बहुत ही व्यस्त कार्यक्रम था आज मंत्री जी का। सारे दिन शैक्षिक गुणवत्ता की कायर्शाला में अधिकारियों , शिक्षाविदों के साथ वाद-विवाद में जबरदस्त सक्रिय रहे माननीय मंत्री जी, बार बार यही दोहराते रहे , " सदियों से हम विश्व-गुरु रहें हैं, हम ऐसी शिक्षा दें कि कोई भी शिक्षा के लिए विदेश न जाना चाहे।"
 शाम घर जाते कार में पी ए से बता रहे थे:
"हफ्ते भर बाहर रहूंगा, रात दिल्ली निकल रहा हूँ I कल अमेरिका की फ्लाइट है, बेटे को हॉस्टल छोड़ कर आना है।.कहाँ कहाँ का जुगाड़ लगाया है तब एडमिशन मिला है इस बार। "
 पी ए ने भी पुए पर चीनी रखी , " सर बस , अब देखियेगा , बाबा कुछ ही साल में पूरे अंग्रेज बन के लौटेंगे। "
 " देखो , ईश्वर सुन ले हमारी " , गहरी सांस छोड़ते हुए कहा मंत्री जी ने।
 
 मौलिक एवं अप्रकाशित
 डॉo विजय शंकर
Comment
सटीक और सचित्र कर देती लघुकथा .. झूठ के मुलम्मे बंद कमरों में खुलते हैं
| बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय, हार्दिक बधाई स्वीकारें | 
विजय सर !
कथनी करनी का अंतर है आदरणीय -पर उपदेश कुशल बहुतेरे ---
बढ़िया कथा आदरणीय ..सादर नमस्ते
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