For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कंगूरों तक चढूंगा

सुनो राजन !

तुम्हे राजा बनाया है हमीं ने !

और अब हम ही खड़े है

हाथ बांधे

सर झुकाए

सामने अट्टालिकाओं के तुम्हारे !

जिस अटारी पर खड़े हो

सभ्यता की ,

तुम कथित आदर्श बनकर ,

जिन कंगूरों पर

तुम्हारे नाम का झंडा गड़ा है ,

उस महल की नींव देखो !

क्षत-विक्षत लाशें पड़ी है

हम निरीहों के अधूरे ख्वाहिशों की ,

और दीवारें बनी है

ईंट से हैवानियत की !

 

है तेरे संबोधनों में दब चुकी

चीत्कार सब कुचले हुओं की !

अट्टाहासों से तुम्हारे हार माने

सिसकियाँ ,

आहें सभी हारे हुओं की !

 

है भरे भंडार तेरी वासना के

भूख हम सब की तुम्हें दिखती नहीं है !

 

सिसकियाँ तुम सुन न पाए

अब मेरी हुंकार देखो ,

आँख से झरता हुआ अंगार देखो !

मैं उठा तो फिर कहाँ रोके रुकुंगा !

एक दिन मैं नींव का पत्थर

कंगूरों तक चढूंगा !!

 

 

 

........................................ अरुन श्री !

Views: 438

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Arun Sri on March 2, 2012 at 8:23pm

उत्साहवर्धन के लिए आप सभी का ह्रदय से आभार ! धन्यवाद !

Comment by asha pandey ojha on February 25, 2012 at 11:09pm

है तेरे संबोधनों में दब चुकी

चीत्कार सब कुचले हुओं की !

अट्टाहासों से तुम्हारे हार माने

सिसकियाँ ,

आहें सभी हारे हुओं की !

  bahut umda rachna 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 25, 2012 at 4:54pm

//अब मेरी हुंकार देखो ,

आँख से झरता हुआ अंगार देखो !

मैं उठा तो फिर कहाँ रोके रुकुंगा !

एक दिन मैं नींव का पत्थर

कंगूरों तक चढूंगा//

अच्छी रचना, अरुण जी, बधाई हो |

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 25, 2012 at 3:47pm
समसामयिक और बहुत ही दमदार रचना है श्रीमान्!आपके हुंकार और जज्बे को सलाम करता हूं।आज भारत में इसी हुंकार की जरूरत है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 25, 2012 at 3:33pm

aaj ke nav yuavakon ko isi jajbe ki jaroorat hai.bahut prernadayak prastuti.

Comment by satish mapatpuri on February 25, 2012 at 2:42pm

सिसकियाँ तुम सुन न पाए

अब मेरी हुंकार देखो ,

आँख से झरता हुआ अंगार देखो !

मैं उठा तो फिर कहाँ रोके रुकुंगा !

एक दिन मैं नींव का पत्थर

कंगूरों तक चढूंगा !!

यही वो जज़्बा है , जिसने बड़े -बड़े परिवर्तन किये ............ सामयिक रचना ...... दाद कुबूल करें अरुण जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service