For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लाल रुमाल(लघुकथा)

लाल रुमाल

 ‘रेल लाइन पर भिनुसार वाली गाड़ी से एक औरत कटी मिली। हाथ में लाल रुमाल था  .... उसपर हरे रंग में लिखा था ... जगदीश।सुबह होते यह खबर सारे गाँव में फैल गई।कौन ? कहाँ की?’ जैसे सवाल हवा में तैरने लगे। रेल लाइन के पास ही गाँव के बड़े ब्रह्म के चबूतरे पर कुछ औरतें इकट्ठा हैं; कुछ बाबा को पूजने आई हैं, कुछ घसियारिनें हैं। चिड़ई भौजी उनसे मुखातिब हैं। एक काक दंपति चबूतरे की बाईं तरफ पास-पास बैठे हुए महिला-मंडली की तरफ टकटकी लगाए हुए है।

चिड़ई भौजी फुसफुसाकर औरतों से बतिया रही हैं, “अरे कौन क्या? रामायण बाबा की पतोहू थी, छबीली।उनका बड़ा बेटा हरिद्वार में दरबानी करता है। एक रात किसी रघुवीर की पतुरिया के संग था। बीच में पति आ गया। वह तो छुप कर भाग निकला, पर छबीली का दिया हुआ उसका रुमाल वहीं छूट गया।यह वही रुमाल था जो छबीली ने अपने हाथों से तैयार कर पिछली मुलाक़ात में पति(जगदीश)को भेंटस्वरूप दिया था। मखमल के हरे रंग के धागों से उसने उसपर कढ़ाई कर लिखा था, जगदीश। रघुवीर की अपढ़ बीवी उस लिखावट को महज कढ़ाई समझ सीने से लगाए रही। चोरी पकड़ी गई। फिर रघुवीर ने बदला लेने की ठान ली। छुट्टी लेकर रामायण बाबा के घर आकर जम गया। रोज रात बाबा से रामायण सुनता। इधर बाबा सोते, उधर वह रास-लीला की जुगत भिड़ाता। बुढ़िया तो शाम होते ही कुछ खाकर पड़ रहती। नींद में ही खाँ-खेँ करती। बलगम थूकती रहती।

बाबा कभी शाम को बाजार भेज दिये जाते। इधर रघुवीर-छबीली के बीच कनखी-मटकी, लुका-छिपी शुरू हो जाती।

एक रात बुढ़िया का दमा ज़ोरों पर था। देखरेख के लिए रघुवीर आँगन के ओसारे में ही सोया। देर रात बूढ़ी सो गई। शिकारी जगा रहा। पायल की छुनछुन ने उसे साहस दिया। वह छबीली के कमरे में दाखिल हो गया।

फिर वह सब हो गया, जो नहीं होना था। यह क्रम कुछ दिनों तक चला। फिर रघुवीर चला गया।

वहाँ रघुवीर की लंबी गैरहाजिरी से जगदीश शंकित हुआ। घर आया। पड़ोस की भौजाई ने नमक-मिर्च मिलाकर सारी कथा उसे सुना दी। आग-बबूला हो उसने बीवी के सामान तलाशे। ढेर सारी चीजों के साथ उसे वह रुमाल भी मिल गया, जो उस रात रघुवीर की बीवी के बिस्तर पर छूट गया था। जगदीश ने बीवी को खूब धिक्कारा। भाई-बाप को लगा-लगाकर गालियाँ दीं। कट-मर जाने तक की बात कह दी।पति का भरोसा खोई औरत बेचारी क्या करती? लोक-निंदा से उबर गई।”

ओह! ओह!! बेचारी!!!व्यथित औरतें इतना ही कह पाईं।

कौवा उड़ चला। मादा कौवा ज़ोर से कांव कांव करती उसके पीछे उड़ी। लगा जैसे वह अपने कौवे से पूछ रही हो, ‘औरत (मादा) की बलि से ही बदला पूरा होता है? कांव कांव......।

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

Views: 434

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on November 1, 2022 at 4:02pm

आभार।

Comment by vijay nikore on November 1, 2022 at 12:07pm

लघु कथा अच्छी बनी है। हार्दिक बधाई।

Comment by Manan Kumar singh on October 22, 2022 at 1:09pm

आपका आभार आदरणीय महेंद्र जी। 

Comment by Mahendra Kumar on October 21, 2022 at 11:19am

आदरणीय मनन जी, अच्छी लघुकथा कही आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।

Comment by Manan Kumar singh on October 19, 2022 at 4:12pm

शुक्रिया आ.समर साहिब।

Comment by Samar kabeer on October 19, 2022 at 11:45am

जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब, अच्छी लघुकथा हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Manan Kumar singh on October 19, 2022 at 6:46am

आभार आदरणीय लक्ष्मण भाई जी।पुरुष की कायराना हरकत का जवाब औरत अपनी हिम्मत से दे सकती है।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 19, 2022 at 3:57am

आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। समसामयिक और उत्तम कथा हुई है। हार्दिक बधाई।

यही सच हैं कि पुरुष की कायराना मानसिकता के चलते आदि से अंत तक औरत की बलि से ही बदला पूरा करने की परम्परा जारी रहेगी। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
2 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
5 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service