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'आम चुनाव और नेता'

आल्हा छंद (16, 15 अंत में गुरु लघु)

लोकतंत्र के महापर्व में, हुए सभी नेता तैयार
शब्द बाण से वार करें वे, छोड़ छाड़ के शिष्टाचार।।
युध्द भूमि सा लगता भारत, जहाँ मचा है हाहाकार
येन केन पाने को सत्ता, अपशब्दों की हो बौछार।।

खून करें वे लोकतंत्र का, जुमले हैं इनके हथियार
हित जनता का भूल गए वे, ऐसा इनका है आचार
हे जन मन तुम जाग उठो अब, व्यर्थ न जाये यह त्योहार
ऐसा कुछ इस बार करो तुम, राजनीति बदले आकार ।।

रंग बराबर बदलें ऐसे, गिरगिट भी ना पाये पार
चाल जरा देखो इनकी अब, हिरनी भी जाये यूँ हार
नाम नहीं बस नेता इनका, इनके आगे सब बेकार
बहुत कमाए काली पूँजी, काला इनका सब व्यापार।।

शब्द कहें जो जनता हित में, नही करो उसपे इतबार
मानवता का करते हत्या, मानव से खाते हैं खार
लालच मन में इतना बैठा, भूले राजनीति का सार
करो भरोसा इन पर ना तुम, ये नैया हैं बिन पतवार।।

वादों की बौछार करें बस, कहें देश को दूँगा तार
एक बार फिर मुझें बना दो, आप सभी मेरी सरकार,
लेकिन द्विज मन नहीं मानता, भरता है अपनी हुंकार
देश बचाने को कहता है, कलम उठाऊंगा हर बार।।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Vivek Pandey Dwij on April 19, 2019 at 7:22am
आ० लक्क्षमण धमी 'मुसाफिर' जी मेरे उत्साह वर्धन हेतु कोटिशः धन्यवाद.
Comment by Vivek Pandey Dwij on April 19, 2019 at 7:18am
आ० समर कबीर जी मेरे उत्साह वर्धन हेतु सहृदय आभार.
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 19, 2019 at 6:34am

आ. विवेक जी, चुनावी माहौल में सुंदर आल्हा छंद हुए है । हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on April 16, 2019 at 2:39pm

जनाब विवेक पाण्डेय जी आदाब,बहुत अच्छे छन्द लिखे आपने,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Vivek Pandey Dwij on April 13, 2019 at 10:27pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह ' कुशक्षत्रप' जी उत्साह वर्धन हेतु साधुवाद।

Comment by नाथ सोनांचली on April 13, 2019 at 9:58pm

आद0 विवेक पांडेय द्विज जी सादर अभिवादन। आल्हा छंद में बढ़िया लिखा है आपने वर्तमान परिदृश्य पर। इस समसामयिक रचना पर आपको कोटिश बधाइयां

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