For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हवा में - डॉo विजय शंकर

हमने एक मकान बनाया ,
सबसे पहले
छत को बनाया ,
चढ़ कर उस पर
उछले-कूदे ,
खूब चिल्लाये ,
नाचे- गाये ,
देख आसमान ,
खूब इतराये ,
लगा , लपक कर
छू लेंगें ,
मुठ्ठी में नभ कर लेंगें ,
और जब नीचे झाँका , देखा ,
अचानक तब घबराये ,
हा , बुनियाद ,
कहाँ छोड़ आये।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1123

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 26, 2017 at 8:42am
आदरणीय सुरेंद्र नाथ कुशक्षत्रप जी , प्रस्तुति पर आपकी विश्लेषणात्मक विवेचना के लिए ह्रदय से आभार , बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 26, 2017 at 8:42am
आदरणीय महेंद्र कुमार जी ,प्रस्तुति की स्वीकृति के लिए ह्रदय से आभार , बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 25, 2017 at 5:56pm

एक बात आदरणीय मो० आरिफ़ से : 

जिस कवि की पंक्तियों को आपने उद्धृत किया है, आदरणीय, उनका सही नाम अभिमन्यु अनत है न कि अभिमन्यु अनंत जैसा कि उद्धृत हुआ है. ये मॉरीशस देश से हैं और हिंदी भाषा के महत्त्वपूर्ण कवि हैं. 

सधन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 25, 2017 at 5:51pm

आदरणीय विजय शंकर जी, सही है, बिना जड़ की संस्कृति नहीं होती. खूब कविता हुई है. शीर्षक भी सटीक है.

हार्दिक बधाइयाँ. 

शुभेच्छाएँ 

Comment by Mohammed Arif on October 25, 2017 at 1:33pm
आदरणीय विजय शंकर जी आदाब,
आपकी कविता 'हवा' पढ़कर कई बातें उभरकर सामने आती है । पहली बात तो यह कि इस सदु के हमारे आशियाने सुकून कम तनाव ज़ियादा दे रहे हैं । घर की अवधारणा ही ख़त्म-सी हो रही है । आज घर-घर में बेबसी-लाचारी के मरीज़ रहते हैं । अकेलेपन की नागफनी के काँटे चुभते रहते हैं । कोई संवेदना की दो-चार बूँदें भी नहीं रह गई है । घर हमारे लिए जैसे जी का जंजाल बन गया है । जो घर बचे भी हैं वो भी विभाजन के कगार पर खड़े हैं ।उनकी भी बुनियाद चरमरा रही है । नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी जबर्दस्त वैचारिक संघर्ष है ।मुझे इस प्रसंग पर कवि अभिमन्यु अनंत की छोटी कविता की याद आ गई जिसका शीर्षक "नई सभ्यता " है:-
कल हमारी कुटियों में बिन पूछे
तूफान दाख़िल हो जाते थे
आज हमारे घरों में बिन दरवाज़े खटखटाये
जो चले आ रहे हैं
उनसे हमारी दवारें और छतें नहीं
हमारी बुनियाद चरमरा रही है
आशा है आप मेरी बात से सहमत होंगे । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by नाथ सोनांचली on October 25, 2017 at 1:12pm
आद0 विजय शंकर जी सादर अभिवादन।बड़ी बात बहुत कम शब्दो मे भी कैसे कही जाती है, आपकी रचनाओं में उसका परिलक्षण होता है।। बहुत बेहतरीन रचना पर बधाई आद0 विजय शंकर जी। सादर
Comment by Mahendra Kumar on October 25, 2017 at 9:08am

बेहतरीन कविता है आ. डॉ. विजय शंकर जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 25, 2017 at 8:40am
आदरणीय सुश्री कल्पना भट्ट , रौनक जी , कविता पर आपकी उपस्थिति एवं प्रशस्ति हेतु आभार एवं बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 25, 2017 at 8:38am
आदरणीय समर कबीर साहब, नमस्कार , आपने कविता के मूल को चार पंक्तियों में सुन्दर स्वरुप प्रदान कर दिया , आभार। अक्सर देखता हूँ पूरा स्ट्रक्चर बन जाता है फिर इंफ्रास्ट्रक्टर की बात होती है , शो - विण्डो सज जाती है तो अंदर की व्यवस्था बनाने की बात होती है। बस बात बहुत छोटी सी है , वक़्त बहुत लेती है। आपकी प्रशस्ति एवं बधाई हेतु धन्यवाद , सादर।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 24, 2017 at 3:43pm

बहुत सुंदर और बहुत ही गंभीर बात आपने इस कविता के माध्यम से कही है , मैं आदरणीय समर भाई जी बातों से सहमत हूँ | इस शानदार प्रस्तुति के लिए ढेरों बधाई स्वीकार करें आदरणीय |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
13 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
18 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
18 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. अजय गुप्ता जी "
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। पंचकल त्रिकल के प्रयोग…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service