For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"गर अदब में नाम की दरकार है"

2122 2122 212

गर अदब में नाम की दरकार है।
तो ग़ज़ल कोई नयी दरकार है।।

तू किसी को देख ले ग़मगीन तो।
आँख में तेरी नमी दरकार है।।

प्यार करते हो मुझे तुम भी अगर
इक नज़र चाहत भरी दरकार है।।


एक दूजे पे हमेशा हो यकीं।
दोस्ती में बस यही दरकार है।।

ये अँधेरा दूर होगा एक दिन।
इल्म की बस रौशनी दरकार है।।

बात सच्ची ही कहें हर शेर में।
शाइरी में ये रही दरकार है।।

तुम बढ़ा लो सोच का अब दायरा।
यह बदलते वक्त की दरकार है।।

अपने अंदर झाँकना है गर तुम्हें।
एक गहरी ख़ामुशी दरकार है।।

दर्द-ए-दिल में दे सके सबको सुकूँ।
कर सकूँ वो शाइरी दरकार है।।

अब दिखावा ही सभी करते पसंद।
कब किसी को सादगी दरकार है।।

चाहिए कोई न कोई साथ तो।
हो खुशी या ग़म यही दरकार है।।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 609

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 4, 2018 at 7:24pm

वाह जी वाह बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 4, 2018 at 6:25pm

आ. भाई सुरेंद्र जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by surender insan on October 2, 2018 at 7:31pm

जी बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय अजय तिवारी जी। सादर नमन।

जी टाइपिंग की ग़लतिया सुधार दी है और एक ङो मिसरे बदल दिए है। बहुत बहुत आभार आपका।

Comment by Samar kabeer on October 2, 2018 at 12:35pm

जनाब सुरेन्द्र इंसान जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें,बाक़ी जनाब अजय तिवारी जी बता ही चुके हैं ।

Comment by नाथ सोनांचली on October 2, 2018 at 5:56am

आद0 सुरेन्दर इंसान जी सादर अभिवादन। अच्छे अशआर बन पड़े हैं। कुछेक जगह कुछ बदलाव से और बेहतर हो जाएगी ग़ज़ल, इस बाबत गुणीजनों की इस्लाह को संज्ञान में लेना होगा। बधाई स्वीकार कीजिये 

Comment by Ajay Tiwari on October 1, 2018 at 8:22pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी, अच्छे अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई.

प्रेम सच्चा और हो एतबार भी > प्रेम भी सच्चा हो और हो एतबार 

बात सच्ची ही कहे हर शेर में - कहे >कहें 

दर्द-के-दिल में दे सके सबको सुकूँ > दर्द-ए-दिल में दे सके सबको सुकूँ 

साथ होना चाहिये कोई न कोई > ये मिसरा बह्र में नहीं है > साथ होना चाहिए कोई तो/भी हो 
हो खुशी या ग़म यही दरकार है > एक ग़म या इक ख़ुशी दरकार है 

सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
23 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service