For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हमने कहीं पे लौट आ बचपन क्या लिख दिया-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२


हमने कहीं पे लौट आ बचपन क्या लिख दिया
बोली जवानी क्रोध  में दुश्मन क्या लिख दिया।१।
*
घर के बड़े  भी  काट  के  पेड़ों  को  खुश हुए
बच्चों ने चौड़ा चाहिए आँगन क्या लिख दिया।२।
*
तस्कर तमाम  आ  गये  गुपचुप  से  मोल को
माटी को यार देश की चन्दन क्या लिख दिया।३।
*
आँखों से उस की धार  ये  रुकती नहीं है अब 
भाता है जब से आपने सावन क्या लिख दिया।४।
*
वो  सब  विहीन  रीड़  के  श्वानों  से  बन  गये
कुत्तों के हिस्से सेठ ने माखन क्या लिख दिया।५।
*
हँसती  हो  मौत  देख  के  खुशियों  में  छेद ये
निर्धन के हिस्से ईश ने जीवन क्या लिख दिया।६।


(४-४-२१)
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

Views: 814

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 20, 2021 at 10:45am

आ. भाई बसंत जी, सादर अभिवादन। गजल पर आपकी मनोहारी टिप्पणी से मन हर्षित हुआ । उपस्थिति व सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 20, 2021 at 10:24am

आदरणीय धामी जी सादर नमस्कार 

अद्भुत गजल हुई है आदरणीय 

आनंद आ गया 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 17, 2021 at 6:57pm

आ. भाई ब्रिजेश जी, हार्दिक धन्यवाद।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 16, 2021 at 9:00am

बड़ी ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 15, 2021 at 8:40am

आ. भाई अमीरूद्दीन जी, धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 15, 2021 at 8:39am

आ. भाई आज़ी तमाम जी, अभिवादन । गजल पर उपस्थिति, सराहना व सलाह के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 13, 2021 at 9:26am

//हँसते धनी हैं देख के खुशियाँ कटी फटी//

आपके भावों के अनुसार ये मिसरा फ़िट है। 

Comment by Aazi Tamaam on April 13, 2021 at 8:13am

बेहतरीन ग़ज़ल है आदरणीय धामी सर

सादर प्रणाम

गुस्ताखी माफ़ हो मैंने एक लाइन लिक्खी है इससे शायद कुछ और बेहतरीन बन सके देखियेगा

"दुश्मन हर इक गरीब के फ़िर हो गये धनी"

निर्धन के हिस्से ईश ने जीवन क्या लिख दिया

सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 13, 2021 at 7:52am

आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद । 

इंगित शेर को इस प्रकार दे खिएगा-

हँसते धनी हैं देख के खुशियाँ कटी फटी

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 11, 2021 at 12:48pm

जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।

'हँसती हो मौत देख के खुशियों में छेद ये

निर्धन के हिस्से ईश ने जीवन क्या लिख दिया'    इस शे'र के ऊला का कथ्य समझ नहीं आया।  सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय  निलेश जी अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई इस ग़ज़ल के लिए।  "
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि शुक्ल भैया,आपका अलग सा लहजा बहुत खूब है, सादर बधाई आपको। अच्छी ग़ज़ल हुई है।"
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"ब्रजेश जी, आप जो कह रहें हैं सब ठीक है।    पर मुद्दा "कृष्ण" या…"
Tuesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
Monday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. अजय गुप्ता जी "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service