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''आग पर आप भी इक दिन चलेंगे''

२१२      २१२२         २१२२

आग पर आप भी इक दिन चलेंगे

मेरे अहसास जब तुम में उगेंगे

.

 

फूल सा तन महकने ये लगेगा

याद में रातदिन जब दिल जलेंगें

.

 

चाँद सा  रूप निखरेगा सुनहरा

इश्क की धूप में गर जो तपेंगें

.

आइना बातें भी करने लगेगा

यूँ घड़ी दो घड़ी पे गर सजेंगे

.

 

रातभर रतजगे आँखें करेंगी

सुबहों-शाम आप भी रस्ता तकेंगे

.

*****************************************

मौलिक व् अप्रकाशित (c) 'जान' गोरखपुरी

*****************************************

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Comment

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Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on August 1, 2015 at 9:15pm

मेरी बात को मान देने के लिए शुक्रिया आ० भाई मनोज ज़ी!

Comment by मनोज अहसास on August 1, 2015 at 9:03pm
बहुत आभार
मै समझ गया भाई
सादर
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on August 1, 2015 at 8:38pm

आ० भाई मनोज जी,आपने बहर निभाने के लिए भावपक्ष से समझौते की बात किन आधार पर कही है मुझे समझ नही आया...मै यह निश्चित तौर पर कह सकता हूँ की भले बहर में कई बार तबदीली करूं,पर रचना/शेर के भाव से मुझे समझौता करना कत्तई पसंद नही है!अगर बहर में मैं भाव नही रख पाऊं तो मैं मुक्त रचना करना अधिक श्रेयस्कर समझता हूँ!  

प्रस्तुत गज़ल में मतला देखिये............

आग पर आप भी इक दिन चलेंगे

मेरे अहसास जब तुम में उगेंगे..............................यह सहज जैसे हुआ वैसा ही लिखा है! 

बहर को मैं  शब्द बढ़ाकर   २१२२ /२१२२/ २१२२ भी कर सकता था! पर नही किया क्युकी भाव प्रभावित होता!

इसी सन्दर्भ में ये बात कहना चाहूँगा कि कुछ समय पूर्व मैंने मंच पर एक गज़ल ''मरासिम'' रक्खी थी! उस पर आ० जनों ने कई त्रुटिया की ओर मेरा ध्यान दिलाया! जिनपर सुधार करना मैंने निश्चय किया...पर सुधार करने के क्रम में भाव परिवर्तन के कारन मै अभी तक उसे सुधारकार्य पूर्ण नही कर पाया हूँ! चाहता तो अन्य भाव के साथ मै दुसरे शेर कहकर गज़ल की त्रुटियाँ दूर कर लेता!

सादर!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on August 1, 2015 at 8:18pm

सादर आभार आ० मिथिलेश सर!

Comment by मनोज अहसास on August 1, 2015 at 5:26pm
बहुत खूब सर
ऐसा लगता है
बहर निभाने में भाव कुछ छूट गए है
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 1, 2015 at 3:54pm

आदरणीय कृष्ण भाई जी बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

आइना बातें भी करने लगेगा

यूँ घड़ी दो घड़ी पे गर सजेंगे

कृपया ध्यान दे...

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