For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़लशाला ( आप भी जाने कि ग़ज़ल कैसे कही जाती है )

ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सम्मानित सदस्यों,
सादर अभिवादन,
मुझे यह बताते हुए ख़ुशी हो रही है कि आदरणीय श्री पुरुषोतम अब्बी "आज़र" जी द्वारा प्रत्येक सप्ताह के शुक्रवार को "ग़ज़ल कैसे कही जाती है" विषय मे विस्तृत चर्चा की जायेगी, आप सब से अनुरोध है कि श्री "आज़र" साहब के अनुभवों से लाभ उठाये,
धन्यवाद |

Views: 4100

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आप भी जाने कि ग़ज़ल कैसे कही जाती है : अंक-1
( यह पोस्ट आदरणीय "आज़र" साहब द्वारा ही लिखी गई है जिसे मैं यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ )

सम्मानित, ओपन बुक्स ऑनलाइन के सभी पाठको को पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र" का
सादर प्रणाम !
आप सभी को यह जान कर हर्ष होगा कि मैं प्रिय एडमिन (OBO) जी के अनुरोध पर प्रत्येक शुक्रवार को ग़ज़ल
कैसे कही जाती है इस विषय पर चर्चा करुगां मैं कहां तक सफ़ल हो पाता हूं यह आप सब फ़नकारों पर निर्भर करता है !
सब से पहले आज आपको आज़र कौन हुये हैं यह बताना चाहूंगा बहुत कम साहित्यकार हैं जो ’आज़र’के बारे में जानते हैं !
यह खिताब हल्का-ए-तशनगाने-अदब दिल्ली द्वारा चार सौ वीं अदबी शाम सफ़र जारी है के इजरा के समय प्रदान किया गया !
’आज़र’एक बहुत विख्यात बुत तराशकार (मूर्तीकार) एंव हजरत इब्राहिम (अ.)के चाचा हुए हैं जिनको मुस्लिम समाज
के लोगों ने कभी नही सविकारा और काफ़िर की संज्ञा दी !

मेरा यह शेर ’आज़र’ को समर्पित !
मुझे लगता है जैसे यह अचानक बोल उठ्ठेगा
ये बुत पथ्थर का है लेकिन मुझे पथ्थर नही लगता

ग़ज़ल और उसका इतिहास
कुल मिला कर अठ्ठाईस (२८) बह्रें होती हैं ! यह मेरे लिये सौभाग्य की बात है कि अब तक मैं बत्तिस(३२) बह्रों में ग़ज़लें कह चुका हूं !
और आगे भी सफ़र जारी है तथा एक सौ एक शेर में दो ग़ज़लें ! और लगभग सौ से ऊपर ग़ज़लें कह चुका हूं !
फ़ारसी से ग़ज़ल उर्दू में आई। उर्दू का पहला शायर जिसका काव्य संकलन(दीवान)प्रकाशित हुआ है, वह हैं मोहम्मद क़ुली क़ुतुबशाह।
आप दकन के बादशाह थे और आपकी शायरी में फ़ारसी के अलावा उर्दू और उस वक्त की दकनी बोली शामिल थी।
उनका एक शेर:-
पिया बाज प्याला पिया जाये ना।
पिया बाज इक तिल जिया जाये ना।।
क़ुली क़ुतुबशाह के बाद के शायर हैं ग़व्वासी, वज़ही,बह्‌री और कई अन्य। इस दौर से गुज़रती हुई ग़ज़ल वली दकनी तक आ पहुंची और उस समय तक ग़ज़ल पर छाई हुई दकनी(शब्दों की) छाप काफी कम हो गई। वली ने सर्वप्रथम ग़ज़ल को अच्छी शायरी का दर्जा दिया और फ़ारसी के बराबर ला खड़ा किया। दकन के लगभग तमाम शायरों की ग़ज़लें बिल्कुल सीधी साधी और सुगम शब्दों के माध्यम से हुआ करती थीं।
आज इतना ही !
धन्यवाद
पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
आज़र साहब!

वन्दे मातरम. ग़ज़ल के कल और आज के साथ-साथ, हमारे लिये गजल कहने की बारीकियों को सीखने का यह बेमिसाल मौका है. आपका हार्दिक स्वागत है.
aaj ayi yah dekh bahut achha laga... aapka ye gyan hamare liye beshkimti hai.. shukriyaa..
बहुत सुन्दर
यह तो हम जैसे नौसिखियों के लिए किसी हीरे के खजाने से कम ना होगा
मैं बहुत उत्साहित हूँ|
पहले पाठ से ही बहुत कुछ जानने को मिला|
राणा जी और आचार्य जी, मैं आप लोगो की बातो से सहमत हूँ और मैं भी उत्सुक हूँ ग़ज़ल को जानने, समझने और सीखने के लिये,
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय "आज़र" साहब को, जो यह सीखने का मौका हमे प्रदान करने जा रहे है,
aadarniya 'azar' saahab ko mera pranaam,
mai kaise bayan karu ki kitni khushi ho rahi hai mujhe. hame ghazal ki baarikiya sikhane ko milegi. itihaas se bhi waakif ho rahe hai ham ghazal ke.
dhanyawaad admin saahab itni achchhi baat ham logo ke saamne rakhne ke liye.
आप भी जाने कि ग़ज़ल कैसे कही जाती है : अंक-2
( यह पोस्ट आदरणीय "आज़र" साहब द्वारा ही लिखी गई है जिसे मैं यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ )

सम्मानित, ओपन बुक्स ऑनलाइन के सभी पाठको को पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र" का
सादर प्रणाम !
आगे जारी बात करूं मैं, शुक्र अदा उन सबका है
जिन सज्जनो ने उत्तर दे कर, मेरा मान बढाया है
प्रिय एडमिन जी का सवाल :-
जनाब ’आज़र’ साहिब आप भी कैसी बातें करते हो और अब तो आप लिखित रूप में कह रहे हो कि कुल मिला कर अठ्ठाइस (२८)बह्रें होती हैं तो जनाब यह बत्तिस (३२)बह्रों में आपने ग़ज़ले कैसे कह दीं !
सवाल दिलचस्प लगा बात भी सही है !
जनाब एडमिन जी सबसे पहले ये मैं यह कहना चाहूंगा कि आईना-ए-ग़ज़ल में (१९)उन्निस बह्रों का जिक्र किया गया है एंव मेरे परम मित्र जनाब डा कु० बेचैन जी द्वारा लिखी (ग़ज़लों का व्याकरण)नामक संग्रह में भी १९ उन्निस बह्रों का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है तथा दूसरी ओर मेरे पूजनीय स्वर्गीय गुरू निश्तर खानकाही जी द्वारा लिखी तथा जनाब डा. गिरिराजशरण अग्रवाल जी (हिन्दी साहित्य निकेतन बिजनौर) द्वारा प्रकाशित (ग़ज़ल और उसका व्याकरण) नामक पुस्तक में अठ्ठाइस (२८)बह्रों का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है !तथा पेज न० (१८२)एक सौ ब्यासी पर मेरा संक्षिप्त जीवन परिचय तथा चंद शेर एंव एक ग़ज़ल का प्रसतुति करण किया गया है ! आप सभी पाठको एंव मित्रों को यह जान कर हर्ष होगा कि (२) बह्रो का और इजाफ़ा हो गया है अब (३४)चोंतिस बह्रों में ग़ज़लें कह चुका हूं !
मेरा कहने का अभिप्राय यह है यदि कोई शायर मौंजू-तबअ है और उसको आमद हो जाये तो इन बह्रों का अंत कहां है छोटे मुहँ बडी बात कहना उचित न होगा !


कुदरत की सब माया मित्रों, कौन इसे है जान सका
मैं तो हूं अदना सा प्राणी ,रहमत रब की मुझ पर है
पहला दौर-
वली के साथ साथ उर्दू शायरी दकन से उत्तर की ओर आई। यहां से उर्दू शायरी का पहला दौर शुरू होता है। उस वक्त के शायर आबरू, नाजी, मज्‍़नून, हातिम, इत्यादि थे। इन सब में वली की शायरी सबसे अच्छी थी। इस दौर में उर्दू शायरी में दकनी शब्द काफी़ हद तक कम हो गये थे। इसी दौर के आख़िर में आने वाले शायरों के नाम हैं-मज़हर जाने-जानाँ, सादुल्ला ‘गुलशन’ ,ख़ान’आरजू’ इत्यादि। यक़ीनन इन सब ने मिलकर उर्दू शायरी को अच्छी तरक्क़ी दी।
ग़ज़ल मुख़्तलिफ़ शेरों में कही जाती है एंव ग़ज़ल मुसलसल भी कही जाती है !बनाई कदापी नही जाती या तो लिखी जाती है या कही जाती है ! हर शेर में दो पंक्तियाँ होती हैं। शेर की हर पंक्ति को मिसरा कहते हैं। ग़ज़ल की खा़स बात यह है कि उसका प्रत्येक शेर अपने आप में एक सम्पूर्ण विचार धारा लिए होता है और उसका सारोकार ग़ज़ल में आने वाले अगले,पिछले अथवा अन्य शेरों से हो ,यह ज़रुरी नहीं। इसका अर्थ यह हुआ कि किसी ग़ज़ल में अगर १०१ शेर हों तो यह कहना गलत न होगा कि उसमें १०१ स्वतंत्र विचार धारएं हैं। ग़ज़ल कवीता तथा गीत कदापी नही हो सकता! व्याकरण का संपूर्ण ज्ञान भी किसी वयक्ति को शायर नही बना सकता ! विधी-विधान केवल
शेर के गुण-दोष परखने के काम आता है इस ज्ञान से शेर या ग़ज़ल कहना सीखा जा सकता है !यदि कोई वयक्ति अपने स्वाभाव से काव्यात्मक नही है उसकी प्रवृति छंदो के अनुकूल नहीं है अथवा वह शायराना मिजाज का व्यक्ति नही है यदि उर्दू शब्दों में कहें तो कोई व्यक्ति यदि मौंजू-तबअ नहीं है तो व्याकरण की गहरी से गहरी जानकारी भी उसे ग़ज़ल लिखना नहीं सिखा सकती इस लिए ग़ज़ल के विधी-विधान पर यह चर्चा उन ग़ज़लकारों के लिए है जो मौंजू-तबअ हैं !
ग़ज़ल का विष्लेषण

शेर के पहले मिसरे को ‘मिसर-ए-ऊला’ और दूसरे शेर को ‘मिसर-ए-सानी’ कहते हैं।
मत्ला
ग़ज़ल के पहले शेर को ‘मत्ला’ कहते हैं। इसके दोनो मिसरों में यानि पंक्तियों में ‘काफिया’ होता है। अगर ग़ज़ल के दूसरे
शेर की दोनों पंक्तियों में का़फ़िया तो उसे ‘हुस्ने मत्‍ला’ या ‘मत्ला-ए-सानी’ कहा जाता है।
क़ाफिया
वह शब्द जो मत्ले की दोनों पंक्तियों में और हर शेर की दूसरी पंक्ति में रदीफ़ के पहले आये उसे ‘क़ाफ़िया’ कहते हैं। क़ाफ़िया बदले हुये रूप में आ सकता है। लेकिन यह ज़रूरी है कि उसका उच्चारण समान हो, जैसे बर, गर, तर, मर, डर, अथवा मकाँ,जहाँ,समाँ ,सुना ,गया ,जरा,मिला ,उठा इत्यादि।
रदीफ़
प्रत्येक शेर में ‘का़फ़िये’ के बाद जो शब्द आता है उसे ‘रदीफ’ कहते हैं। पूरी ग़ज़ल में रदीफ़ एक होती है। ऐसी ग़ज़लों को ‘ग़ैर-मुरद्दफ़-ग़ज़ल’ कहा जाता है।
मक्‍़ता
ग़ज़ल के आख़री शेर को जिसमें शायर का नाम अथवा उपनाम हो उसे ‘मक्‍़ता’ कहते हैं। अगर नाम न हो तो उसे केवल ग़ज़ल का ‘आखरी शेर’ ही कहा जाता है। शायर के उपनाम को ‘तख़ल्लुस’ कहते हैं।

आज इतना ही !
धन्यवाद
पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
आदरणीय "आज़र" साहब,
प्रणाम,
दूसरा अंक भी बहुत जानकारी से परिपूर्ण है, मुझे लगता है कि यह ग़ज़लशाला हम जैसो के लिये एक वरदान होगा, धन्यवाद,
आदरणीय गुरु जी सादर प्रणाम
ग़ज़ल की बारीकियों से रूबरू करवाती यह पाठशाला एक नियमित कक्षा की भांति लग रही है| रोचक जानकारियों के मिलने से ज्ञान में अभूतपूर्व वृद्धि हो रही है|
यदि होमवर्क भी मिले और गुरु जी द्वारा चेक किया जाये तो यह सीखने की प्रक्रिया और सहज़ता से आगे बढ़ेगी|
पाठ २ की सामग्री उपयोगी है.
मकाँ,जहाँ,समाँ आदि के सम्बन्ध में निवेदन है कि जब शब्द के अंत में 'न' अक्षर आता हो और उसे लुप्त कर दिया जाये तो उससे पहले के अक्षर पर केवल बिंदी लगती है. जैसे : मकान = मकां, दुकान = दुकां, बयान = बयां, जहान = जहां, समान = समां, सामान = सामां, नादान = नादां, पशेमान = पशेमां इत्यादि.
जहाँ = जिस जगह, वहाँ = उस जगह, यहाँ = इस जगह, में अंतिम अक्षर पर चन्द्र बिंदी है चूंकि 'न' का उच्चारण स्पष्टतः नहीं है. इसी तरह हँस = हँसना क्रिया में है जबकि हंस = हन्स = पक्षी, उच्चारण में 'आधा न' बोला जाता है..
ati uttam janakari.. Dhanyvaad "Aajar ji"
pahle to mai kuchh bhi nahi jaanta tha ki ghazal ka wastik swarup kya hai. lekin in do anko me bahut kuchh jaanane ko mil gya. asha hai aage bhi margdarshan hota rahega.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"मौजूदा जीवन के यथार्थ को कुण्डलिया छ्ंद में बाँधने के लिए बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी. "
8 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।जब  चाहो  तब …"
13 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"भाई शिज्जू जी, क्या ही कमाल के अश’आर निकाले हैं आपने. वाह वाह ...  किस एक की बात करूँ…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपके अभ्यास और इस हेतु लगन चकित करता है.  अच्छी गजल हुई है. इसे…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है …"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service