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बुराई बुराइयै का काट डालत है -- डॉo विजय शंकर

- चच्चा , ई का वखत आय गयो , बेईमान बेईमानै की शिकायत कर रहा है , कहत है कि इका सजा देयो । चोरै चोर का पकड़ावाय देही का ?
हम तो यही जाने रहे कि सबै मौसेरे भाई होत हैं।

- अब का कींन जाए , जब सब भले मनई मुह बांधे बैठे रहिये , सबै बुराईयन पे आँखें मूंदें रहिये , कान बंद किये रहिये तब और का होई, यही होई , बुराइयै बुराई का मार डाली , चोरै चोर का पकड़वाए देई। …………बुराई फलत नाइ है बचवा, ज्यादा दिन चलत नाई है, नाही तो दूनियाँ तो कब्बै खत्म हुई गई होत.
अच्छाई अच्छाई का कब्बो नहीं काटत है , पर बुराई , बुराइयै का एक दिन काट डालत है.
- सच्ची कहत हो, चच्चा , लागत तो यही है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on July 15, 2015 at 11:31pm
आदरणीय सौरभ पांडे जी, लघु-कथा के विवेचन के लिए आपका बहुत बहुत आभार, सादर।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 6, 2015 at 3:22am

अवधी भाषा में प्रस्तुत हुई इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय विजय शंकरजी. आपकी लघुकथा सफल है. लेकिन इसे हिन्दी जानने वाले (जो अवध के भूभाग में नहीं रहते) शायद ही समझ पायें. वैसे रचना की भाषा कठिन नहीं है.

शिल्प के अनुसार भाव-शब्द की पुनरावृति खटकती है. अतः कथा के माध्यम से जन्म लेता प्रभाव भंगुर हो जाता है.
वैसे सही कहूँ तो आपकी कोशिश रंग लायी है, इसमें कोई शक नहीं.
शुभ-शुभ

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 22, 2015 at 1:26pm
प्रिय कृष्ण मिश्रा जी, आपके गंभीर मूल्यांकन एवं विवेचना के लिए आपका बहुत बहुत आभार. आपकी बधाई हेतु ह्रदय से धन्यवाद। सादर।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 21, 2015 at 9:45am

//जब सब भले मनई मुह बांधे बैठे रहिये , सबै बुराईयन पे आँखें मूंदें रहिये , कान बंद किये रहिये तब और का होई..//कथा में एक जागरूक किरदार है है तो....//बुराई फलत नाइ है बचवा, ज्यादा दिन चलत नाई है, नाही तो दूनियाँ तो कब्बै खत्म हुई गई होत//... तो एक आशावान,किंकर्तव्यविमूढ़,और अनुभवी पात्र भी..दोनों के संवाद में सन्देश छुपा है! और अंत में जागरूक पात्र का अनुभवी पात्र की बातों से संतुष्ट हो जाना..प्रश्न भी छोड़ जाता है!

बेहतरीन लघुकथा हुयी है आ० विजय सर!!अभिनन्दन!!

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