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"कितने शर्म की बात है, हमारे आका लोग दुनिया भर से अरबों खरबों भेज चुके हैं, मगर तुम लोग फिर भी आज तक हिन्दुस्तान के टुकड़े नही कर पाए।"
"हमने हरचन्द कोशिश की, मगर ....."
"मगर क्या ?"
"ये लोग टूटते ही नहीI"
"क्यों नही टूटेंगे ? तुम इनको धर्म के नाम पर क्यों नही तोड़ते?"
"हम कश्मीर और पंजाब समेत कई जगहों पर ये कोशिश पहले ही कर चुके हैं सर।"
"कोशिश कर चुके हो तो कामयाब क्यों नही हुए अब तक?"
"क्योंकि इस देश की बुनियाद नफ़रत पर नही प्रेम पर रखी गई है सर।"

.

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 17, 2017 at 10:21pm

कितनी सहेजता से आपने अपनी कथा के माध्यम से यह कह दिया है की भारत की नीव प्रेम पर रखी हुई है | एक बेहतरीन कथा आदरणीय सर | साधुवाद |

Comment by kanta roy on May 24, 2015 at 9:51pm
यह सच है कि साजिशे तो बहुत हुई देश को तोडने की लेकिन हमारी बुनियाद बहुत मजबूत है अभी भी । ऐसे तो आपस में कितना ही लड ले लेकिन जैसे ही बात सीमा पार की होती है तो जैसे हर हिन्दुस्तानी देश पर मिटने को आमादा हो उठता है । कथा मे देशप्रेम का भाव मन को सराबोर कर गया । हमेशा की तरह लाजवाब पूज्यनीय योगराज प्रभाकर सर जी । नमन
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 8, 2015 at 2:18pm

कमाल ----कमाल----

कुछ बात है की हस्ती मिटनी नहीं हमारी

सदियों रहा है दुश्मन दौरे जमाँ हमारा i


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Comment by Saurabh Pandey on May 7, 2015 at 2:13pm

तोड़ना तो हुआ ही है, आदरणीय. लेकिन यह कितनी बनावटी टूट है इसका भी रह-रह कर भान होता है. वस्तुतः भारतदेश कोई राजनैतिक इकाई है ही नहीं. यह तो एक आध्यात्मिक इकाई है, इसी तथ्य को इस लघुकथा की पंच-लाइन स्वर देती है -  इस देश की बुनियाद नफ़रत पर नही प्रेम पर रखी गई है

आध्यात्म का मूल स्वर सबके उन्नयन तथा स्वस्थ सुख की बात करता है. इसी स्वर को गूँगा करने की कवायद में लगे हैं वो लोग जो भारत की अवधारणा को समझते ही नहीं. किसी बहके चश्में से भले सब तरफ लाल-हरा दिखे लेकिन इस भूमि की दशा सर्वसमाही प्रेम ही है.

इस उद्येश्यपूर्ण लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय.

सादर


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Comment by गिरिराज भंडारी on May 7, 2015 at 9:48am

आदरणीय योगराज भाई , बहुत सही बात कही लघुकथा के माध्यम से , अगर बुनियाद मुहब्बत है तो फिर तोड़ना असंभव  है ॥ आपको हार्दिक बधाई लघुकथा के लिये ।

Comment by jyotsna Kapil on May 6, 2015 at 6:02pm
आ.योगराज सर आपकी इस लाजवाब कथा ने बहुत कुछ समझा दिया की लघुकथा का कथा शिल्प क्या होता है।यह सर्व विदित सत्य है की हमारे देश की बुनियाद आपसी विश्वास की मजबूत नींव पर राखी है।
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 6, 2015 at 5:46pm
वाह ! बहुत सुन्दर , बुनियाद तो वाकई में इस देश की सामाजिक प्रेम पर रखी हुयी है, इस लघु-कथा में प्रस्तुति बहुत ही प्रभावी ढंग से हुयी है।
बहुत बहुत बधाई, आदरणीय योगराज प्रभाकर जी। सादर।

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Comment by मिथिलेश वामनकर on May 6, 2015 at 5:21pm

आदरणीय योगराज सर, इस बेहतरीन लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई निवेदित है.

पंचलाइन हमारी संस्कृति और संस्कारों का भीनी भीनी खुशबू छोडती हुई, गहरे तक प्रभावित करती है.

हार्दिक आभार इस प्रस्तुति हेतु.

नमन 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2015 at 1:44pm

बहुत खूब सर....परिंदे सवाल करते हैं कि दरख़्त ने हमारे लिए किया ही क्या है 

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on May 6, 2015 at 1:33pm

आदरणीय योगराज सर सुन्दर लघु कथा !  सच कहा आपने वास्तव में हमारे देश की बुनियाद नफरत नहीं प्रेम पर रखी गयी है,!

यही कथा की अंतिम लाइन है और पाठक पर लाजवाब असर छोड़ कर जाती है ..... दिल से सादर बधाई स्वीकार करे

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