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166
लोहा ईंट और कंक्रीट का 
व्यवस्थित संग्रह , या
बाॅंस और मकोर के तने की कमानी पर
सागौन के पत्तों का विग्रह?
संगमर्मर और मोजेक से चमकते फर्श पर 
सजे फर्नीचर, कालीन व अन्य चीजें,
या
पीली मिट्टी  और गोबर से लिपे
समतल, चैकोर या गोल गोल भूमि तल,
कामकाजी वस्तुओं को  बाहों में लिये
आॅंगन के किनारे लगे आम पर गाती कोयल?
केवल रात काटने के लिये एकत्रित हुये
और
प्रातः ही अपनी अपनी दिशाओं में गतिशील
यात्रियों की तरह भटकने वालों का आश्रय
या,
मनोभावों में लीन, गुमसुम उदासीन
कक्षों में, पेइंग गेस्ट का उपक्रम?
क्या घर यही है?
नहीं,
तो वह क्या है?
"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment by Dr T R Sukul on May 26, 2016 at 11:15pm

बिलकुल सही कहा आदरणीया कान्ता जी,  "घर" अब अपनत्व , ममता और स्नेह के वातावरण को खोकर खोखला हो गया है और उसमें  भौतिकता के वैभव की प्रदर्शनी लगाई जाने लगी  है। 

Comment by kanta roy on May 24, 2016 at 3:49pm
सही मायने में युँ कहे तो आदरणीय त्रैलोक्य रंजन जी ,घर वास्तव में खो गया है । स्नेह के मिट्टी से लिपी हुई आँगन से दालाान ,सब विलुप्त हो गये है ।
अब हमने अपने घर के प्रदर्शन की वस्तु बना लिये है ,अब घर बनाम म्यूजियम हो गये है जहाँ प्रदर्शन होता है धन- धान्य और रूतबे की ।परिवार की स्निग्धता दिखावेे की चरमोत्कर्ष पर है जहाँ बचा है पी ओ पी से डिजाईन किया हुआ ,पोला - पोला सा सब कुछ ।
रंगों के विज्ञान पढ़ लिये ,डिजाईनिंग की हर किताब पढ़ लिये और टाँग लिये मंहगे परदे दरो-दीवार पर लेकिन कभी दीवारों की सिसकियां सुनने के लिए वक्त ना निकाल पाये । दो वक्त की सौंधी रोटी में रिश्तों की गुड़ गाँठ ना सहेज पाये । पोला - पोला सा इंसान ,खोखली - खोखली हर मीनार ,फिर भी भ्रम है कि हम महल बना लिये । सादर ।
Comment by Dr T R Sukul on May 19, 2016 at 11:31pm

आदरणीय पवनकुमार  जी , रचना को पसंद करने के लिए बहुत आभार। 

Comment by Dr T R Sukul on May 19, 2016 at 11:30pm

आदरणीय जॉन  गोरखपुरी जी , रचना को पसंद करने के लिए बहुत आभार। 

Comment by Dr T R Sukul on May 19, 2016 at 11:29pm

आदरणीय समर कबीर साहब , रचना पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा पाकर  प्रसन्नता हुई , विनम्र आभार। 

Comment by Dr T R Sukul on May 19, 2016 at 11:28pm

आदरणीय श्यामनारायण वर्माजी, रचना को पसंद करने के लिए बहुत आभार। 

Comment by Pawan Kumar on May 19, 2016 at 1:09pm

बहुत ही सुन्दर रचना
घर की याद आ गयी
आदरणीय हार्दिक बधाई

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 18, 2016 at 6:21pm
वह्ह्ह्ह् आ. बेहद उम्दा रचना बहुत बहुत बधाई।
Comment by Samar kabeer on May 18, 2016 at 2:30pm
जनाब डॉ.टी.आर.शुक्ल जी आदाब,बहुत सुंदर भाव हैं,रचना ख़ूब हुई है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Shyam Narain Verma on May 18, 2016 at 11:07am
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय

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