For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्त्री और प्रकृति

स्त्री और प्रकृति

प्रकृति और स्त्री

कितना साम्य ?

दोनों में ही जीवन का प्रस्फुटन

दोनों ही जननी

नैसर्गिक वात्सल्यता का स्पंदन,

अन्तःस्तल की गहराइयों तक,

दोनों को रखता एक धरातल पर

दोनों ही करूणा की प्रतिमूर्ति

बिरले ही समझ पाते जिस भाषा को

दोनों ही सहनशीलता की पराकाष्ठा दिखातीं

प्रेम लुटातीं उन पर भी,

जो दे जाते आँसू इन्हें,

आहत कर जाते,

छलनी बना देते इनके मन को,

कुचल जाते, रौंद जाते इनके तन बदन को,

दुनियाँ की स्वार्थलिप्सा का शिकार

बनतीं बार-बार

लेकिन माफ़ कर जातीं हर बार

गफ़लत में जी रही दुनियाँ,

ये नहीं समझ पा रही

जब जागेंगीं,

दोनों, जननी और जन्मभूमि,

स्त्री और प्रकृति

दिखा देंगीं अपना रूप,

महिषासुर मर्दिनी का

करेंगी संहार असुरता का, क्रूरता का

करा देंगी साक्षात्कार

पीड़ा के उस दंश का, जो

मिलता रहा आजीवन इन्हें

अपनों से ही ।

  • मोहिनी चोरडिया

Views: 693

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by satish mapatpuri on January 16, 2012 at 1:47am

मोहिनी जी, इस सशक्त रचना के लिए आपकी लेखनी और सोच को सलाम ......................... इसमें कोई संदेह नहीं कि नारी और धरती सब कुछ सह सकती है.

Comment by mohinichordia on January 15, 2012 at 8:50pm

    r आभार आप सभी का 

Comment by dr a kirtivardhan on January 15, 2012 at 8:07am

vah-vah,kya baat hai.janani aur janmbhumi ka satik chitran.

kaash aaj ki adhunikaayen bhi is rachna ki gambhirata ko samajh len jinke liye paisa tatha sharir hi sab kuchh hai.

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 14, 2012 at 11:50pm

दोनों, जननी और जन्मभूमि,

स्त्री और प्रकृति

दिखा देंगीं अपना रूप,

महिषासुर मर्दिनी का

करेंगी संहार असुरता का, क्रूरता का

करा देंगी साक्षात्कार

पीड़ा के उस दंश का, जो

मिलता रहा आजीवन इन्हें

अपनों से ही ।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,बेजोड़ संदेश,,,,,,,,,,,,वाह क्या बात है,,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 14, 2012 at 11:49pm

वाह,,,,,,,,,,क्या खूबसूरत रचना,,,,,,मर्म को सृजन को सहनशीलता को नारी के हर पक्ष को उभारती यह कृति ,,,,,बधाई आपको,,,,,,,,,,,,,,,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2012 at 10:11pm

दोनों में ही जीवन का प्रस्फुटन
दोनों ही जननी
नैसर्गिक वात्सल्यता का स्पंदन,
अन्तःस्तल की गहराइयों तक,
दोनों को रखता एक धरातल पर
दोनों ही करूणा की प्रतिमूर्ति
दोनों में ही जीवन का प्रस्फुटन
दोनों ही जननी
नैसर्गिक वात्सल्यता का स्पंदन,
अन्तःस्तल की गहराइयों तक,
दोनों को रखता एक धरातल पर
दोनों ही करूणा की प्रतिमूर्ति ... 

बहुत ही सुन्दर !! शाब्दिकता पर ध्यान रहे. संवेदनापूरित रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ. 

Comment by mohinichordia on January 14, 2012 at 3:44pm

धन्यवाद बागी जी एवं अरुण पाण्डेय जी |

 happy pongal 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 14, 2012 at 2:38pm

मोहिनी जी सच में, प्रकृति और स्त्री में बहुत ही साम्यता है, दोनों जीवन दात्री है, दोनों पीर सहती है, यथार्थ के धरातल पर इस रचना ने बहुत कुछ सोचने पर विवश करती है, बधाई इस रचना हेतु,

आपकी रचनाओं और अन्य साथियों की रचनाओं पर आपके बहुमूल्य विचारों का सदैव स्वागत है |

Comment by Abhinav Arun on January 14, 2012 at 12:32pm

"स्त्री और प्रकृति" की साम्यता प्रतिपादित करती इस रचना हेतु आदरणीया मोहिनी जी हार्दिक बधाई | आपकी कवितायेँ गंभीर भावो को सरलता से अभिव्यक्त करती हैं और वैचारिक धरातल पर पाठक को चिंतनशील बनाती भी हैं | इस विशेषता के लिए साधुवाद !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
3 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
5 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service