For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वह लड़की!
मैं उसे बदलना चाहती थी
उसे पुराने खोह से निकालकर
पहनाना चाहती थी एक नया आवरण.
उसके बाल लम्बे होते थे
अरण्डी के तेल से चुपड़ी
भारी गंध से बोझिल
वह ढीली-ढाली सलवार पहनती थी
वह उस में नाड़ा लगाती थी
उसके नाखून होते थे मेँहदी से काले
एकाध बार सफ़ेद किनारा भी दिख जाता.
वह चलती थी सर झुकाये.
वह चुप रहती
मगर....उसके मन में सागर की लहरों
का सा होता घोर गर्जन.
आँखों में हरदम एक तूफ़ान लरजता
उसकी सहेलियों की शादी हो गयी थी.
वह अपनी शादी की तैयारी में
नयी नयी चादरें काढ़ती
उसकी हस्तकला भी थी बड़ी अद्भुत.
वह गाँव के सबसे सुंदर और होनहार
लड़के को लक्ष्य साधती
उसी का सपना देखती दिन रात.
वह अपने कुर्ते की जेब में रखती
तीन मोबाइल रूमाल में लपेटे
तीन अलग अलग सिमकार्ड
मोबाइल हमेशा बंद ही रहते.
उसे डर था
कहीं कोई उसे ब्लैकमेल न कर दे.
वह अपने बलात्कार का सपना देखती
कितनी वहमी थी वह.
वह हर किसी की शादी में जाती
मन में एक आशा बनी रहती..कि-
कोई लड़का पट जाय.....लेकिन
किसीने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया.
वह तीस साल की हो गयी,
मेरे पास आयी, बड़े गुस्से में थी. बोली-
“आपने सब लड़कियों की शादी करायी
मुझे कुँवारी छोड़ दिया.......
कैसी ज्योतिषी हैं?
मेरी शादी कब होगी?.......’’
मैं मुस्कायी, नख से शिख तक देखा उसे
“मोतरमा! माना ज्योतिष में लिखा है बहुत कुछ
अच्छा वर पाने के लिये, अच्छा भी दिखना चाहिये
अपनी नहीं तो दूसरों की नज़रों में जँचना चाहिये.
मैं एक परम्परावादी पर्दानशीं लड़की हूँ
मेरा मज़हब मुझे नहीं सिखलाता खुलापन”.
“खुलापन नहीं विचारों की विशालता
देशकाल की हवा पहचानो
चंदन की महक से जुल्फ़ों को लहराने दो
एक मोबाइल ही सही मगर रखो चालू
देश-दुनिया की खबर पढ़ो
नेट के जरिये पहचान बढ़ाओ....”
“तौबा! तौबा!!.....मतिभ्रष्ट किया मेरा”.
वह चली गयी सर झुकाये...मुझे कोसती.
वर पाने की लालसा में जादू-टोना करती रही.
कुछ साल बाद मुझे पता चला
वह मर गयी.......कुँवारी.
मैंने फ़ेसबुक पर कर दी उसकी श्रद्धांजलि.
कुछ दिन बाद मेरा मन न माना
मैं गयी उसकी कब्र पर
एक फूल रखकर कहा-
“काश! तुम मेरी बात मान जाती
ज़माने के संग दो कदम मिला लेती
यूँ न अधूरी कुँवारी मर जाती
हमसफ़र होता तेरा भी कोई....”
हवा अरण्डी के तेल की गंध से बोझिल थी.
..................कुंती मुकर्जी.
(मौलिक व अप्रकाशित रचना)

Views: 672

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by coontee mukerji on July 26, 2014 at 1:16pm

जिन विद्वजनों ने मेरी इस रचना की आत्मा को पहचाना ......आप सब को मैं हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ.....हाँ इस रचना को तराशने की ज़रूरत तो है......यह रचना का एक एक शब्द सच्चाई की ईंट से गढ़ी हुई है.....प्राची जी और राजेश कुमारी जी ने बहुत करीब से इस रचना की  वेदना को महसूस किया है....हमारे आस पास जाने कितनी ऐसी घटनाएँ घट जाती है हमको पता ही नहीं चलता.....जब तक हम लोगों के बीच उतरकर उनकी समस्याओं को नहीं देखेंगे....हम एसी रूम में बैठकर सिर्फ़ आलोचना ही करते रह जायेंगे.....यह रचना मेरी डायरी का एक अंश है....आप सभी को एक बार पुनः आभार प्रकट करती हूँ....सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 24, 2014 at 6:50pm

एक ऐसी रचना जो पढ़ना प्रारम्भ करने के बाद जिज्ञासा बढती जाती है और पूरी पढने के मन करता है | एक लड़की के 

चरित्र का सजीव वर्णन करने में सफल रचना के लिए बधाई आद कुंती मुकर्जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 24, 2014 at 3:02pm

आदरणीय कुंती जी , प्राचींता मे नवीनता की छौंक भी सीमित मात्रा मे ज़रूरी है , पर अधिक न हो !! सुन्दर रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 24, 2014 at 10:37am

किसी भी चीज पर कविता लिख देना आसान नहीं होता किन्तु कुछ वाकये कुछ चरित्र जीवन में ऐसे आते हैं की खुद ब खुद कलम चल पड़ती है ये चरित्र इसी बात का उदाहरण है जिस तरीके से आपने उस लड़की के हाव भाव को दर्शाया है वो देखते ही बनता है लगता है चरित्र की आत्मा तक में डूब कर लिखी गई रचना है बहुत भाव पूर्ण है|दिल से बधाई लीजिये आ० कुंती जी | 

Comment by aman kumar on July 24, 2014 at 10:28am

कुंती जी , रचना का मर्म .............दिल तक गया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on July 24, 2014 at 3:06am
//लेकिन इस वाकिये को कविता में ढलने के लिए थोड़ा और अवश्य ही पगाना था...मुझे ऐसा महसूस हुआ//
//...इस कविता को काव्य तत्त्व से तनिक और अनुप्राणित करना था.//
आदरणीया प्राची जी और आदरणीय सौरभ जी की इन प्रतिक्रियाओं पर आपने अवश्य ध्यान दिया होगा कुंती जी. आपके अनुभव, आपकी संवेदनशीलता और आप में जो संभावनाएँ छुपी हैं उनसे मैं व्यक्तिगत रूप से अभिज्ञ हूँ. यदि इन दो प्रबुद्ध रचनाकारों की प्रतिक्रिया को गम्भीरता से लेंगी तो आपकी रचनाओं को विशेष आयाम मिलेगा जो नि:संदेह और मुग्धकारी होगा. शुभकामनाओं के साथ सदा आपके साथ हूँ.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 23, 2014 at 11:56pm

मनोविज्ञानी बिम्ब काव्य तत्व की सीमा में व्यक्तित्व के कई बन्द पड़े तह उघारते हैं. आपकी इस रचना को सामाजिक और व्यावहारिक रूप मिला अवश्य है आदरणीया कुन्ती जी, लेकिन इसकी तह मनोविज्ञानी सोच के इर्द-गिर्द व्यवहार पाती है. उस हिसाब से एक अच्छी रचना हुई है.

यह अवश्य है कि शिल्प के लिहाज से इस कविता को काव्य तत्त्व से तनिक और अनुप्राणित करना था.

प्रस्तुति हेतु आभार और हार्दिक शुभकामनाएँ.

Comment by Santlal Karun on July 23, 2014 at 4:13pm

आदरणीया मुखर्जी जी,

व्यावहारिक जीवन की प्रभावपूर्ण रचना, पठनीय; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 23, 2014 at 2:32pm

आदरणीया कुंती जी 

आपकी संवेदनशीलता समाज के विभिन्न वर्गों की नारियों के जीवन को बहुत करीब से प्रस्तुत करती है... यह प्रस्तुति भी इतर नहीं..इस हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है.

लेकिन इस वाकिये को कविता में ढलने के लिए थोड़ा और अवश्य ही पगाना था...मुझे ऐसा महसूस हुआ.

शुभकामनाएं 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 23, 2014 at 11:54am

आदरणीय कुंती जी

वाह भी ----- और आह भी -----

कारुणिक अंत ने हिला दिया  i समय के साथ चलना भी जरूरी है i

कविता में कथा का भी आनंद  i बेहतरीन i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service