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अनुज बृजेश , आपका चुनाव अच्छा है , वैसे चुनने का अधिकार तुम्हारा ही है , फिर भी आपके चुनाव से मेरी पूर्ण सहमति है , आदरणीय बागपतवी जी अनुभवी ग़ज़ल कार हैं |
एक अँधेरा लाख सितारे
आदरणीय जज़्बातों से लबरेज़ अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। मतले पर अच्छी चर्चा हो रही है, एक विकल्प और सही -
किसे जगा के सुनाएँ उदास हैं कितने
सितारे, चाँद, हवाएँ उदास हैं कितने...
बिरह में किस को बताएं उदास हैं कितने
किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने
सादर
आपने जो सुधार किया है, वह उचित है, भाई बृजेश जी।
किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने
ख़मोश रात बिताएं उदास हैं कितने
साथ ही, यह सोचने-विचारने के लिए कुछ और आयाम भी प्रशस्त करता दीख रहा है। जैसे, उला-सानी मिसरे को, देखिए, यदि जक्स्टापोज किया जाय -
खमोश पल ये बताएँ, उदास हैं कितने
मगर कहाँ ये सुनाएँ, उदास हैं कितने
अर्थात, इस पर काम करते रहें, जबतक कि सर्वमान्य मिसरे और आश्वस्तिकारी मतला हो नहीं जाता
शुभ-शुभ
अनुज बृजेश
किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने
ख़मोश रात बिताएं उदास हैं कितने ... ठीक लग रहा है , मुझे भी एक हल सूझ है , अगर ठीक लगे तो
किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने
हमी को हम ही बताएं उदास हैं कितने --- अगर जो आप कहना चाहते हैं उसके करीब लगे तो विचार कर सकते हैं
आदरणीय सौरभ सर ओ बी ओ का मेल वाकई में नहीं देखा माफ़ी चाहता हूँ
आदरणीय नीलेश जी, आ. गिरिराज जी ,आ. धामी जी
मतले को ऐसा कहें तो?
किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने
ख़मोश रात बिताएं उदास हैं कितने
ओबीओ का मेल चेक करें
आदरणीय सौरभ सर सादर नमन....दोष तो दोष है उसे स्वीकारने और सुधारने में कोई संकोच नहीं है।
भाई बृजेश जी, आपको ओबीओ के मेल के जरिये इस व्याकरण सम्बन्धी दोष के प्रति अगाह किया था. लेकिन ऐसा लगता है आपने मेल देखा ही नहीं होगा.
प्रयासरत रहें
शुभ-शुभ
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