For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : उसके लब पे रहती है  मुस्कान सदा - सलीम रज़ा रीवा

22 22 22 22 22 2
.....
जो बनकर के जीता है  इंसान सदा,
उसके लब पे रहती है  मुस्कान सदा
..
क्या अफसोस कि शाख़ से पत्ते टूटे हैं,
गुलशन में तो आते हैं तूफ़ान सदा
..
हक़ पे चलने वाले हक़ पे चलते हैं,
माना  की बहकाता है शैतान सदा 
..
धीरे - धीरे शेर मेरे भी चमके गें,
पढ़ता हूँ मै ग़ालिब का दीवान सदा
..
रिज़्क मे उसके बरकत हरदम होती है,
जिसके घर में आते हैं मेहमान सदा
..
भेद भाव से दूर "रज़ा" जो रहता है,
महफ़िल में वो पाता है  सम्मान सदा
..
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 970

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SALIM RAZA REWA on October 6, 2017 at 9:31pm

आदरणीय, वीनस केसरी जी,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया
आपकी महब्बत सलामत रहे

Comment by SALIM RAZA REWA on October 6, 2017 at 9:30pm

आदरणीय, अरुण कुमार निगम जी,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया
आपकी महब्बत सलामत रहे

Comment by SALIM RAZA REWA on October 6, 2017 at 9:29pm

आदरणीय, विजय मिश्र जी,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया
आपकी महब्बत सलामत रहे

Comment by Mohammed Arif on October 6, 2017 at 8:01pm
आदरणीय सलीम रज़ा जी आदाब, बहुत ही अच्छी ग़ज़ल । हर शे'र माक़ूल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
नोट:-कितना अच्छा हो अगर आप जैसे ग़ज़लगो साहित्य की अन्य विधाओं पर अपनी सृजनशीलता का परिचय देने वालों को भी अपनी टिप्पणियों से पोषित कर हौसला बढ़ाएँ ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 6, 2017 at 5:08pm
जनाब सलीम साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें । शेर2 -तूफ़ान गुलशन में नहीं समंदर में आते हैं ,देखियेगा शेर4 उला मिसरे में अब की जगह भी करके देखिए
Comment by राज़ नवादवी on October 6, 2017 at 4:28pm

आदरणीय सलीम रज़ा साहब, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए बधाई ! सादर 

Comment by SALIM RAZA REWA on October 6, 2017 at 4:11pm
आदरणीय, सौरभ जी,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया
आपकी महब्बत सलामत रहे
Comment by SALIM RAZA REWA on October 6, 2017 at 4:08pm
आ. बृजेश जी,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया,
Comment by SALIM RAZA REWA on October 6, 2017 at 4:06pm
अशोक कुमार जी,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया,
Comment by SALIM RAZA REWA on October 6, 2017 at 4:05pm
आली जनाब समर साहब,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया.. आपकी महब्बत सलामत रहे,, ये मेरी ख़ुशनसीबी की आप सब की महब्बत हमें मिल रही है.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
4 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
7 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service