For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ५१

बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़: फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन 

२१२२ २१२२ २१२२ २१२ 

---------------------------

देख लो यारो नज़र भर अब नया मंज़र मेरा

आ गया हूँ मैं सड़क पर रास्ता है घर मेरा

 

लड़खड़ाने से लगे हैं अब तो बूढ़े पैर भी

है ख़ुदी का पीठ पर भारी बहुत पत्थर मेरा

 

जानता हूँ दिल है काहिल नफ़्स की तासीर में 

बात मेरी मानता है कब मगर नौकर मेरा

 

आसमाँ से आएगा कोई हबीब-ए-शाम-ए-ग़म

यूँ नज़र भर देखता है बाम को बिस्तर मेरा

है चराग-ए-इश्क़ की बेमायगी समझा अभी

दूद-ए-दिल उठने लगा क्यों शाम से अक्सर मेरा

 

जाँ बहक होकर वफ़ा में क़त्ल का इल्ज़ाम क्यों

बात इतनी है कि कोई ले गया पैकर मेरा

 

माँगते हैं यूँ हिसाब-ए-इश्क़ होके राहरौ

दर-ब-दर गोया लगा है इश्क़ का दफ़्तर मेरा

 

बात तो करता है लेकिन कब मिलाता है नज़र

सरगिराँ है आजकल कुछ इस कदर अफ़सर मेरा

मर गया हूँ लाश हूँ मैं अब ज़ियारत किस लिए

खींच दो चहरे पे मेरे दामन-ए-चादर मेरा

काम क्या आया है वक़्त-ए-आख़िरत ऐ दोस्तो

आन-ओ-बान-ओ-शान-ओ-शौक़त सब हुआ महशर मेरा

मुल्क़ की सरहद पे मरने वाले का ऐलान है

दुश्मनों के खूँ से होली खेलेगा किशवर मेरा

~ राज़ नवादवी 

 

मंजर- दृश्य, नज़ारा; नफ़्स- इच्छा, काम-वासना; तासीर- प्रभाव; हबीब- साथी, दोस्त; बाम- छत; राहरौ- राहगीर, पथिक; महशर- महाप्रलय, क़यामत; सरगिराँ- नाराज़; बेमायगी- बिना तेल का होना; दूद- धुआँ; जाँ बहक- मर जाना, प्राण गंवाना; पैकर- शरीर; ज़ियारत- दर्शन, दीदार, दामनेचादर- चादर का लटकता हिस्सा; किशवर- देश, मुल्क 

(मौलिक एवं अप्रकाशित) 

Views: 621

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on September 7, 2017 at 10:01am

आदरणीय महेंद्र कुमार जी, आपके मंतव्य का ह्रदय से आभार. प्रतिक्रिया में हुए विलम्ब के लिए क्षमा चाहूँगा, मैं पिछले एक सप्ताह से यात्रा में था और पोस्ट्स नहीं देख पाया था. सादर 

Comment by Mahendra Kumar on September 3, 2017 at 1:18pm

देख लो यारो नज़र भर अब नया मंज़र मेरा

आ गया हूँ मैं सड़क पर रास्ता है घर मेरा ...वाह!

मर गया हूँ लाश हूँ मैं अब ज़ियारत किस लिए

खींच दो चहरे पे मेरे दाम ...बहुत ख़ूब!

बहुत बढ़िया ग़ज़ल है आ. राज़ नवादवी जी. मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by राज़ नवादवी on September 3, 2017 at 8:47am
आदरणीय गिरिराज भंडारी साहेब, आपका ह्रदय से आभार। में ट्रेवल में हूँ इस कारण समय पर प्रतिक्रियाएँ नही देख पा रहा हूँ। सादर
Comment by राज़ नवादवी on September 3, 2017 at 8:45am
आदरणीय समर साहेब, आपका ह्रदय से आभार। में ट्रेवल में हूँ इस कारण समय पर प्रतिक्रियाएँ नही देख पा रहा हूँ। सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2017 at 6:19pm

आ. राज भाई , बेहतरीन गज़ल कही है , शेर दर शेर मुबारकबाद कुबूल करें ।

Comment by Samar kabeer on September 1, 2017 at 3:40pm
जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service