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आख़िरी आदमी (लघु-कथा) - डॉo विजय शंकर

भाषण अपने चरम पर था। विशाल जन - समूह पूरे मनोयोग से सुन रहा था।
उन्होंने कहा:

"भाइयों! पार्टी में एक बहुत ही महत्वपूर्ण और उच्च पद रिक्त है, मैंने निर्णय लिया है कि यह पद हमारे साथियों में सबसे पीछे खड़े आख़िरी आदमी को दिया जाएगा " .
उनका वाक्य पूरा भी नहीं हुआ कि सब लोग पीछे की ओर भागने लगे। पूरा मैदान खाली हो गया, मंच खाली हो गया, वे मंच पर अकेले रह गए।
खबर आयी है , लोग एक और भागे जा रहे हैं , बस भागे जा रहे हैं।
.
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on August 11, 2016 at 11:45am
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी , रचना के प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष तक पहुँचने और उत्साहवर्धक टिप्पणी हेतु आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 11, 2016 at 11:43am
आदरणीय चंद्रेश कुमार छतलानी जी , रचना की गूढ़ता तक पहुँचने और उत्साहवर्धक टिप्पणी हेतु आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 11, 2016 at 11:42am
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी , रचना पर उपस्थिति और उत्साहवर्धक टिप्पणी हेतु आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 10, 2016 at 3:15pm
अप्रत्यक्ष रूप से गंभीर बात सम्प्रेषित करती बेहतरीन कसी हुई प्रस्तुति के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी।
Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 10, 2016 at 12:14pm

गजब की रचना कही है, गूढ़ अर्थ लिये और सच को दर्शाती| सादर बधाई आपको आदरणीय सर, इस सृजन के लिये|

Comment by Shyam Narain Verma on August 10, 2016 at 11:25am
बहुत सुन्दर !! लघुकथा के लिये बधाइयाँ ॥  ..सादर

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