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ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना

लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
जाने अब कैसे कटेंगी सर्दियाँ तेरे बिना.
.
फैलता जाता है तन्हाई का सहरा ज़ह’न में
सूखती जाती हैं दिल की क्यारियाँ तेरे बिना.
.
साथ तेरे जो मुसीबत जब पड़ी, आसाँ लगी
हो गयीं दुश्वार सब आसानियाँ तेरे बिना.
.
तू कहीं तो है जो अक्सर याद करता है मुझे
क्यूँ सताती हैं वगर्ना हिचकियाँ तेरे बिना?
.
वक़्त लेकर जा चुका आँखों से ख़ुशियों के गुहर   
अब भरी हैं ख़ाक से ये सीपियाँ तेरे बिना. .
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 4, 2019 at 5:38am

आ. भाई नीलेश जी, बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by Samar kabeer on July 3, 2019 at 2:39pm

जनाब निलेश "नूर" साहिब आदाब, "आप आए बहार आई"

बहुत उम्द: ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

Comment by Rachna Bhatia on July 3, 2019 at 10:17am
आदरणिय@निलेश जी,अच्छी ग़ज़ल हुई।हार्दिक बधाई।
Comment by TEJ VEER SINGH on July 3, 2019 at 9:05am

हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ हृदेश चौधरी जी।लाज़वाब रचना।

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