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मतगयंद (मालती)सवैया. (भगण x 7 अंत में दो गुरु) एक प्रयास

सूरज ताप बढ़ाकर जो मरुभूमि धरा पर दृश्य दिखाता,

मानव अक्सर जीवन में यह रीत मिसाल बना भरमाता,

भाग रहा वह तेज भयंकर झूठ कहे फिर भी अपनाता,

हाथ न आय तहाँ वह रोकर व्याकुल नीर बहा पछताता/

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Comment

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Comment by Ashok Kumar Raktale on October 15, 2012 at 7:06pm

विनीता जी

                सादर, धन्यवाद.

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 15, 2012 at 7:02pm

आदरेया राजेश कुमारी जी   

                           सादर, सवैये के प्रयास पर आपसे बधाई पाकर प्रसन्नता हुई. आभार.

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 15, 2012 at 7:01pm

आदरणीय सौरभ जी

                    सादर प्रणाम, आपने मेरे सवैये के प्रयास पर उत्साहवर्धक प्रतिक्रया से मन हर्षित है. आपका कोटिशः धन्यवाद.

Comment by Vinita Shukla on October 15, 2012 at 12:55pm

सुन्दर प्रयास. बधाई सार्थक प्रस्तुति पर.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 15, 2012 at 11:47am

आपका स्वागत है आ० अशोक जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 15, 2012 at 9:08am

अशोक कुमार रक्ताले जी बहुत ही सार्थक मतगयंद सवैया लिखी हैं बहुत बधाई आपको 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 15, 2012 at 8:05am

सूरज ताप बढ़ाकर जो मरुभूमि धरा पर दृश्य दिखाता,
मानव अक्सर जीवन में यह रीत मिसाल बना भरमाता, ...

वाह वाह ! प्रकृति की लीलाएँ और मनोवैज्ञानिक प्रभाव का सुन्दर चित्रण करते पंक्तियों के लिये हृदय से बधाई. भाई अशोकजी, आपके प्रस्तुत प्रयास और प्रस्तुति को मैं हृदय से स्वीकार करता हूँ. 

हार्दिक शुभकामनाएँ. 

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 15, 2012 at 7:50am

आदरेया सीमा जी   

             सादर, आपसे सराहना पाकर प्रसन्नता हुई. यह अवश्य ही मेरे लिए प्रेरणादायी रहेगी. आभार.

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 15, 2012 at 7:48am

आदरणीय अमबरीश जी

                    सादर प्रणाम, सवैये के भाव पर आपका स्नेहाशीष पाकर प्रसन्नता हूँ. आभार.

Comment by seema agrawal on October 14, 2012 at 9:38pm

 सत्य का ज्ञान होते हुए भी मृगमरीचिका में फंसते  इंसान की स्थिति को सफलता पूर्वक दर्शाते छंद के लिए बहुत बहुत बधाई अशोक जी 

शब्द संयोजन बहुत प्रभावशाली और प्रवाहपूर्ण है  है 

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