For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ५०

२१२२/२१२२/२१२२/२१२

बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़:

फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन 

 

क्या फ़सादात-ए-शिकस्ता प्यार से आगे लिखूँ

मुद्दआ है क्या दिल-ए-ग़मख़्वार से आगे लिखूँ

आरज़ूएं, दिल बिरिश्ता, ज़ख्म या हैरानियाँ

क्या लिखूं गर मैं विसाल-ए-यार से आगे लिखूं 

 

दर्द टूटे फूल का तो बाग़वाँ ही जानता

सोज़िश-ए-गुल रौनक-ए-गुलज़ार से आगे लिखूँ

 

हक़ बयानी ऐ ज़माँ दे हौसला बातिल न हो

जो लिखूँ मैं ख़ारिजी इज़हार से आगे लिखूँ

 

कब हुई है इश्क़ की चाराग़री जुज़ इश्क़ से

है ज़रूरी मैं शिफ़ा तीमार से आगे लिखूँ

 

है सड़क पे सोने वालों का भी अपना आशियाँ

मै सिफ़त घर की दरोदीवार से आगे लिखूँ

 

है दुआ चहरा कभी अपनों का मुतसव्वर न हो

इस्म मैं जब नामज़द अग्यार से आगे लिखूँ

 

होश तुझको देखते ही जब हुए हैं फ़ाख्ता

हाल क्या अपना दम-ए-दीदार से आगे लिखूँ

 

ग़ालिबन तुझको समझ आये मआल-ए-आशिक़ी

मैं कहानी जब तिरे इनकार से आगे लिखूँ

लग रही हैं बोलियाँ बाज़ार में फिर क्यूँ नहीं

आदमी का मर्तबा बाज़ार से आगे लिखूं  

 

है गिरफ्त-ए-आजिज़ी में ज़िंदगी हर शख्स की  

सानिहा अब क्या वही हर बार से आगे लिखूं 

 

~ राज़ नवादवी

 

फ़सादात-ए-शिकस्ता प्यार- भग्न प्रेम की ख़राबियाँ; दिल-ए-ग़मख़्वार- सहानुभूतिशील ह्रदय; बिरिश्ता- दग्ध; विसाल-ए-यार- प्रेम के आधेय से मिलन; सोज़िश-ए-गुल- पुष्प की पीड़ा; रौनक-ए-गुलज़ार- उपवन की रौनक; हक़बयानी- सत्यवाचन; ज़माँ- ज़माना; बातिल- झूठा; ख़ारिजी- बाहरी; शिफ़ा- इलाज; तीमार- देखभाल, सेवा सुश्रुषा; सिफ़त- परिभाषा, गुण, ख़ासियत; मुतसव्वर होना- (चेहरा) ध्यान में आना; इस्म- नाम; नामज़द- पहचान हुआ; अग्यार- दुश्मन लोग; दम-ए-दीदार- दर्शन की घड़ी या पल; ग़ालिबन- कदाचित्, शायद; मआल-ए-आशिक़ी- प्रेम करने का परिणाम; मर्तबा- पद, श्रेणी, प्रतिष्ठा; सानिहा- दुर्घटना, कोई बुरा समाचार 

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 937

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on September 7, 2017 at 9:13pm

आदरणीय भंडारी साहब, मंतव्य का हार्दिक आभार. आप बिलकुल सही कह रहे हैं. मैंने वही किया था. एडिट आप्शन में जाकर ग़ज़ल में ज़रूरी सुधार भर कर दिया था. ऐसा करने के बाद अप्रूवल अवेटेड का मेसेज आ गया. और जब पोस्ट अप्रूव हुई तो पुराने जितने भी कमेंट्स थे ग़ायब दिखे. आप कोई और साधन हो तो कृपया ज़रूर बताएं. सादर. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 30, 2017 at 8:54pm

आदरनीय राज भाई , सुधार के बाद गज़ल और खूब सूरत हो गयी हौ , बधाइयाँ स्वीकार करें । आपने शायद सुधार को एक नयी गज़ल के जैसे फिर से पोस्ट की है ... पिछली प्रतिक्रियाँ दिख नहीं रहीं है , गज़ल को एडिट आप्शन से सुधार कर देना चहिये , ताकि इस सीखने सिखाने के मंच का उद्देश्य पूरा हो सके ,,, जान कारों की प्रतिक्रियायें बहुत कुछ सीख देतीं हैं .. उनका रहना भी ज़रूरी है ।

Comment by राज़ नवादवी on August 30, 2017 at 1:20pm

आदरणीय ajay sharma  साहब, आपका ह्रदय से आभार !

Comment by ajay sharma on August 29, 2017 at 11:13pm

आपको इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई  |

Comment by राज़ नवादवी on August 29, 2017 at 4:51pm

आदरणीया सुनंदा जी, आपका तहेदिल से शुक्रिया, आपको ग़ज़ल पसंद आई, मेरा लिखना सार्थक हुआ. सादर आभार के साथ. 

Comment by sunanda jha on August 29, 2017 at 4:16pm
वाहहहहह आदरणीय राज़ साहब बहुत प्यारी ग़ज़ल कही आपने ,दिली मुबारकबाद कुबूल करें सादर ।दूसरा शुक्रिया आपने जो मुश्किल लफ़्ज़ों का अर्थ लिख दिया उसके लिए ,क्योंकि अर्थ पढ़कर ग़ज़ल समझने में आसानी हुई ।
Comment by राज़ नवादवी on August 29, 2017 at 2:48pm

आदरणीया कल्पना जी, बहुत बहुत धन्यवाद. सच बात तो ये है कि मैं ग़ज़लगोई अभी सीख ही रहा हूँ और शायद आने वाले समय में इसकी नौईयत कुछ और हो. अभी मेरी सारी कोशिश ग़ज़ल की बह्र को interiorize करने की है और इसमें अब तक सीखी गई भाषा जैसे जैसे ज़ुबान पे आती है, उसको रक़म करता जाता हूँ. आपकी बातें बिलकुल बजा हैं और एक लिहाज़ से सामयिक भी. हाँ, लफ़्ज़ों की अपनी ख़ूबसूरती भी होती है, ठीक वैसे ही जैसे लिबासों की या बेलबूटों की, मगर जो दरूनी है, जो  मानी, या जो शख्सियत है, अहलियत आखिकार उसी की होती है. मेरी ये भी कोशिश है कि शेर में तरकीब-ओ-तपाक पैदा किये जाएँ. कोशिश जारी है. आपके विचारों का आभारी हूँ. सादर. 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 29, 2017 at 2:32pm

फिर भी गर आसान भाषा में लिखें तो अच्छा रहेगा , शायद आप ज्यादातर शब्द फारसी या अरबिक लिख रहें है | क्या इतनी क्लिष्ट भाषा आज भी हिन्दुस्तानी ग़ज़ल में हैं ? उत्सुकतावश पूछ रहीं हूँ उम्मीद है अन्यथा न लेंगे आप | सादर |

Comment by राज़ नवादवी on August 29, 2017 at 2:24pm

आदरणीया कल्पना जी, आपने ग़ज़ल की सराहना कर मेरा लिखना सार्थक किया है. मैं आपका ह्रदय से आभारी हूँ. सादर. 

Comment by राज़ नवादवी on August 29, 2017 at 2:22pm

आदरणीय समर कबीर साहब, बहुत बहुत शुक्रिया. आपके सटीक मार्गदर्शन और दोस्तों के मशविरों का कमाल है. हर बार लिखने के बाद लगता है कि अभी बहुत कमी बाकी है और अशआर में तरक़ीब पैदा करने की ज़रुरत. इंशाअल्लाह उम्मीद है आपलोगों की दुआओं से आगे फ़रोग होता रहेगा. मुझे आपका मेसेज मिल गया था. अबसे चैट बॉक्स की बजाए फ़ोन पर ज़हमत दूंगा. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
19 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service