमानत है अल्लाह की दोस्तों  | 
भूल कर तुम न अपना पराया करो  | 
(श्री वीनस केसरी जी)  | 
जब भी चाहो बसा लो मुझे दिल में तुम,  | 
जब भी चाहो मुझे तुम पराया करो  | 
पिलाया  | 
(श्री अशफाक अली गुलशन खैराबादी जी)  | 
होश की बात करता रहूँ उम्र भर l  | 
जाम कोई तो ऐसा पिलाया करो  | 
(श्री आलोक सीतापुरी जी)  | 
जाम-ओ-मीना की हालत नहीं साकिया  | 
तुम निगाहों से मुझको पिलाया करो  | 
(श्री उमाशंकर मिश्रा जी)  | 
फूल को चूम कर भौंरा पागल हुआ  | 
घोल मदहोशी, रस न पिलाया करो  | 
(श्री मोहम्मद नायाब जी)  | 
दिल लगी मत करो दिल लगाया करो l  | 
अश्के गम यूँ न मुझको पिलाया करो  | 
सब हँसेंगे अगर मैं बहक जाऊंगा l  | 
जाम पर जाम यूँ मत पिलाया करो  | 
(श्री विवेक मिश्र जी)  | 
प्यास का हम गिला न करेंगे कभी  | 
जाम नज़रों से अपनी पिलाया करो  | 
(श्री शफाअत खैराबादी जी)  | 
कैसे देखूं तुम्हें होश ही जब नहीं  | 
साक़िया अब न इतनी पिलाया करो  | 
फिराया  | 
(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)  | 
फल खाओ पिओ दूध को ठाट से।  | 
हाथ मूंछों पे अपने फिराया करो  | 
फुलाया  | 
(योगराज प्रभाकर)  | 
शेर घटिया कहे तब तो जूते पड़े  | 
बेवजह यूँ न नथुने फुलाया करो  | 
बचाया  | 
(श्री अलबेला खत्री जी)  | 
मुल्क़ सारा हमारा जला जा रहा  | 
हो सके तो इसे तुम बचाया करो  | 
(श्री आलोक सीतापुरी जी)  | 
फूल के साथ काँटों से भी प्यार हो  | 
हाँ मगर दामन-ए-दिल बचाया करो  | 
(श्री उमाशंकर मिश्रा जी)  | 
चश्म की झील में बस डुबादो मुझे  | 
डूब जाने भी दो मत बचाया करो  | 
मनचली है हवा ओढ़नी ओढ़ लो  | 
इन हवाओं से दामन बचाया करो  | 
(श्री मजाज़ सुल्तानपुरी जी)  | 
हर बुराई लिपटने को तैयार है l  | 
अपने दामन को ख़ुद ही बचाया करो  | 
(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)  | 
इसमें पोषण बहुत ही विटामिन भरे।  | 
मांस आहार खुद को बचाया करो  | 
कौन साथी बुढ़ापे का? कोई नहीं।  | 
धन बुढ़ापे के खातिर बचाया करो  | 
(श्री विवेक मिश्र जी)  | 
प्यार के दीप दिल में जलाया करो  | 
दाग लगने से दामन बचाया करो  | 
बजाया  | 
(श्री उमाशंकर मिश्रा जी)  | 
लब थिरकते हुए अनकही कह गये  | 
शब्द अनहद का यूँ न बजाया करो  | 
बढाया  | 
(श्री अविनाश बागडे जी)  | 
खुदा बन के आएगा ग्राहक कभी!!  | 
दुकानें ना जल्दी बढाया करो  | 
(सुश्री राजेश कुमारी जी)  | 
पत्थरों पे चलो ठोकरों से गिरो  | 
पाँव को ध्यान से तुम बढाया करो  | 
(सुश्री सिया सचदेव जी)  | 
कोई कांटा चुभे भी तो चुभता रहे  | 
पावं मंज़िल की ज़ानिब बढाया करो  | 
(श्री विवेक मिश्र जी)  | 
तेरे क़दमों को चूमेंगी खुद मंजिलें  | 
सिर्फ क़दमों को अपने बढ़ाया करो  | 
(श्री विवेक मिश्र जी)  | 
राह में सैकड़ो अड़चने आयेंगी  | 
सोच कर हर कदम को बढ़ाया करो  | 
बताया  | 
(योगराज प्रभाकर)  | 
पुलसिया कर सकेगा न चालान भी  | 
खुद को डीसी का साढ़ू बताया करो  | 
(श्री अरविन्द कुमार जी)  | 
इस तरह मुझको अब तुम भुलाया करो,  | 
मेरे बारे में सब को बताया करो  | 
(श्री अविनाश बागडे जी)  | 
कोख में मार कर यूँ किसी जान को ,  | 
मर्द खुद को कभी ना बताया करो  | 
हद से ज्यादा न हमको पिलाया करो,  | 
साक़िया हद हमें भी बताया करो  | 
(श्री संदीप द्विवेदी वाहिद काशीवासी जी)  | 
यूँ घुमा कर न बातें बनाया करो;  | 
जो भी कहना हो सीधा बताया करो  | 
(सुश्री राजेश कुमारी जी)  | 
फूल तो यूँ शराफत के भी हैं खिले  | 
तुम सभी को न काँटे बताया करो  | 
बनाया  | 
(डॉ सूर्या बाली सूरज जी)  | 
गर बनानी है पहचान तुमको नई,  | 
लीक से हट के रस्ते बनाया करो  | 
(योगराज प्रभाकर)  | 
आसमानों में होगी ग़ज़ल की महक  | 
गर ज़मीनों को मौजू बनाया करो  | 
(श्री अरविन्द कुमार जी)  | 
सुर्ख नज़रें जो फिर से बरसने लगें,  | 
रेत का तुम बहाना बनाया करो  | 
(श्री अरविन्द चौधरी जी)  | 
छूट जाते रहेंगे किनारे वले  | 
नाखुदा तुम ख़ुदा को बनाया करो  | 
(श्री अरुण कुमार निगम जी)  | 
संग के शहर में , काँच का आशियाँ  | 
है मेरा मशवरा , मत बनाया करो  | 
(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)  | 
पेट नेमत खुदा की भरण के लिए।  | 
इसको शमसान तुम न बनाया करो  | 
(श्री शरीफ अहमद कादरी हसरत जी)  | 
क्या तुम्हारे हे दिल में मुझे हे पता  | 
यूँ न मुझसे बहाने बनाया करो  | 
(सुश्री सिया सचदेव जी)  | 
तुम किसी के हुए ही नहीं जब कभी  | 
फिर किसी को न अपना बनाया करो  | 
सब्र की बारिशों में नहाया करो  | 
अपने मक़सद को अपना बनाया करो  | 
बसाया  | 
(श्री तिलक राज कपूर जी)  | 
जो न अच्छी लगे, भूल जाया करो  | 
बात ऐसी न दिल में बसाया करो  | 
(श्री मजाज़ सुल्तानपुरी जी)  | 
मेरी गज़लों को जब गुनगुनाया करो l  | 
प्यार को मेरे दिल में बसाया करो  | 
बहाया  | 
(योगराज प्रभाकर)  | 
ये तो है कीमती हर ज़रो सीम से  | 
बेसबब यूँ लहू ना बहाया करो  | 
(श्री अविनाश बागडे जी)  | 
सरहदों पर जरुरत है पड़ती बहुत,  | 
खून दंगों में यूँ ना बहाया करो  | 
(श्री तिलक राज कपूर जी)  | 
दर्द बहता है ऑंसू में घुलकर अगर  | 
बेवफ़ा पर न ऑंसू बहाया करो  | 
(श्री दिलबाग विर्क जी)  | 
सच यही मेहनत रंग लाती सदा  | 
छोड़ आलस पसीना बहाया करो  | 
(श्री शरीफ अहमद कादरी हसरत जी)  | 
तुमको रोते हुए देख सकता नहीं  | 
यूँ न आंसू सनम तुम बहाया करो  | 
बिछाया  | 
(श्री तिलक राज कपूर जी)  | 
एक प्यादा भी मुमकिन है भारी पड़े  | 
सोचकर ही बिसातें बिछाया करो  | 
घर किसी को जब अपने बुलाया करो  | 
हर तरफ़ मुस्कराहट बिछाया करो  | 
(सुश्री सिया सचदेव जी)  | 
अपनी मंज़िल को मुश्किल बना लो सिया  | 
राह में ख़ुद ही कांटे बिछाया करो  | 
बिताया  | 
(श्री अरुण कुमार निगम जी)  | 
खुद हँसो , दूसरों को हँसाया करो  | 
ज़िंदगी हँसते - गाते बिताया करो  | 
(श्री अविनाश बागडे जी)  | 
जिंदगी इस तरह से न जाया करो ,  | 
साथ अपने भी कुछ पल बिताया करो  | 
बुझाया  | 
(डॉ सूर्या बाली सूरज जी)  | 
बस समंदर के जैसे बड़े न बनो,  | 
प्यास भी तो किसी की बुझाया करो  | 
(श्री आलोक सीतापुरी जी)  | 
इन चरागों में जब रोशनी ही नहीं  | 
तुम जलाया करो या बुझाया करो  | 
बुलाया  | 
(अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर' जी)  | 
ओबीओ पर जमा मैं ग़ज़ल कह रहा  | 
घूर कर ना मुझे यूं बुलाया करो  | 
(योगराज प्रभाकर)  | 
बूढ़ी बीवी को यूँ भी पटाया करो  | 
दिन ढले उनको जानूँ बुलाया करो  | 
(श्री अविनाश बागडे जी)  | 
हम भी दिल में उतरने का रखतें हैं फ़न  | 
महफ़िलों में हमें भी बुलाया करो  | 
(श्री आलोक सीतापुरी जी)  | 
बारहा कह चुका मैं शराबी नहीं  | 
मैकदे में न मुझको बुलाया करो  | 
(श्री संदीप द्विवेदी वाहिद काशीवासी जी)  | 
प्यार है गर तो रिश्ता निभाया करो;  | 
ख़ुद भी आओ हमें भी बुलाया करो  | 
भगाया  | 
(अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर' जी)  | 
शौक से आ रहीं जो मेरी सालियाँ  | 
पांव उलटे उन्हें ना भगाया करो  | 
भाया  | 
(योगराज प्रभाकर)  | 
या तो काजल का टीका लगाया करो  | 
या मुझे इस क़दर तुम न भाया करो  | 
भुलाया  | 
(श्री अलबेला खत्री जी)  | 
शाइरी है नियामत ख़ुदा की हमें  | 
बात ये शायरो ! मत भुलाया करो  | 
(श्री दिलबाग विर्क जी)  | 
चाहते हो अगर चैन तुमको मिले  | 
गलतियाँ दूसरों की भुलाया करो  | 
(श्री विवेक मिश्र जी)  | 
चाहते हो जो खुशियाँ रहे साथ में  | 
मुस्कुरा कर ग़मो को भुलाया करो  | 
(श्री शफाअत खैराबादी जी)  | 
चाहे जितनी भी हो जायें अब दूरियां  | 
दिल से हरगिज़ न हमको भुलाया करो  | 
(सुश्री सिया सचदेव जी)  | 
बात का घाव भरता नहीं है कभी  | 
इस हक़ीक़त को तुम मत भुलाया करो  | 
मचाया  | 
(श्री अविनाश बागडे जी)  | 
देखते ही नज़र यूँ उन्हें बारहा ,  | 
धडकनों शोर यूँ ना मचाया करो  | 
मनाया  | 
(योगराज प्रभाकर)  | 
रस्मे उल्फत कभी तो निभाया करो  | 
रूठ जाऊँ कहीं तो मनाया करो  | 
(श्री विवेक मिश्र जी)  | 
लड़ रहे हैं जो सरहद पे उनके लिए l  | 
कुछ दुआ ही खुदा से मनाया करो  | 
(श्री शफाअत खैराबादी जी)  | 
मेरे हमदम न आंसू बहाया करो  | 
रूठ जाऊं तो हंस कर मनाया करो  | 
मिटाया
(डॉ सूर्या बाली सूरज जी)
हर तरफ नूर तुमको नज़र आएगा,
पहले दिल के अंधेरे मिटाया करो
(योगराज प्रभाकर)
दोस्ती के मवाके बनाया करो
दुश्मनी को दिलों से मिटाया करो
(श्री अरविन्द चौधरी जी)
इशरते इश्क कुछ इस तरह लीजिए
ग़म कहीं भी रहे,ग़म मिटाया करो
(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)
मैं भी बहकूं ज़रा तुम भी बहको ज़रा।
फासले दूरियां सब मिटाया करो
(श्री संदीप कुमार पटेल जी)
कौम की काली बदली जो छाने लगे
गर्दिशें साथ मिलके मिटाया करो
(श्री संदीप द्विवेदी वाहिद काशीवासी जी)
दर्द के जो निशां वक़्त ने हैं दिए,
रोज़ थोड़ा सा उनको मिटाया करो
मिलाया
(श्री आलोक सीतापुरी जी)
आईना देखते हो तो देखो मगर
गमजदों से भी आँखें मिलाया करो
देने वाले से ताब-ए-नज़र मांगकर
तुम भी सूरज से आँखें मिलाया करो
बार-ए-गम मुस्कुरा के उठाया करो
गम के तूफां से नज़रे मिलाया करो
(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)
राह में तुम मिले मुस्करा चल दिये।
हाथ तो रुक के हमसे मिलाया करो
(श्री विवेक मिश्र जी)
ऐ "विवेक" उसकी जादूगरी देख लो
उससे नज़रें न अपनी मिलाया करो
(श्री शफाअत खैराबादी जी)
पालते क्यूँ हो बुग्ज़ो हसद नफरतें
दिल को दिल से हमेशा मिलाया करो
मुस्कराया
(श्री तिलक राज कपूर जी)
आज दुश्मन हैं, कल दोस्त बन जायेंगे
चोट दिल पर लगे, मुस्कराया करो
मुस्कुराया
(अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर' जी)
दर्द दिल में कभी मत छुपाया करो
दर्द हो प्यार से मुस्कुराया करो
(डॉ सूर्या बाली सूरज जी)
मुश्किलें देख कर डर न जाया करो।
ग़म के लम्हों में भी मुस्कुराया करो
(श्री मोहम्मद नायाब जी)
जान ही न ये ले ले तुम्हारी अदा l
यूँ न मिलते हुए मुस्कुराया करो
(श्री वीनस केसरी जी)
वक्त ए रुखसत निगाहें वो कहती गईं,
मुझको सोचा करो.... मुस्कुराया करो
(श्री शफाअत खैराबादी जी)
पास आओ तो ये दिल बहल जायेगा
दूर से यूँ न तुम मुस्कुराया करो
(श्री संदीप द्विवेदी वाहिद काशीवासी जी)
ज़िंदगी और भी है ग़मों के सिवा,
जब भी मिलते हो कुछ मुस्कुराया करो
(सुश्री सिया सचदेव जी)
सब्र को अपने यूं आज़माया करो
शिद्दत ए ग़म में भी मुस्कुराया करो
घटाया
(योगराज प्रभाकर)
रेल है देश की देश के लाल तुम
ले टिकट वैलिऊ ना घटाया करो
रचाया
(श्री संदीप द्विवेदी वाहिद काशीवासी जी)
चौके-बर्तन से थोड़ी सी फ़ुर्सत निकाल,
तुम हथेली हिना भी रचाया करो
रियाया
(सुश्री सिया सचदेव जी)
हाकिम ए वक़्त ख़ुद कुछ भी करते नहीं
सिर्फ़ कहते है हमसे रियाया करो
रुलाया
(योगराज प्रभाकर)
सौ हजों का सिला ख़ाक हो जाएगा)
मुफलिसों को कभी ना रुलाया करो
लगाया
(अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर' जी)
हैं जलेबी मेरी रसभरी सालियाँ
चाशनी में न डुबकी लगाया करो
(योगराज प्रभाकर)
हर बुलंदी लगेगी क़दम चूमने
तुम ज़रा गहरे गोता लगाया करो
(श्री अरविन्द कुमार जी)
टीस पिछले ग़मों की जो उठने लगे,
घाव ताज़ा सा दिल पे लगाया करो
(श्री अरविन्द चौधरी जी)
प्यार अपना पराया नहीं मानता
गैर को भी गले से लगाया करो
(श्री अरुण कुमार निगम जी)
कुछ हैं कमजोरियाँ,कुछ हैं नादानियाँ
हर किसी को गले से लगाया करो
(श्री अलबेला खत्री जी)
पेड़ तुमको उगाना अगर साथियों
बीज धरती के भीतर लगाया करो
(श्री अविनाश बागडे जी)
आखरी सच है अविनाश तुम जान क़े,
यूँ जनाज़े पे कान्धा लगाया करो
(श्री आलोक सीतापुरी जी)
ईद तो हो गयी देखते ही तुम्हें
बांह भर भर गले से लगाया करो
(श्री उमाशंकर मिश्रा जी)
जल्वे हम पे भी थोड़े लुटाया करो
खिड़कियों पर न परदे लगाया करो
(श्री तिलक राज कपूर जी)
कर्ज़ मिट्टी का चुकता हो करना अगर
गोद में पेड़ इसकी लगाया करो
(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)
वजन से ही सबकुछ है सम्भव नहीं।
भोग बाबू को भी कुछ लगाया करो
(श्री विवेक मिश्र जी)
ज़िन्दगी में जो रिश्वत के कायल रहे
उनके कफ्नों में जेबें लगाया करो
(श्री शफाअत खैराबादी जी)
बेवफा अब मिलेंगे "शफाअत" बहुत
हर किसी से न दिल तुम लगाया करो
(श्री संदीप कुमार पटेल जी)
आत्म सम्मान अपना बचाया करो
मोल ईमान का मत लगाया करो
चोट खा कर जरा मुस्कुराया करो
गर जिगर संग से तुम लगाया करो
(श्री संदीप द्विवेदी वाहिद काशीवासी जी)
हो ख़ुशी हार जाने से भी जिस जगह,
शर्त ऐसी जगह तुम लगाया करो
(सुश्री सिया सचदेव जी)
जब घनी छावं की है तमन्ना तो फिर
पेड़ गमले में तुम मत लगाया करो
लड़ाया
(श्री वीनस केसरी जी)
हम जो कह दें उसे मान जाया करो |
आईनों से जबां मत लड़ाया करो
लाया
(श्री अशफाक अली गुलशन खैराबादी जी)
मेरी आंखें भी नम हैं तुम्हारी तरह l
अश्क आँखों में तुम यूँ न लाया करो
(श्री आलोक सीतापुरी जी)
जिन्दगी भर जियो जिन्दगी के लिए
मौत का खौफ दिल में न लाया करो
(श्री तिलक राज कपूर जी)
काम आफिस में माना बहुत है मगर
घर तलक इसकी छाया न लाया करो
(श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी)
खून जीवों का तुम मत करो भूलकर।
प्यार करुणा दया मन में लाया करो
लुटाया
(श्री अविनाश बागडे जी)
बेसबब हर किसी के लिये अश्क के,
मोतियों को न ऐसे लुटाया करो
(श्री अशफाक अली गुलशन खैराबादी जी)
जिसने अरमान तुम पर निछावर किये l
दिल जिगर जान उस पर लुटाया करो
(श्री उमाशंकर मिश्रा जी)
आज मीरा को माधव मिले ना मिले
प्रेम माखन हमेशा लुटाया करो
(श्री वीनस केसरी जी)
अपनी कीमत को समझा करो दोस्तो,
इस कदर भी न खुद को लुटाया करो
खुद को खुद से बचाया करो दिन में तुम,
रात भर खुद को खुद पे लुटाया करो
(श्री संदीप द्विवेदी वाहिद काशीवासी जी)
बांटने से कभी कम ये होते नहीं,
प्यार दो और ख़ुशियां लुटाया करो
शाया
(योगराज प्रभाकर)
तुम गुलों पे ज़मीमे निकालो भले
तितलियाँ की हलाकत भी शाया करो
सजाया
(श्री तिलक राज कपूर जी)
तुम न काजल नयन में लगाया करो
बदलियॉं झील पर मत सजाया करो
(श्री दिलबाग विर्क जी)
चाँद-तारे भले कुछ न लाया करो
दिल वफा से मगर तुम सजाया करो
(श्री विवेक मिश्र जी)
जब कफ़न को मिले तो तिरंगा मिले l
ख़्वाब सीने में ये ही सजाया करो
जब वतन के पुजारी चलें यात्रा l
राह फूलों से उनकी सजाया करो
(श्री संदीप कुमार पटेल जी)
भ्रष्ट है तंत्र बहरा और गूंगा नहीं
करने फ़रियाद महफ़िल सजाया करो
सताया
(श्री अशफाक अली गुलशन खैराबादी जी)
टूट सकते हैं आख़िर हम इंसान हैं l
हर तरह से न हमको सताया करो
(श्री उमाशंकर मिश्रा जी)
ये कैसी तड़प है तेरे प्यार की
यूँ नजर फेर कर ना सताया करो
(श्री वीनस केसरी जी)
मैं भी तुमको परेशां करूँ रात दिन,
तुम भी मुझको बराबर सताया करो
(श्री संदीप कुमार पटेल जी)
याद करके पुराने अहद इश्क के
दीप खुद को न तुम यूँ सताया करो
सफाया
(योगराज प्रभाकर)
मुफलिसी मुल्क से हो मिटानी अगर
मुफलिसों का यहाँ से सफाया करो
समाया
(श्री आलोक सीतापुरी जी)
खाना-ए-दिल मेरा मुख़्तसर तो नहीं
प्यार के साथ इसमें समाया करो
साया
(योगराज प्रभाकर)
बचपने की पनीरी न सूखे कभी
सायबाँ से बनो उनपे साया करो
(श्री अविनाश बागडे जी)
वक़्त की धूप में सब झुलस जायेगा ,
अपनी जुल्फों का हम पे भी साया करो
(श्री तिलक राज कपूर जी)
इन दरख़्तों से सीखो कि जीवन है क्या
धूप सर पे रखो सब पे साया करो
(श्री संदीप द्विवेदी वाहिद काशीवासी जी)
इस कड़ी धूप में ये झुलस जाएगा,
नन्हे पौदे को कुछ देर साया करो
सिखाया
(श्री अरुण कुमार निगम जी)
सीखते हैं सभी , थाम कर उँगलियाँ
नन्हें बच्चों को चलना सिखाया करो
(श्री सुरिंदर रत्ती जी)
बरहना खेल गन्दा सियासत भरा
ना खेलो तुम कभी ना सिखाया करो
सुखाया
(योगराज प्रभाकर)
जब निखारा सदा ही बदन धूप से
छाँव से मत पसीना सुखाया करो
सुनाया
(योगराज प्रभाकर)
जानकी के भले गीत गाया करो
उर्मिला की कथा भी सुनाया करो
(श्री अरुण कुमार निगम जी)
चट्ठे - बट्ठे सभी एक थैले के हो
कच्चे चिट्ठे न खुल कर सुनाया करो
(श्री तिलक राज कपूर जी)
खुशनसीबी है क्या ये समझ जायेंगे
उस ज़माने की चिट्ठी सुनाया करो
दिल सभी के न महसूस कर पायेंगे
दर्द अपने न सब को सुनाया करो
(श्री विवेक मिश्र जी)
ऐ "विवेक" अब न नफरत रहे देश में l
ये पयाम अपना सबको सुनाया करो
जान अपनी वतन पे लुटाया करो l
प्यार के गीत गाया सुनाया करो
(श्री संदीप द्विवेदी वाहिद काशीवासी जी)
काफ़िया हो रदीफ़ और हो बह्र भी,
जो कहन की ग़ज़ल हो सुनाया करो
(सुश्री सिया सचदेव जी)
दफ़्न हैं मेरी आँखों में सपने कई
ये कहानी न दिल को सुनाया करो
सुलाया
(श्री अविनाश बागडे जी)
ये तो जज्बात हैं ये भड़क जायेंगे ,
इनको बहला के यूँ ना सुलाया करो
(श्री उमाशंकर मिश्रा जी)
जिस्म की गंध से मन हुआ बावरा
सिर को सहला के यूँ न सुलाया करो
(श्री तिलक राज कपूर जी)
पेट इनका भरो या कहो अलविदा
हस्रतों को न भूखा सुलाया करो
हंसाया
(श्री आलोक सीतापुरी जी)
मशवरा है ये आलोक का साथियों
गम ज़दा रह के सबको हंसाया करो
हटाया
(अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर' जी)
चाँदनी रात में चाँद के सामने
रुख से पर्दा कभी तो हटाया करो
(योगराज प्रभाकर)
गर हकीकत पसंदी के शौक़ीन हो
आइने से नज़र मत हटाया करो
(श्री अविनाश बागडे जी)
दाग चेहरे पे अविनाश हो ढूंढते ,
धूल दर्पण से थोड़ी हटाया करो
(श्री आलोक सीतापुरी जी)
कोई कमजोर दिल का न हो देख लो
जब भी चेहरे से पर्दा हटाया करो
(श्री विवेक मिश्र जी)
चाँद बादल में छुप जायेगा शर्म से
अपने रुख़ से न आंचल हटाया करो
(सुश्री सिया सचदेव जी)
ख़ुद ही मंज़िल चली आएगी सामने
राह के पत्थरों को हटाया करो
हिलाया
(श्री संदीप द्विवेदी वाहिद काशीवासी जी)
सुन्न पड़ जाएँ जब फ़र्ज़ के हाथ-पा,
ज़ह्न झकझोर कर तुम हिलाया करो
बहुत ही अनोखी पेशकश निश्चय ही इससे सीखने वालों को बहुत मदद मिलेगी!
सादर,
काफिया केवल मिस्रा-ए-सानी से उठाये हैं वर्ना शेर दो जगह आ जाता!
इसका मुख्य उद्देश्य एक ही काफिया के साथ कहन की विविधता के रूप प्रस्तुत करने की है! आशा है इससे अपेक्षित लाभ लेने का प्रयास वे अवश्य करेंगे जो ग़ज़ल सीखने के प्रारंभिक चरण में हैं!
आदरणीय तिलक सर जी सादर प्रणाम 
क्या बात है बाकई इससे नौसीखियों को बहुत मदद मिलने वाली है
 इस कठिन किन्तु, सफल और सुखद प्रयास के लिए आपको बहुत बहुत बधाई सर जी '
इसमें देखने की बात यह रहेगी कि आपने जो काफिया बांधा उसी को अन्य शायर ने कैसे बांधा!
जी सर जी इससे अपनी  कहन को और बेहतर ढंग से पेश करने का हुनर भी आएगा 
और ये भी की आपके इक काफिये से कितनी गहराई आ सकती है ग़ज़ल में 
और हो सके तो पहचान भी हो जाएगी आंकलन करके के कौन सा शेर भर्ती का है
हृदय से आभारी हूँ कि यह प्रयास आपको सार्थक लगा!
ओ बे ओ अपने इन्ही अनूठे प्रयासों के ज़रिये हम सबके लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ है | आदरणीय श्री तिलकराज जी और एडमिन जी को हार्दिक धन्यवाद | एक ही काफिया अलग अलग शायरों के द्वारा भिन्न भिन्न सन्दर्भों और स्वरूपों में निरुपित होकर किस प्रकार निखर जाता है इसका यह साक्षात् प्रमाण है | अक्सर किसी एक शब्द को लेकर हम एक ही दायरे में सिमट जाते हैं और कुछ इतर नहीं लिख कह पाते ... ऐसी परिस्थिति में यह संकलन आँखें खोलने वाला भी है |पुनः इस पोस्ट हेतु साधुवाद !!
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