For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शाम को नजरें मिली यूँ, क्या कहें
आस की उपजी कली यूँ, क्या कहें

बात आँखों से चली यूँ, क्या कहें
खिल उठी मन की गली यूँ, क्या कहें

रूह से गोरी-सलोनी सी लगी
देह से वो साँवली यूँ, क्या कहें

धूप उस पर जुल्म करना छोड़ दे
जो है मक्खन की डली यूँ, क्या कहें

मिल भी जाते गर कदम तकदीर में
पर हमारी कुण्डली यूँ, क्या कहें

वो रियासत की हैं शहजादी 'सलिल'
और तुम दैनिक कुली यूँ, क्या कहें

-- आशीष 'सलिल'/हैदराबाद (14/3/13)

Views: 721

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on March 16, 2013 at 11:39pm

Saurabh Pandey  सर, हौसलाअफजाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया ।
सिनाद दोष से गज़ल को मुक्त करने की कोशिश कर रहा हूँ । गज़ल के शेर और अच्छे हों, इसकी भी कोशिश जारी है ।
आपके आशीष का सदैव आकांक्षी रहूँगा । :)

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on March 16, 2013 at 11:24pm

गजल पसंदगी के लिए तहे दिल से शुक्रिया  Yogi Saraswat भाई जी |

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on March 16, 2013 at 11:23pm

वीनस केसरी  भाई जी आपके इंगित करने के बाद गजल में सिनाद दोष पर नजर गयी । असल में पहले मतला का काफिया कुछ और लिया था, लेकिन फिर बदल दिया । खैर, मैं मतला और मक्ता के काफियों को दुरुस्त कर दूँगा।

आपकी हर टिप्पणी और सुझाव मेरी गजल की सीख को और मजबूत करते हैं ।
आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।   :)

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on March 16, 2013 at 11:17pm

डॉ. सूर्या बाली "सूरज" जी तहेदिल से शुक्रिया !!!  आप जैसे उम्दा गजलगो से दाद पाकर धन्य हो गया । :)

Dr.Prachi Singh  जी बहुत-बहुत शुक्रिया !!! :)

Savitri Rathore जी शुक्रिया !!!  :)

बृजेश कुमार सिंह (बृजेश नीरज) भाई जी आपको अशआर पसंद आये, गजल कहना सार्थक हुआ । शुक्रिया | :)

SANDEEP KUMAR PATEL  भाई जी आपकी दाद कुबूल है ! कुबूल है !! कुबूल है !!! :)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 9:36pm

भाई आशीष सलिल जी,   बहुत-बहुत खूबसूरत और मुलायम ग़ज़ल हुई है. और भी मुलायम हो सकती थी, भाई.

ढेरों दाद कुबूल करें.

एकबात :  आपने काफ़िया चुनने में सिनाद दोष मोल ले लिया है, हुज़ूर.

Comment by Yogi Saraswat on March 16, 2013 at 11:31am
धूप उस पर जुल्म करना छोड़ दे
जो है मक्खन की डली यूँ, क्या कहें

मिल भी जाते गर कदम तकदीर में
पर हमारी कुण्डली यूँ, क्या कहें

बहुत सुन्दर अश आर

Comment by वीनस केसरी on March 15, 2013 at 11:49pm

बहुत शानदार ग़ज़ल कही है, ढेरों ढेर दाद क़ुबूल करें

सिनाद ऐब के प्रति सचेत होने की जरूरत है

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 15, 2013 at 9:57pm

बहुत सुन्दर क्या बात है साहब

बेहतरीन मीठी सी ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद क़ुबूल कीजिये

Comment by बृजेश नीरज on March 15, 2013 at 7:40pm
//मिल भी जाते गर कदम तकदीर में
पर हमारी कुण्डली यूँ, क्या कहें//

वाह क्या बात! बहुत बेहतरीन! हर शेर लाजवाब!

Comment by Savitri Rathore on March 15, 2013 at 5:00pm

आशीष 'सलिल' जी, सुन्दर भावों से युक्त सुन्दर रचना हेतु आपको बधाई हो।

शाम को नजरें मिली यूँ, क्या कहें
आस की उपजी कली यूँ, क्या कहें

बात आँखों से चली यूँ, क्या कहें
खिल उठी मन की गली यूँ, क्या कहें

अतिसुन्दर .........

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service