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तू है यहीं..।।

तू है यहीं..।।

दिन नया-नया सा है, ख़्वाहिशें सब पुरानी सी।
तेरा इंतज़ार था, इंतज़ार है, और इंतज़ार रहेगा।।

चाहतें हैं जो बदलती नहीं, आहें हैं, मिटती नहीं।
अहसास करवटें बदल-बदल कर सताते हैं।।

हर शाम पूछती है, बेधड़क दरवाज़ा खटखटाती है।
वो ख़ुद लौटा है, या सिर्फ़ उसकी यादें लौटी है?

यादें और यादें, तुम ही रुक जाओ, कम्बख़्त ।
मुस्कराहटें ना सही, आँसू ही दे जाओ ज़रा।।

हर मशविरा वो देता है, आगे बढ़ जाओ।
बतला तो जाता, आख़िर कहाँ बढ़ा जाये।।

ऐसा नहीं कि, कोशिश नहीं की मैंने ।
पर कोई बताये, मशीन कैसे बना जाये?

सांसें हैं, दिल की धड़कनें भी बेहिसाब।
चल तो रही हैं, पर हैं नीरस औ वीराँ।।

ऐ सनम ! या तू समझ ले, या समझा जा।
जीना तो होगा ही, पर कैसे? हाँ कैसे?

अतुकांत कविता

मौलिक व अप्रकाशित।

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Comment

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Comment by Usha on September 7, 2019 at 5:04pm

आदरणीय विजय शंकर सर, मेरी कविता पर आपकी टिप्पणी से मैं अभिभूत हूँ व उम्मीद है आपका सतत प्रोत्साहन मुझे इसी प्रकार साहित्य जगत में अनवरत लिखने की प्रेरणा देता रहेगा। सादर।

Comment by Usha on September 7, 2019 at 4:36pm

आदरणीय समर कबीर सर, मेरी अभिव्यक्ति को सशक्त बनाने के लिए आपके महत्वपूर्ण सुझावों के अनुसार मैने कविता को पुनः पोस्ट किया है साथ ही अपनी नयी कविता पर भी यही आपका व् मंच के माननीय सदस्यों का आशीर्वाद चाहूंगी। सादर।

Comment by Samar kabeer on September 7, 2019 at 2:55pm

मुहतरमा ऊषा जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई ।

'दिन नया-नया सा है, ख़्वाइशें सब पुरानी सी।'

इस पंक्ति में 'ख़्वाइशें' को "ख़्वाहिशें" कर लें ।

'यादें  और यादें, तुम ही रुक जाओ, कम्बख़त।'

इस पंक्ति में 'कम्बख़त' को "कम्बख़्त" कर लें ।

'पर कोई बताये, मशीं कैसे बना जाये?'

इस पंक्ति में 'मशीं' को "मशीन" करना उचित होगा ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 5, 2019 at 9:40am

सुन्दर प्रस्तुति, बधाई , आदरणीय सुश्री उषा जी , सादर।

कृपया ध्यान दे...

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