For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम कंचन हो,

मै कालिख हूँ!

तुम पारस, मै

कंकड़ इक हूँ!

 

तुम सरिता हो,

मै कूप रहा!

तुम रूपा, इत

ना रूप रहा!

जो मानव नहीं है उसको, देव की पांत है असंभव!

है तुलना न अपनी कोई, मिलन की बात है असंभव!

 तुम ज्वाला हो,

मै चिंगारी!

मै टिमटिम, तुम

आभाकारी!

 

तुम चंदा हो,

मै हूँ जुगनू!

तुम तेजपुंज,

मै भुकभुक हूँ!

बना हूँ धूप के लिए मै, छांव की रात है असंभव!

है तुलना न अपनी कोई, मिलन की बात है असंभव!

तुम जो भी हो,

मै जो भी हूँ!

कुछ और कहो,

तो वो भी हूँ!

 

तुम सबकुछ हो,

मै कुछ भी नहीं!

पर दिल की है,

ये बात सही!

ये दिल चाहता है तुमको, जानता साथ है असंभव! 

है तुलना न अपनी कोई, मिलन की बात है असंभव!

है प्यार तुम्हे

करता ये दिल!

पर कहने में,

डरता ये दिल!

 

क्या पता कि तुम

अपनाओगी!     

या सदा लिए

ठुकराओगी!

अपने मिलन की खातिर ये, बने हालात हैं असंभव!

है तुलना न अपनी कोई, मिलन की बात है असंभव!

तुम दिल में हो,

ये बहुत मिला!

ना गम मुझको,

खुश हूँ न गिला!

 

बस देख तुम्हे,

मै रह लूँगा!

दूरी ताउम्र,

मै सह लूँगा!

पर भूल जाऊं तुमको, ये भी तो नहीं है संभव!

है तुलना न अपनी कोई, मिलन की बात है असंभव!

                                   -  पियुष द्विवेदी ‘भारत’

Views: 1574

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on October 13, 2012 at 8:35am

समंदर पीर का अंदर हैलेकिन रो नही सकता!

ये आंसू प्यार का मोती है इसको खो नही सकता!

मेरी चाहत को अपना तू बना लेना मगर सुन ले,

जो मेरा हो नही पाया वो तेरा हो नही सकता

आदरणीय वीनस भाई जी, आपके द्वारा शब्दों को चिन्हित करने का अभिप्राय नही समझ पाया हूँ !

Comment by वीनस केसरी on October 4, 2012 at 11:41pm

भाई पियुष जी
यह मेरा सौभाग्य है कि गीत के सन्दर्भ में इतनी बारीकियों से अवगत हुआ हूँ
इसके लिए सभी चर्चाकारों को धन्यवाद

कुमार विश्वास साहिब के तथाकथित मुक्तक (?) ने नई पीढ़ी का जितना भला किया है सच कहूँ तो उसके आसपास ही नुक्सान भी किया है
नुक्सान यह कि मुक्तक के नाम पर आपने लगभग हमेशा कतअ पढ़ा और मात्रिक संयोजन तथा छन्द की ऐसी खिचड़ी पेश की जिससे आज नई पीढ़ी छंद के दूषण का दंश झेलने को मजबूर है
प्रस्तुत तथाकथित मुक्तक को कुमार साहिब ने किसी हिन्दी/संस्कृत छंद अनुसार लिखा है अथवा उर्दू बहर के अनुसार यह बताने की आवशयकता प्रतीत नहीं होती फिर ही संकेत प्रस्तुत है -
साथ ही यह भी कि मात्रिक तुकांतता उर्दू में प्रचिलित है हिन्दी में इसका प्रयोग न के बराबर देखा गया है

समंदर पीर का अंदर है लेकिन रो नही सकता!

ये आंसू प्यार का मोती है इसको खो नही सकता!

मेरी चाहत को अपना तू बना लेना मगर सुन ले,

जो मेरा हो नही पाया वो तेरा हो नही सकता

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 13, 2012 at 11:43am

भाई संदीप जी, बहुत ही खूबसूरत गीत... एकदम नए प्रतीक. बधाई...पर उदाहरण का सन्दर्भ नही समझ पा रहे हैं!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 12, 2012 at 3:43pm

भाई पियूष जी सादर
उदाहरण के लिए मैंने अभी अभी ये गीत लिखा है आप कुछ गौर फरमाइए

सूरज पश्चिम से उगे न न पूर्व में होगा ढलना 
इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना

तुम फेसबुक की टाइम लाइन
मैं ऑरकुट बहुत पुराना हूँ
तुम काजू किशमिश के जैसे
मैं तो बस चना का दाना हूँ
तुम अमरीका के डालर सी
मैं भारत का इक आना हूँ
तुम बहर वजन ले मस्त ग़ज़ल
मैं एक बेतुका गाना हूँ

मैं नागफनी की डाली हूँ मुश्किल है फूलों का खिलना
इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना

तुम शुष्मा के जैसी वाचाल
मैं गुमसुम सा मनमोहन हूँ
तुम हो हीरे की चमक लिए
मैं बस कोयले का दोहन हूँ
तुम महंगी काजू कतली सी
मैं मुफ्त पापड़ी सोहन हूँ
तुम मंझी हुई तेंदुलकर हो
मैं नया नवेला रोहन हूँ

तुम होलिवुड की नयी फिल्म मैं हिंदी का नाटक अदना
इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना

लगातार @ संदीप पटेल "दीप"

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 12, 2012 at 3:23pm

धन्यवाद सौरभ जी,

बहुत कुछ जानने, सीखने और समझने को मिला, पर अब इस वाद-विवाद को समाप्त करना ही उचित है! अतः सबको एक बार पुनः धन्यवाद के साथ ही बहस को विराम!

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 12, 2012 at 3:20pm

राजेश कुमारी जी,

मै समझ सकता हूं...बेशक इस रचना का सौभाग्य है! नाम में भ्रम हो गया था! अब सुधार लिए हैं!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 12, 2012 at 3:15pm

प्रिय पियूष जी मैं राजेश कुमारी हूँ मेरे नाम से धोखा खा जाते हैं अक्सर लोग तुम्हारी भी गलती नहीं 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 12, 2012 at 3:14pm

भाई पियूषजी, मंच की कोई परिपाटी अचानक या अन्यथा ही नहीं बन गयी है. आप यथोचित प्रतिष्ठा और आदर परक भाव-शब्द के साथ किन्हीं सदस्य को यहाँ सम्बधित किया करें.  इस परिपाटी के कारण और सन्निहित लाभ हैं आपको सतत संलग्नता के साथ-साथ समझ में आने लगेंगे. 

सर्वोपरि किसी माहौल में जाकर अपनी कहने लगना या उचित-अनुचित का आँकलन करने लग जाना कहीं भी किसी तरह से स्वीकार्य नहीं हुआ करता.  विश्वास है, मैं स्पष्ट कर पाया.

सधन्यवाद

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 12, 2012 at 3:07pm

सौरभ जी,

नाम को कॉपी-पेस्ट किसीका अपमान हुवा हो, तो क्षमा चाहते हुवे कहूँगा कि अगर आप सब की सहमति हो, तो ये गलत नही, वरन सुविधाजनक है! धन्यवाद!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 12, 2012 at 3:02pm

प्रिय पियूष जी आपकी कविता पर दिग्गजों की  इतनी लम्बी चौड़ी प्रतिक्रिया चल गई आप ये समझे की आपकी रचना विशेष और भाग्यशाली है आपसे उम्मीदें ज्यादा बढ़ गई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
2 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
5 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service