For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्वयं को आजमाने को तू खुलकर आ जमाने में

स्वयं को आजमाने को
तू खुलकर आ जमाने में
बहुत अनमोल है जीवन
गवाँता क्यों बहाने में

नदी के पास बैठा है
दबा के प्यास बैठा है
तुझे मालूम है, तुझमें
कोई एहसास बैठा है
किनारे कुछ न पाओगे
मिलेगा डूब जाने में

तुम्हारे सामने दुनिया
सुनो रणभूमि जैसी है
स्वयं का तू ही दुश्मन है
स्वयं का तू हितैषी है
कहीं पीछे न रह जाना
स्वयं से ही निभाने में

कहाँ दसरथ की दौलत
राम जी के काम आती है
सदा बाहें स्वयं की
राह के काटें हटाती हैं
स्वयं के बाहुबल से
काम ले राहें बनाने में

जगा दे मन का बजरंगी 

जला दे आलसी लंका 

दिखा दे जोर पौरुष का 

बजा दे विश्व में डंका 

पड़ा विपदाओं का सागर 

भला है लाँघ जाने में 

विचारों के महा-रण में
स्वयं अर्जुन-कन्हैया बन
पड़ी मझधार में नैया
स्वयं का तू खेवैया बन
स्वयं ही शस्त्र बन जा तू
स्वयं को जीत जाने में

मौलिक एवं अप्रकाशित

आशीष यादव

Views: 480

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on July 6, 2021 at 6:52pm

जनाब आशीष यादव जी आदाब,  प्रयास अच्छा है लेकिन रचना अभी समय चाहती है ।

इन पंक्तियों पर विचार करें:-

'किनारे कुछ न पाओगे
मिलेगा डूब जाने में

तुम्हारे सामने दुनिया
सुनो रणभूमि जैसी है'

पूरी रचना एक वचन में है,और ये पंक्तियाँ बहुवचन में ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 4, 2021 at 11:32am

खूबसूरत रचना के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय यादव जी...

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 2, 2021 at 9:03am

जनाब आशीष यादव जी आदाब,बहुत उम्दा गीत हुआ है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।  सादर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2021 at 11:40pm

आ. भाई आशीष जी, सुंदर गीत हुआ है । हार्दिक बधाई...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
yesterday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service