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खोटा सिक्का

चले थे खुद को भुनवाने

दुनिया के इस बाजार में.

पर खोटा सिक्का मान

ठुकरा दिया ज़माने ने

सोचा ! मुझमें ही कमी थी

या, फिर वक्त का साथ न था

समझ न पाये ,और चुप रह गए

पर चैन न आया

और चल पडे दुनिया को

जानने और पहचानने

देखा ! तो जाना ,

दुनिया कितनी अजीब है

झूठ,मक्कारी और खुदगर्ज़ी

के पलड़े में हर रोज

इंसान तुल रहा 

पलड़ा जितना भारी

इंसान उतना ही ऊँचा

मेरे पास तुलने को

कुछ न था

इसलिए नकारा गया

खोटा सिक्का जान

ठुकराया गया ।

खोटा ही सही

पर खुश हूँ

दुनिया के इस झूठ

और मक्कार भरे

बाजार में

मुझे नहीं बिकना

***********

महेश्वरी कनेरी...मौलिक/अप्रकाशित

Views: 518

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 23, 2014 at 12:05pm

झूठ,मक्कारी और खुदगर्ज़ी

के पलड़े में हर रोज

इंसान तुल रहा 

पलड़ा जितना भारी

इंसान उतना ही ऊँचा

मेरे पास तुलने को

कुछ न था

इसलिए नकारा गया............

बहुत गहरी बात करती आपकी अभिव्यक्ति सचमुच बहुत पसंद आयी 

हार्दिक बधाई आ० माहेश्वरी कनेरी जी 

Comment by कल्पना रामानी on January 20, 2014 at 6:39pm

अच्छी भाव पूर्ण रचना है। बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 20, 2014 at 2:39pm

आदरणीया महेश्वरी जी अच्छी प्रस्तुतीकरण है किन्तु मेरे भीतर का पाठक संतुष्ट नहीं हुआ, खोटा सिक्का चल जाता तो जरुर मैं संतुष्ट होता. अब समय परिवर्तन चाहता है यदि मौन रहे तो न वर्तमान रहेगा और न ही भविष्य. इस सुन्दर प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by Maheshwari Kaneri on January 18, 2014 at 8:47pm
आआदररनीय सौरभ जी ..आप के अमूल्य सुझाव के लिए.. मैंने सही कर लिया है..पुन: धन्यवाद...

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 17, 2014 at 11:44pm

मैं-कारक शैली की इस रचना के लिए धन्यवाद और शुभकामनाएँ. 

सतत अभ्यासरत रहें.

एक बात और, नाकारा और नक्कारा में अंतर होता है, आदरणीया.

सादर

Comment by Meena Pathak on January 17, 2014 at 7:58pm

हम जैसे हैं अच्छे हैं .... बहुत सुन्दर रचना , बधाई आप को | सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 17, 2014 at 7:34pm

आदरणीया महेश्वरी जी बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति है बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिये

Comment by Shyam Narain Verma on January 17, 2014 at 3:45pm
आपकी इस सुंदर प्रस्तुति पर सादर बधाई ....
Comment by coontee mukerji on January 17, 2014 at 3:12pm

अच्छी प्रस्तुतिकरण है....हर तरफ़ चाहे दुनिया के किसी कोने में इंसान जाएं....सर्वत्र ही गुण की पूजा होती है.....खोटे सिक्के का कोई मोल नहीं..सादर.

कृपया ध्यान दे...

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